गुरुवार, 20 सितंबर 2012

रास बिहारी बोस का पत्र सुभाष के नाम

मेरे प्रिय सुभाष बाबू,
भारत के समाचार पत्र पाकर मुझे यह सुखद समाचार मिला है कि आगामी कांग्रेस सत्र के लिए आप अध्यक्ष चुने गये है । मैं हार्दिक शुभकामनायें भेजता हूँ । अंग्रेजों के भारत पर कब्जा करने में कुछ हद तक बंगाली भी जिम्मेदार थे । अतः मेरे विचार से बंगालियों का यह मूल कर्तव्य बनता है कि वे भारत को आजादी दिलाने में अधिक बलिदान करें ।
...देश को सही दिशा में ले जाने के लिए आज कांग्रेस को क्रांतिकारी मानसिकता से काम लेना होगा । इस समय यह एक विकासशील संस्था है - इसे विशुद्ध क्रांतिकारी संस्था बनाना होगा । जब पूरा शरीर दूषित हो तो अंगों पर दवाई लगाने से कोई लाभ नहीं होता ।
अहिंसा की अंधी वंदना का विरोध होना चाहिये और मत परिवर्तन होना चाहिये । हमें हिंसा अथवा अहिंसा - हर संभव तरीके से अपना लक्ष्य प्राप्त करना चाहिये । अहिंसक वातावरण भारतीय पुरूषों को स्त्रियोचित बना रहा है । वर्तमान विश्व में कोई भी राष्ट्र यदि विश्व में आत्म सम्मान के साथ जीना चाहता है तो उसे अहिंसावादी दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिये । हमारी कठिनाई यह है कि हमारे कानों में बहुत लम्बे समय से अन्य बातें भर दी गयी है । वह विचार पूरी तरह निकाल दिया जाना चाहिये ।
...मुसलमान कहते है : पीर, अमीर तथा फकीर - ताकि व्यक्ति दुनिया का सामना कर सके । यदि आप फकीर नहीं बन पाते, तो अमीर बन जायें और जीवन को जियें । यदि आप अमीर नहीं बन सकते, तो पीर बन जाइये । इसका अर्थ है कि काफिर को मार डालो और विश्व के लोग तुम्हें या तुम्हारी कब्र को ईश्वर की भांति पूजेंगे ।
... शक्ति आज की वास्तविक आवश्यकता है । इस विषय पर आपको अपनी पूरी शक्ति लगानी चाहिये । डॉ. मुंजे ने अपना मिलेटरी स्कूल स्थापित करके कांग्रेस की अपेक्षा अधिक कार्य किया है । भारतीयों को पहले सैनिक बनाया जाना चाहिये । उन्हें अधिकार हो कि वे शस्त्र लेकर चल सकें । अगला महत्वपूर्ण कार्य हिन्दू - भाईचारा है । भारत में पैदा हुआ मुस्लिम भी हिन्दू है, तुर्की, पर्शिया, अफगानिस्तान आदि के मुसलमानों से उनकी इबादत - पद्धति भिन्न है । हिन्दुत्व इतना कैथोलिक तो है कि इस्लाम को हिन्दुत्व में समाहित कर ले - जैसा कि पहले भी हो चुका है । सभी भारतीय हिन्दू है - हालांकि वे विभिन्न धर्मो में विश्वास कर सकते है । जैसे कि जापान के सभी लोग जापानी है, चाहे वे बौद्ध हों, या ईसाई ।
...हमें यह मालूम नहीं है कि जीवन कैसे जीया जाये और जीवन का बलिदान कैसे किया जाये । यही मुख्य कठिनाई है । इस संदर्भ में हमें जापानियों का अनुसरण करना चाहिये । वे अपने देश के लिए हजारों की संख्या में मरने को तैयार है । यही जागृति हम में भी आनी चाहिये । हमें यह जान लेना चाहिये कि मृत्यु को कैसे गले लगाया जा सकता है । भारत की स्वतंत्रता की समस्या तो स्वतः हल हो जायेगी ।
आपका शुभाकांक्षी,
रास बिहारी बोस
25-1-38 टोकियो

बुधवार, 19 सितंबर 2012

नेहरू ने नेताजी को ब्रिटेन का युद्ध अपराधी कहा था !

जवाहर लाल नेहरू ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली को पत्र लिख कर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को ब्रिटेन का युद्ध अपराधी बताया था और रूस द्वारा उन्हें पनाह देने को द्रोह और विश्वासघात करार दिया था ।
नेहरू के इस पत्र को विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमलेंदु गुहा ने अपनी पुस्तक ' नेताजी सुभाष : आइडियोलाजी एंड डाक्ट्रीन ' में प्रकाशित किया है । लेकिन पुस्तक का विमोचन करते हुए पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरामन ने पुस्तक में उद्धत इस पत्र पर असहमति जताई थी, उनका मानना था कि नेहरू की ऐसी भाषा नहीं है और उन्हें लगता है कि उन्होंने ऐसा पत्र नहीं लिखा होगा । श्री वेंकटरमण ने इस पर भी सवाल उठाया था कि नेहरू का पत्र प्रधानमंत्री के लैटरपैड पर नहीं है और जब भी कोई प्रधानमंत्री किसी दूसरे देश के प्रधानमंत्री को पत्र भेजता है तो आधिकारिक रूप से अपने लैटरपैड पर लिखता है ।
नार्वे में ओस्लो स्थित ' इंस्टीट्यूट फॉर एल्टरनेटिव डेवलपमेंट रिसर्च ' के निदेशक और इस पुस्तक के लेखक श्री अमलेंदु गुहा ने श्री वंकेटरमन की आपत्ति का उत्तर जोरदार तरीके से देते हुए कहा कि नेहरू ने वास्तव में ऐसा पत्र लिखा था और यह पत्र लंदन के ब्रिटिश अभिलेखागार में सुरक्षित है । उन्होंने कहा कि नेहरू ने यह पत्र सादे कागज पर उस समय लिखा था, जब वह प्रधानमंत्री थे ही नहीं और इसलिए यह सरकारी रिकार्ड में नहीं है ।
विश्व के छह राष्ट्राध्यक्षों के आर्थिक सलाहकार रह चुके प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री अमलेंदु गुहा द्वारा लिखित इस पुस्तक में प्रकाशित पत्र के अनुसार पंडित नेहरू ने लिखा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को रूस ने अपने यहां प्रवेश करने की इजाजत देकर द्रोह और विश्वासघात किया है । पत्र के अनुसार उन्होंने लिखा था कि रूस चूंकि ब्रिटिश, अमेरिकियों का मित्र राष्ट्र है, इसलिए रूस को ऐसा नहीं करना चाहिए । पत्र में लिखा था कि इस पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए ।
श्री गुहा ने पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है कि पंडित नेहरू के मन में नेताजी के लिए व्यक्तिगत नापसंदगी थी और वह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को नेताजी के बारे में गोपनीय सूचना देने में नहीं हिचके । प्रस्तावना में कहा गया है कि पंडित नेहरू ने यह पत्र डिक्टेट कराया था, आसफ अली के विश्वस्त स्टेनो शामलाल ने अपने हलफनामे में इसकी पुष्टि भी की है । श्री गुहा ने कहा कि उन्होंने जो लिखा है, उस पर वह कायम है ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

राजद्रोही शंकराचार्य स्वामी भारतीकृष्ण तीर्थ जी

सन् 1924 में ब्रिटेन के युवराज प्रिंस ऑफ वेल्स भारत आए थे तो भारत की आम जनता ने उनके भारत आगमन का बहिष्कार कर दिया । ब्रिटिश सरकार परेशान हो गई क्योंकि वो चाहती थी कि भारत की जनता श्रद्धा - भक्ति के साथ युवराज का आदर - सम्मान करे । ब्रिटिस सरकार यह भली - भाति जानती थी कि भारत की धर्मपरायण जनता अपने धर्माचार्यो के आदेशों का पालन करने को हमेशा तत्पर रहती है, अतः ब्रिटिश सरकार की ओर से पत्र द्वारा पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारतीकृष्ण तीर्थ जी से अनुरोध किया गया कि वह राजा को भगवान विष्णु का प्रतिनिधि मानने के हिन्दू धर्म के सिद्धांत के अनुसार राजकुमार वेल्स को सम्मान देने का आदेश अपने अनुयायियों को दें । शंकराचार्य जी ने पत्र पढ़ा तथा निर्भय होकर उत्तर दिया, ' अंग्रेज विदेशी लुटेरे हैं । वे प्रजा - पालक नहीं हैं । जिन्होंने हमारी मातृभूमि को छल - कपट से गुलाम बना रखा हैं, उन्हें विष्णु का प्रतिनिधि कैसे घोषित किया जा सकता है ? ' साम्राज्यवादी ब्रिटिश शासन उनके उत्तर से क्रोधित हो गया । पूज्य शंकराचार्य जी को कारागार में बंद करके उन पर राजद्रोह का अभियोग चलाया गया लेकिन शंकराचार्य जी अपनी राष्ट्रभक्ति कर अडिग रहे ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

सोमवार, 10 सितंबर 2012

कब तक रहेगा - इंडिया, दैट इज भारत

किसी भारतीय भाषी से हमारे देश का नाम पूछिये तो वह कहेगा - भारत , मैं भी कहूंगा - भारत , लेकिन किसी अंग्रेजीदां से पूछ कर देखिए, वह कहेगा - इंडिया, लेकिन क्या किसी देश के दो - दो नाम होते है ? अमेरिका के कितने नाम है ? और ब्रिटेन के ? क्या श्रीलंका का कोई अंग्रेजी नाम भी है ? स्वाधीनता से पूर्व श्रीलंका को ' सीलोन ' तथा म्यांमार को ' बर्मा ' के नाम से जाना जाता था, लेकिन जब उनमें राष्ट्रीयता का बोध जागा, तो उन्होंने अपना नाम बदल लिया, आज उन्हें उनके पूर्व नामों से कोई नहीं जानता है, न लिखता है और न बोलता है और अब सारी दुनियां उन्हें श्रीलंका और म्यांमार के नाम से जानती है । यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हम अभी भी दो - दो नाम ढो रहे है , हम अपने को भारत मानते है, लेकिन दुनियां हमें इंडिया कहती है । और भारत सरकार आज भी अपने को गवर्नमेंट ऑफ इंडिया लिखती है ।
ब्रिटिश शासकों के चंगुल से तो ' इंडिया ' मुक्त हो गया किन्तु तब तक यह आर्यावर्त तो किसी तरह रह ही नहीं गया था, भारतवर्ष अथवा हिन्दुस्थान भी नहीं बन पाया । क्योंकि सत्ता हस्तांतरण के समय हमारे स्वदेशी शासन का सूत्र संचालन जिन तथाकथित कर्णधारों ने येन - केन - प्रकारेण अपने हाथों में लिया वे भारतीय संस्कृति, भाषा, साहित्य, धर्म, दर्शन व परंपरा, विज्ञान, इतिहास और जीवनमूल्यों के प्रति हीन भावना की मनोग्रन्थि से ग्रस्त थे, वे केवल नाम और शरीर से भारतीय थे । उन्होंने एक ऐसे समाज के निर्माण की नीव डाली जो भारतीयता से शून्य थी और इस देश को इंडिया, दैट इज भारत बना दिया । पिछले पैंसठ वर्षो में उसमें से भी भारत तो लुप्त ही होता जा रहा है, क्योंकि इंडिया उसको पूर्ण रूप से निगलता जा रहा है । शकों, हूणों, तुर्को, मुगलों, अरबों, अफगानों के बर्बर जेहादी आक्रमण और शासन जिसका स्वरूप विकृत नहीं कर सके, उसे केवल दो - सौ वर्षो की ब्रिटिश शासकों की कुसंगति और शिक्षा पद्धति ने आपाद - मस्तक रूपांतरित कर दिया ।
स्वतंत्रा प्राप्ति से पूर्व जो युवा पीढ़ी देश में थी उसकी सारी शक्ति संचित रूप से एक महान लक्ष्य को समर्पित थी । वह लक्ष्य था - पराधीनता की बेड़ियों को तोड़ कर देश को विदेशियों की दासता से मुक्त करना । अपनी सारी शक्ति से वह पीढ़ी अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये दृढ़ संकल्प थी और अंततः वह सफल भी हो गई । किन्तु विडम्बना यह है कि युवा पीढ़ी के उस बलिदान का श्रेय तत्कालीन स्वार्थान्ध किन्तु चतुर नेताओं ने अपनी झोली में समेट कर पूरी पीढ़ी को घोर चाटुकारिता नपुंसकता के पर्यायवाची गीत ' दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल ' की लय पर नचा दिया । न केवल इतना अपितु तिल - तिल कर अपने प्राणों की आहुति देने वाले महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी, गुरू गोविन्द सिंह, गोकुल सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, पं. नाथूराम गोडसे, मदन लाल ढिंगरा, वीर सावरकर जैसे वीरों की नितांत अवहेलना कर उन्हें लांक्षित किया ।
स्वाधीना प्राप्ति से पूर्व और पश्चात की स्थिति का विश्लेषण करने पर जो दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य प्रकट होता है वह यह है कि पहले तो अभारतीय अर्थात अहिन्दू ही भारत तथा भारतीयता को नष्ट करने में संलग्न थे, किन्तु आज भारतीय और हिन्दुओं के द्वारा ही भारतीयता तथा हिन्दुत्व को नष्ट करने का कार्य किया जा रहा है । भारतीय जीवन पद्धति के सोलह संस्कारों में से अधिकांश तो भुला दिये गए हैं, शेष भी शीघ्र भुला दिये जाने की स्थिति में है । विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार पंजीयक के कार्यालय में सम्पन्न होने लगे हैं । वैदिक विधि से सम्पन्न होने वाले विवाहों में भी केवल परिपाटी का ही परिचलन किया जाने लगा है । जन्मदिन तो बहुत पहले से ही ' बर्थ - डे ' के रंग में रंग गए है, जिनकी जीवन - ज्योति को जलाया नहीं बल्कि बुझाया जाता है । पारिवारिक संबोधन और संबंध मम्मी - डैडी, आंटी - अंकल, मदर - फादर, कजन - बर्दर आदि में परिवर्तित हो गए है । सामाजिक समारोह, संस्कारों आदि के अवसर पर निमंत्रण पत्रों को संस्कृत, हिन्दी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में मुद्रित कराना उनकी दृष्टि में स्वयं को पिछड़ा सिद्ध करना है ।
सत्तालोलुप अधिकांश नेता सत्ता हस्तांतरित होते ही देश प्रेम को भुल कर जो कुछ त्याग - तप करने का नाटक उन्होंने किया था, उससे सहस्र गुणा अधिक समेटने के लिए आतुर हो उठे । उभरती हुई युवा पीढ़ी और देश के पुर्निर्माण की बात भूल कर वे अपने निर्माण में जुट गए । पाश्चात्य सभ्यता में आकण्ठ डूबे होने के कारण वे अपने तुच्छ स्वार्थो की पूर्ति और तुष्टि के लिये उन्होंने भावी भारत की निर्मात्री पीढ़ी के भविष्य के साथ - साथ देश के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया ।
ऐसी स्थिति में अब वर्तमान पीढ़ी को ही भारत को इंडिया के चंगुल से मुक्त कर उसे पुन विश्व की महाशक्ति बनाने व जगद्गुरू पद पर प्रतिष्ठित करने का दायित्व लेना होगा । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारतीय शिक्षा प्रणाली को पुर्नजीवित करना होगा । संविधान में संसोधन करा इंडिया शब्द की बजाय भारत का प्रावधान कराना होगा तथा देश की किशोर व युवा पीढ़ी को राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना के साथ जोड़ना होगा ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '


प्रिय राष्ट्र प्रेमियों, आपको यह जानकर हर्ष होगा कि वैदिक राष्ट्रवादी चिंतन के अनुसार साम्प्रदायिकता एवं भ्रष्टाचार के उन्मूलन तथा भारतीय संस्कृति व मानवाधिकार के संरक्षण हेतु प्रगतिशील देशभक्तों के राष्ट्रव्यापी संगठन ' साम्प्रदायिकता विरोधी मोर्चा ( रजिस्टर्ड ) द्वारा भारतीय संस्कृति के संरक्षण व सम्वर्धन हेतु देश के संविधान से अपमानजनक शब्द इंडिया को हटाकर भारत की पुर्नस्थापना हेतु जन आन्दोलन तथा गौ - गुरूकुल परियोजना का प्रारम्भ किया जा रहा हैं । सहयोगी राष्ट्रभक्त बंधु संस्था के ईमेल svmbharat@gmail.com पर या हमारे फोन नम्बर 09412458954 पर कॉल कर अधिक जानकारी ले सकते है ।
वन्दे मातरम्
जय माँ भारती ।
आपका - विश्वजीत सिंह ' अनंत '

गुरुवार, 6 सितंबर 2012

वैदिक दण्ड विधान और लोकपाल विधेयक

वेद के अनुसार जिस गलती को एक आम आदमी करता है और उसी गलती को प्रथम श्रेणी का आदमी करता है, तो आम आदमी के मुकाबले पर प्रथम श्रेणी के आदमी को आठ गुणा दण्ड अधिक मिलना चाहिये । जैसे जिस समय द्वापर काल ( अब से लगभग 5200 वर्ष पूर्ण ) में युवराज युधिष्ठिर व युवराज दुर्योधन में से राजा चुनने हेतु पात्रता परीक्षा का आयोजन हुआ, तो प्रश्न रखा गया था कि चार मानव है, उनमें एक ब्राह्मण, एक क्षत्रिय, एक वैश्य और एक शुद्र है । उन्होंने एक निअपराध मानव की हत्या कर दी है, तो उनको दण्ड देने की प्रक्रिया किस प्रकार की जाये । इसके उत्तर हेतु सर्वप्रथम दुर्योधन को आमंत्रित किया गया । दुर्योधन ने उत्तर में कहाँ कि चारों को समान रूप में दण्ड दिया जाये । फिर युधिष्ठिर को आमंत्रित किया गया, तो वैदिक दण्ड विधान को जानने वाले युधिष्ठिर ने अपने उत्तर में कहाँ कि इन चारो अपराधियों में से शुद्र को चार वर्ष का दण्ड देना चाहिये, क्योंकि इसका ज्ञान कम है । फिर वैश्य के प्रति कहाँ कि यह शुद्र से अधिक ज्ञानवान है तथा व्यापार, कृषि व पशु पालन में कुशल है, इसको आठ वर्ष का दण्ड देना चाहिये । फिर क्रम क्षत्रिय का आता है, इसमें युधिष्ठिर ने कहाँ कि क्षत्रिय पर जनता की रक्षा का दायित्व होता हैँ, इसने अपने दायित्व का उलंघन कर अनुचित कदम उठाया है, इसलिये इसको सौलह वर्ष का दण्ड देना चाहिये । फिर क्रम ब्राह्मण का आता है, इसमें युधिष्ठिर ने कहा कि ब्राह्मण का कार्य सर्व समाज को शिक्षा देना हैँ, ब्राह्मण गुरू होता है और जैसा गुरू होता है, वैसा ही शिष्य अर्थात समाज बनता हैं । अतः इस ब्राह्मण को बत्तीस वर्ष का दण्ड देना चाहिये । इसी प्रकार मंत्री को सहस्र गुणा और राजा को सबसे अधिक दण्ड देना चाहिये ।
इसी प्रकार लोकपाल में दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिये । चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को प्रारंभिक दण्ड दिया जाना चाहिये तथा प्रथम श्रेणी के कर्मचारीयों ( आईँ ए. एस. व राजनेताओं आदि ) को अधिक दण्ड दिया जाना चाहिये । जो जितने महत्वपूर्ण पद पर है, उसको उतना अधिक दण्ड दिना चाहिये । वर्तमान भारत में प्रधानमंत्री की राजा के समान सर्वोच्च मान्यता है, अगर वो कोई गलत कार्य करता है तो वो सबसे अधिक दण्ड पाने का अधिकारी है । क्योंकि कहा गया है, कि यथा राजा तथैव प्रजा । इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री को स्वयं लोकपाल विधेयक के दायरे में आना स्वीकार कर लेना चाहिये ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '
साम्प्रदायिकता विरोधी मोर्चा ( रजिस्टर्ड )

रविवार, 29 जुलाई 2012

बाबर की मजार बनाम बाबरी मस्जिद

जब इस्लाम अफगानिस्तान में पहुँचा , तो अफगानिस्तान के लोग अरब साम्राज्यवादी शक्तियों द्वार छल - प्रपंच से किये गये युद्ध में हार गये । लेकिन उन्होंने अपने पूर्वजों को विस्मृत नहीं किया था । आज जो अफगानिस्तान में तालिबान है , सारे बुद्ध की प्रतिमा तोड़ रहे हैं , ये तालिबान तो वैश्विक अरब साम्राज्यवादी मानसिकता और पाकिस्तान से प्रशिक्षित होकर कट्टरपंथी बन गये हैं । वहां के अफगानों में इतने दिनों तक यह नहीं था । लेकिन वहाँ का अफगान क्या सोचता है ? मोहनदास गांधी की पुत्रवधु ( मोहनदास गांधी के दत्तकपुत्र फिरोज खान गांधी की पत्नी । ) श्रीमती इन्दिरा गांधी जब अफगानिस्तान गयी , तो वहाँ पर उनको लगा कि यहाँ बाबर की मजार है । उन्होंने कहा कि इतना बड़ा सम्राट हुआ , साम्राज्य संस्थापक हुआ , चलो उसकी मजार पर पुष्प चक्र चढ़ाना चाहिए । उन्होंने कहा , मैं बाबर की मजार पर पुष्प चढ़ाना चाहती हूँ । अफगानिस्तान की सरकार बड़ी घबरायी , कभी सोचा भी नहीं था , कोई आकर पुष्प चक्र चढ़ायेगा । पता लगाया , तो एक कब्रिस्तान में एक कोने में उसकी मजार थी । इतनी टूटी - फूटी अवस्था में थी , कि झाड़ - झंखाड़ खड़े हो गये थे । भारत की प्रधानमंत्री आने वाली हैं , इसलिए उन्होंने उसे साफ करके देखने लायक बनाया । प्रधानमंत्री गयी , वही पुष्प चक्र चढ़ाया । जब जाने लगी तो उनके साथ एक अधिकारी था , उसने वहाँ के कब्रिस्तान के प्रमुख से पूछा , बाबर इतने बड़े एक साम्राज्य का संस्थापक हुआ और उसकी मजार इतनी टूटी फूटी अवस्था में ? तो उसका उत्तर था - वह कौन अफगान था ! वह अफगान नहीं था , तो हम उसकी चिन्ता क्यों करें ? अफगानिस्तान का मुसलमान , मुसलमान होते हुए भी बाबर को अपना नहीं समझता । दुर्भाग्य की बात है कि अपने देश भारत में मुसलमानों का एक वर्ग बाबर को अपना पुरखा मानता है और उनके वोटों के लालची राजनीतिज्ञ भी बाबर को अपना पुरखा मानते हैं , इसलिये उसने राम मन्दिर तोड़कर वहाँ पर जो मस्जिदरूपी ढ़ाँचा बनाया था , उसको बाबरी मस्जिद कहते है ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '
सांप्रदायिकता विरोधी मोर्चा ( रजिस्टर्ड )

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

अल्लाह बनाम तारी बनाम ईश्वर

इस्लाम का प्रारम्भ राष्ट्रीयता को अमान्य करते हुए हुआ । उनके लिए राष्ट्रीयता नाम की कोई चीज नहीं है । दुनिया भर के सारे मुसलमान जो एक राष्ट्र बनाते हैं , उसको मिल्लत कहते हैं । इस्लामिक अरब की साम्राज्यवादी नीति के अनुसार सब एक मिल्लत हैं एक राष्ट्र हैं , लेकिन हो नहीं सका । इस्लाम जब विभिन्न देशों में गया , तो राष्ट्रीयता के आधार पर बट गया । अरबिस्तान से तुर्किस्तान में पहुँचा , तो तुर्किस्तान की राष्ट्रीयता ने नया रूप ले लिया । 1918 में जब खलीपा को गद्दी से उतार कर मुस्तफा कमाल पाशा वहाँ का प्रमुख बन गया , तो उसने सारे मुल्ला - मौलवियों को बुलाकर कहा - " कौन सी भाषा में नमाज पढ़ते हो ? " उन्होंने कहा ' हम अरबी में पढ़ते हैं ' " अरबी में क्यों ? क्या भगवान को तुर्की भाषा समझ में नहीं आती ? खबरदार ! अब अरबी भाषा में नमाज नहीं पढ़ोगे और अल्लाह नहीं कहोगे । अल्लाह अरबी शब्द है , तुर्की का शब्द है तारी , सबको तारी कहना पड़ेगा । "
इसी प्रकार ईरान वालों ने अरब साम्राज्यवादी मानसिकता के स्थान पर इस्लाम के शिया पंथ को स्वीकार करके अपनी ईरानी राष्ट्रीयता को उसके माध्यम से प्रकट किया । पारसी मत में जितनी भी मान्यताएँ थी , उन सारी मान्यताओं को उसके अन्दर डालकर उसका एक नया रूप विकसित किया , जिसको हम " सूफीमत " कहते हैं । जिस सूफी मत की अंतिम सीढ़ी है - अन अल् हक ( अहं ब्रह्मास्मि ) तो उनका राष्ट्रीयकरण इस रूप में हुआ । इसी प्रकार इंडोनेशिया में भी इस्लाम गया , लेकिन वहाँ के लोगों ने हिन्दू संस्कृति को इस्लाम के साथ ऐसा अच्छे ढंग से मिला लिया कि आज वहाँ का 90 प्रतिशत आदमी मुसलमान होने के बाद भी रामायण , महाभारत को अपना सांस्कृतिक ग्रन्थ कहता है । राम और कृष्ण को अपना पूर्वज मानकर चलता है । संस्कृतनिष्ठ नाम रखता है - सुकर्ण , सुहृद , रत्नावली आदि । मेघवती सुकर्णपुत्री वहाँ की उपराष्ट्रपति रह चुकी है । वहाँ के विश्वविद्यालय के नाम है , अमितजय विश्वविद्यालय , त्रिपति विश्वविद्यालय । वहाँ जकार्ता जायेंगे , तो चौरास्ते के ऊपर भगवान श्रीकृष्ण का गीतापदेश देने वाला पूरा रथ बना हुआ है , जिसे बड़े गौरव के साथ वहाँ देखा जाता है । उनका मत परिवर्तन तो हो गया लेकिन उन्होंने अपना सांस्कृतिक परिवर्तन न होने दिया ।
लेकिन भारत में मोहनदास गांधी और जवाहर लाल नेहरू द्वारा शुरू की गई सांप्रदायिक तुष्टीकरण की नीतियों के कारण देश भी सांम्प्रदायिक आधार पर बट गया और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद भी जन्म न ले सका । अब खण्डित भारत के धर्मांतरित मुस्लिम समाज को ही भारत की अस्मिता , अपने मूल भारतीय पूर्वजों , भाषा , संस्कृति आदि के बारे में सोचना पडेगा । जब इंडोनेशिया के मुस्लिम नागरिक अपनी सांस्कृति आस्था के अनुसार शिव की पूजा कर सकते है , अपनी कब्रों पर रामायण की पंक्तियां खुदवा सकते है तथा तुर्की वाले अल्लाह को तारी के नाम से पुकार सकते है , तो तुम अल्लाह को ईश्वर के नाम से क्यों नहीं पुकार सकते ? अरबी के स्थान पर संस्कृत को क्यों नहीं अपना सकते ? भारत का मुसलमान तो यहीं का है , तो इसलिए वहाँ के लोग रामायण , महाभारत को मानते हैं , तुम क्यों नहीं मान सकते ? राम , कृष्ण को अपना पूर्वज मानते है तो तुम क्यों नहीं मान सकते ? तुम मानोगे , तो इस धरती से जुड़ जाओगे और जो आदमी धरती से जुड़ जायेगा , वह राष्ट्र का अपना बन जायेगा ।
भारत का मुसलमान केवल मुसलमान है , इस आधार पर किसी मुस्लिम देश में स्थान नहीं पा सकता । हा , हज करने जाओ , दर्शन करने जाओ , चलेगा , वहाँ पर बस नहीं सकते । अकेले सऊदी अरब से 22 हजार बंगलादेशी मुसलमानों को निकाल बाहर किया गया । आखिर मुसलमान थे न । मुसलमान भाई हैं , फिर क्यों निकाला ? केवल मजहब जो है जोड़ता नहीं है , धरती जोड़ती है । इसलिए हमारा कहना है कि भारत का मुसलमान जो इस धरती पर पैदा हुआ है , उसको अपना माने , उसको अपनी माँ कहे । उसको वन्दे मातरम् कहने में तकलीफ क्यों होती है ? गर्व से कहना चाहिए , हाँ , यह हमारी माता है , हम इसके पुत्र है । अपने सारे पूर्वजों को मान लो । यहाँ की संस्कृति कहती है , सत्य एक है इसी को विभिन्न नामों से पुकारते है , उस संस्कृति को स्वीकार कर लो , तो झगड़ा कुछ नहीं रहेगा , आप धरती से जुड़ जाओगे तो यह देश अपना हो जायेगा ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '
सांप्रदायिकता विरोधी मोर्चा ( रजिस्टर्ड )
Email : svmbharat@gmail.com

रविवार, 24 जून 2012

भारत के छद्म सेक्यूलर नेताओं द्वारा साम्प्रदायिक आधार पर भारत को नष्ट करने का भयानक षडयन्त्र ! भाग - दो

लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान कहते है कि असली प्रजातंत्र हम जब समझेगें जब देश का प्रधानमंत्री मुसलमान होगा। हैदराबाद का एक विधायक मौलाना ओवैसी दुर्गा मंदिर में बजने वाले घण्टे को गैर इस्लामी बताकर प्रतिबंधित कराने का प्रयास करता है, तो बरेली की खचाखच भरी एक चुनावी सभा में एक मौलवी सार्वजनिक रूप से कहता है कि शहजिल इस्लाम (प्रत्यासी) को वोट देकर इतना मजबूत कर दो कि वो गैर मुस्लिम का सिर कलम कर सके। चुनाव जितने पर विधायक शहजिल इस्लाम ओसामा बिन लादेन को आतंकी नहीं जेहादी बताता है। इसका अर्थ यह हुआ कि जिस प्रकार पहले तलवार के बल पर कत्ले आम मचाकर नंगा नाच होता था, मतांतरण कराया जाता था, कच्चे चमड़े के बोरों में जीवित लोगों को ठूँस - ठूँस भरकर सीलकर तडफते हुये मरने के लिये डाल दिया जाता था, नारियों का शील भंग किया जाता था, इन जेहादियों के आतंक से कन्याओं की भ्रुण हत्या कर दी जाती थी तथा नारियाँ सामूहिक रूप से एकत्र होकर अग्नि में प्राण गवाँ देती थी, जैसे मुगलकाल में हिन्दुओं के लिए नियम अलग और मुसलमानों के लिए अलग थे आज भी वो प्रक्रिया जारी है । जब हकीकत को मौत की सजा सुनाई गई तो हकीकत ने कहा अगर यह बोलने पर मैं दोषी हूँ तो मेरे से पहले यह मुस्लिम बच्चे दोषी है , जिन्होनें दुर्गा माता के लिए यह शब्द कहे थे मैंने तो केवल उनके शब्द दोहराये है। मुसलमान सेक्यूलरिज्म को नहीं मानता है और सरकार सेक्यूलरिज्म को मानती है तो मजहब (आधुनिक शब्दों में धर्म) के नाम पर आरक्षण क्यों देती है। सरकार में बैठे हुये व्यक्ति मजहब के आधार पर आतंकवादियों की मदद क्यों करते है। बाटला हाऊस में इस्पेक्टर शर्मा आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो जाते है, इस्पेक्टर शर्मा के बलिदान को कोई महत्व नहीं दिया जाता, उल्टा कांग्रेस का महासचिव दिग्विजय सिंह आजमगढ़ जिले के सरजूपुर ग्राम में आतंकवादियों के घर जाकर मुठभेड़ को फर्जी बताता है और उनका उत्साहवर्धन करता है कि हम स्पेशल अदालत बैठाकर आपके बच्चों को न्याय दिलायेगे। हापुड़ के पास मंसूरी ग्राम में आतंकवादियों की सूचना मिलने पर पुलिस छापा मारती है तो एक आतंकवादी उसी समय गाडी में बैठकर आता है तो गाडी ड्राइवर व मकान मालिक को भी पुलिस हिरासत में ले लेती है तो सेक्यूलर नेता चिल्लाते है कि मानव अधिकार का हनन हो रहा है। इसी प्रकार एक दरगाह में 40 आतंकवादी थे तो सरकार कहती है दरगाह पर हमला मत करना और मौका पाकर आतंकवादी फरार हो जाते है, स्वर्ण मंदिर को तो तहस नहस कर सकती है सरकार लेकिन दरगाह में आतंकवादी पाकर हमली नहीं कर सकती। जामा मस्जिद का इमाम कहता है कि मैं आई एस आई का एजेन्ट हूँ सरकार में हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करे। एक योगगुरू काले धन के लिए शांतिपूर्वक अनशन करता है तो सरकार सोते हुये बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गो पर घिनौने तरीके से बल प्रयोग करती है। हिन्दू साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को कोई पुष्ट प्रमाण न मिलने पर भी अमानवीय यातनाऐ दी जाती है और आतंकवादियों को बिरयानी खिलायी जाती है, जामा मस्जिद के इमाम के नाम पर गर्दन नीची कर ली जी जाती है।
सरकार की भारत विरोधी मानसिकता देखिये भारतीय नगरों के नाम अरब साम्राज्यवादी आक्रांताओं के नाम पर रखे गये, भारतीय महापुरूषों को हाशिये पर फेंक दिया गया, देखिये विजयनगर हिन्दू राज्य था उसका नाम बदलकर सिकंदराबाद रख दिया गया। महाराणी कर्णावती के नाम से नगर का नाम कर्णावती रखा गया परन्तु इसका नाम बदलकर क्रुर आतंकी के नाम पर अहमदाबाद रख दिया गया और अकबर ने प्रयाग का नाम बदलकर इलाहाबाद रख दिया और साकेतनगर जो राम के राज्य से नाम था उसे बदलकर फैजाबाद कर दिया गया, शिवाजी नगर का नाम बदलकर आतंकी औरंगजेब के नाम पर औरंगाबाद कर दिया गया, लक्ष्मीनगर का नाम बदलकर नबाब मुजफ्फर अली के नाम पर मुजफ्फरनगर रख दिया, भटनेरनगर का नाम गाजियाबाद रख दिया, इंद्रप्रस्थ का नाम दिल्ली रख दिया गया। इसी प्रकार आज भी हमारे उपनगरों व रोडों के नाम आतंकवादियों के नाम पर रखे जा रहे है, तुगलक रोड, अकबर रोड, औरंगजेब रोड, आसफ अली रोड, शाहजहाँ मार्ग, जहागीर मार्ग, लार्ड मिन्टो रोड, लारेन्स रोड, डलहोजी रोड आदि - आदि। जरा विचार करो, नीच किस्म के आतंकवादियों के नामों का इस प्रकार से भारत पर जबरदस्ती थोपा जाना एक षडयन्त्र है नहीं है क्या, यह वैचारिक गुलामी का प्रतिक है। अयोध्या के श्री राम मंदिर को विश्व जानता है कि यहां राम का जन्म हुआ और उसका भव्य मंदिर था, एक अरबपंथी लुटेरा जेहादी सेना लेकर आया उसने लूट मचाई, भारतीय स्वाभिमान को नीचा दिखाने के लिए उसने मंदिर को तोड दिया, लुटेरा भी चला गया और देश का एक भाग भी चला गया, परन्तु फिर भी मुकदमा भारतीय स्वाभिमान के प्रतिक श्रीराम और एक लुटेरे के बीच में ? कैसी है यह आजादी !
आज भारतीयों की मानसिकता देखकर मुझे दुःख होता है और मैं विचार करता हूँ कि जब आर्य महान थे तो उनकी संतान इतनी निकृष्ट कैसे हो गई। जब राष्ट्रगीत वंदे मातरम् पर कुछ संकिर्ण विचारधारा के व्यक्ति आपत्ति जताते है तो तुरंत वंदे मातरम् गायन को स्वैच्छिक कर दिया जाता है और राष्ट्रगान जन गन मन जो जार्ज पंचम का स्वागत गीत था, उस पर कोई आपत्ति नहीं सुनी जाती। इसी प्रकार भारत माता व हिन्दू देवी - देवताओं की मूर्तियां बनाकर भारतीयता को अपमानित करने वाले को सहयोग और उसके खिलाप बोलने वालों पर मुकदमे। आज भारतीय हिन्दू समाज के छद्म सेक्यूलर नेता तात्कालिक लाभ के लिए देश को गद्दारों के हवाले करने का काम कर रहे है। भारत के सात राज्यों में तो हिन्दू अल्पसंख्य हो ही चुका है, अब सम्पूर्ण भारत की बारी है। हे भारत वंशियों अभी भी समय है चेत जाओं, वरना आने वाले समय में तुमको भयंकर यातनाओं का शिकार होना पडेगा और तुम्हारी बहन - बेटियों को जेहादी विधर्मीयों की रखैल बनकर रहना पडेगा, इसका इतिहास साक्षी है।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '
वन्दे मातरम्
जय माँ भारती ।

भारत के छद्म सेक्यूलर नेताओं द्वारा साम्प्रदायिक आधार पर भारत को नष्ट करने का भयानक षडयन्त्र !

प्रिय राष्ट्र प्रेमियों -
एक वो समय था जब गाय माँ की रक्षा के लिये 1857 ईश्वी में क्रांति हो गई थी और हमारे पूर्वजों ने 4 लाख गद्दारों व अंग्रेजों को काट डाला था, ओर एक समय ये है जब 3500 हजार कत्लखानों में रोज माँ को काटा जा रहा है और हम तथाकथित अहिंसा व सेक्यूलरिज्म की आड़ में नपुंसकता की चादर ओढ़े घरों में दुबके बैठे है। एक प्रदेश की मुख्यमंत्री सार्वजनिक मंच से 'गौ मांस खाना मेरा मौलिक अधिकार है' कहने का दुश्साहस करती है, किन्तु देश में उसके खिलाप कोई सशक्त प्रतिक्रिया नहीं आती, कारण भारत के नेतृत्व का भारतीयता विरोधी छद्म सेक्यूलरों के हाथों में होना, इनके द्वारा नित्य प्रति भारत के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने के कुचक्र रचे जा रहे है। देश की सीमाओं, संस्कृति, पुरातन धरोहर, हमारी शिक्षा पद्धति, हमारे मंदिर, साधु - सन्यासी, हमारी परंपराओं एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान पर सदैव सुनियोजित रीति से बहु - आयामी आक्रमण किये जा रहे है। हमारा देश छद्म सेक्यूलर नेताओं के कारण भीषण संकट के दौर से गुजर रहा है।
भारत में छद्म सेक्यूलरिज्म की संगठित शुरूआत 20 अगस्त 1920 को मोहनदास गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन के नाम से खिलापत आंदोलन (अरबपंथी कट्टर जेहादियों द्वारा तुर्की के खलीपा के समर्थन में चलाया गया एक विशुद्ध साम्प्रदायिक आंदोलन, जिसका भारत या भारत के मुसलमानों से कोई संबंध नहीं था।) को अपना नेतृत्व प्रदान करने से हुई। गांधी के शब्दों में - मुसलमानों के लिए स्वराज्य का अर्थ है - जो होना ही चाहिए खिलापत की समस्या के लिए भारत की क्षमता का, प्रभाव पूर्ण व्यवहार, इस दृष्टिकोण के साथ सहानुभूति न रखना एकदम असंभव है, खिलापत आंदोलन की पूर्ति के लिए आवश्यक लगने पर मैं स्वराज प्राप्ति की कार्यवाही को सहर्ष स्थगित करने के लिए आग्रह कर दूंगा। जब खिलापत आंदोलन असफल हो गया तो अरबपंथी जेहादियों का गुस्सा हिन्दुओं पर उतरा, मोपला में हिन्दुओं की संपत्ति, धन व जीवन पर सबसे बड़ा हमला हुआ। हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया, स्त्रियों के अपमान हुये। गांधी जो अपनी नीतियों के कारण इसके उत्तरदायी थे, मौन रहे। प्रत्युत यह कहना शुरू कर दिया कि मालाबार में हिन्दुओं को मुसलमान नहीं बनाया गया। यद्यपि उनके मुस्लिम मित्रों ने यह स्वीकार किया कि सैकड़ों घटनाऐं हुई है। और उल्टे मोपला मुसलमानों के लिए फंड शुरू कर दिया।
मोहनदास गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआता में हिन्दी को बहुत प्रोत्साहन दिया। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि कुछ साम्प्रदायिक मुसलमान इसे पसंद नहीं करते, तो वे उन्हें खुश करने के लिए हिन्दी के स्थान पर हिन्दुस्तानी (फारसी लिपि में लिखे जाने वाली उर्दू भाषा) का प्रचार करने लगे। बादशाह दशरथ, शहजादा राम, बेगम सीता, मौलवी वशिष्ठ जैसे नामों का प्रयोग होने लगा। सम्प्रदाय विशेष को खुश करने के लिए हिन्दुस्तानी भाषा विद्यालयों में पढ़ाई जाने लगी। इसी अवधारणा से मुस्लिम तुष्टिकरण का जन्म हुआ, जिसके मूल से ही उन्नीसवीं सदी की सबसे भयानक त्रासदी साम्प्रदायिक आधार पर हिन्दुस्थान का पाकिस्तान और भारत के रूप में विभाजन हुआ, जिसमें लगभग 25 लाख निर्दोष लोगों को अपने प्राण गवाने पड़े।
14 - 15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में हिन्दुस्थान विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था कि गांधी ने वहां पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन कराया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं कहा था कि देश का बटवारा उनकी लाश पर होगा। देश का साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन हुआ, मुसलमानों का पाकिस्तान और हिन्दुओं का भारत, तो जिन्ना ने सम्पूर्ण साम्प्रदायिक जनसंख्या के स्थानांतरण की बात रखी, जिसे गांधी और नेहरू ने अस्वीकार कर दिया। नास्तिक नेहरू ने हिन्दू विद्वेषवश भारत को हिन्दू राष्ट्र न बनाकर सेक्यूलर राष्ट्र बना दिया। विभाजन के पश्चात भारत में कुल 3 करोड़ मुस्लिम जनसंख्या थी, जो आज बढ़कर 23 करोड़ हो गयी है, दूसरी ओर पाकिस्तान में हिन्दुओं की जनसंख्या 21 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 1.4 प्रतिशत रह गयी है। तुर्क और मुगलों की प्रापर्टी की सुरक्षा व्यवस्था के लिए वफ्फ तैयार किया गया और और उनको पाकिस्तान में प्रापर्टी वफ्फ के द्वारा सौपी गयी और कमी समझने पर उनकी जमीन का पेमेन्ट भी किया गया। मुसलमानों के हिस्से की जमीन पाकिस्तान में चली गयी और वफ्फ के द्वारा मुसलमानों को सभी सुविधाऐं दी गयी, परन्तु पाकिस्तान से भारत आने वाले हिन्दुओं के लिये कुछ नहीं किया गया। आखिर ऐसा विद्वेष हिन्दुओं के साथ क्यों किया गया और यह विद्वेष आज भी जारी क्यों है ! जो मुसलमान पाकिस्तान चले गये उनकी संपत्ति की खातिर सरकार फिर ऐसा कानून बनाना चाहती है कि वह संपत्ति उन पर पहुँच जाये। मुगलकाल में हिन्दुओं के लिए नियम अलग और मुस्लिमों के लिए अलग होता था, आज भी वह नियम लागू है, जब कोई हिन्दू मेला या तीर्थयात्रा होती है तो टैक्स या किराया बढ़ा दिया जाता है और मुसलमानों को हज यात्रा में आर्थिक अनुदान दिया जाता है। छात्रवृत्ति, बैंक लोन, शिक्षा, रोजगार आदि क्षेत्रों में सम्प्रदायिक तुष्टिकरण व मजहबी आरक्षण की भेदभाव पूर्ण नीति अपनायी जाती है। इसपर स्वयं भारत का सुप्रीम कोर्ट सभी भारतीय नागरिकों के लिए समान कानून बनाने का सुझाव दे चुका है तथा साम्प्रदायिक समुदायों के पर्सनल लॉ में बदलाव नहीं करने पर केन्द्र सरकार को लताड़ चुका है। लेकिन फिर भी भारत का छद्म सेक्यूलर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह देश के समस्त संसाधनों पर पहला अधिकार एक सम्प्रदाय विशेष (मुसलमानों) का बताता है। साम्प्रदायिक आधार पर भारत को नष्ट करने के लिए कट्टर साम्प्रदायिक चरित्र वाले व्यक्तियों की सोनिया गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद गठित कर सांप्रदायिक एवं लक्ष्य केन्द्रित हिंसा निवारण विधेयक 2011 बनाया जाता है तो कभी राजिन्द्र सच्चर के नेतृत्व में कमेटी गठित कर मुसलमानों के लिए विशेषाधिकार की बात की जाती है।
क्रमश .....
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

शुक्रवार, 22 जून 2012

साम्प्रदायिकता विरोधी मोर्चा ( रजिस्टर्ड ) की बीस सूत्री कार्ययोजना

मित्रों आपको यह जानकर अत्याधिक हर्ष होगा कि हमने राष्ट्रवादी चिंतन के अनुसार साम्प्रदायिकता एवं भ्रष्टाचार के उन्मूलन तथा भारतीय संस्कृति व मानवाधिकार के संरक्षण हेतु प्रगतिशील देशभक्तों को साथ लेकर एक राष्ट्रव्यापी संगठन का गठन कर लिया है , संगठन का नाम है :- साम्प्रदायिकता विरोधी मोर्चा ( रजिस्टर्ड ) Sampradayikta Virodhi Morcha ( Reg. ) ।
साम्प्रदायिकता के विनाश एवं भारतीय संस्कृति के विकास के लिए संगठन की बीस सूत्री कार्ययोजना निम्नलिखित है -
1. देश के संविधान से अपमानजनक शब्द इंडिया को हटाकर भारत की पुर्नस्थापना करना ।
2. गौवंश की हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना , गौवंश के हत्यारों को मृत्युदण्ड का प्रावधान करना तथा गौवंश पर आधारित अर्थतंत्र की व्यवस्था करना ।
3. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना , काले धन को वापस मगाना , भ्रष्टाचारियों की संपत्ति को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करना व भ्रष्टाचारियों को कठोर दण्ड का प्रावधान करना ।
4. आरक्षण का आधार आर्थिक स्थिति को बनाना , जाति - धर्म के आधार पर आरक्षण बंद करना ।
5. मांस निर्यात बंद करना , उन्नत कृषि एवं पशुपालन को प्रोत्साहित करना ।
6. सौर ऊर्जा , पवन ऊर्जा आदि वैकल्पित ऊर्जा के संयंत्रों का तंत्र विकसित करना ।
7. विद्यालयों में चरित्र निर्माण , व्यवसायिक शिक्षा व सैन्य शिक्षा अनिवार्य करना ।
8. आयुर्वेद को राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति घोषित करना ।
9. स्वदेशी उत्पादनों को प्रोत्साहित करना ।
10. संस्कृत भाषा को प्रोत्साहित करना , उसे द्वितीय राजभाषा का दर्जा देना , संस्कृत माध्यम से संस्कृत शिक्षा देना , प्रत्येक राज्य में एक - एक केन्द्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना करना , संस्कृत में व्यवसायिक - रोजगार उन्मूख पाठ्यक्रमों का निर्माण करना व संस्कृत में रोजगार के अधिक अवसरों को उपलब्ध कराना , दूरदर्शन संस्कृत की स्थापना करना ।
11. मुस्लिम पसर्नल लॉ और अल्पसंख्यक आयोग को भंग करके देश के सभी नागरिकों के लिए समान कानून की व्यवस्था कर समानता का अधिकार देना ।
12. हज सब्सिडी व इमामों को सरकारी कोष से वेतन देना बंद करना तथा शत्रु संपत्ति व वफ्फ संपत्ति का राष्ट्रीयकरण करना ।
13. तथ्यों के आलोक में भारतीय इतिहास का पुर्नलेखन कराकर ताजमहल आदि प्राचीन भवनों के वास्तविक निर्माताओं को श्रेय देकर भारत का सुप्त स्वाभिमान जगाना ।
14. विवादस्पद शब्द " राष्ट्रपिता " को प्रतिबंधित कराकर भारत माँ के सम्मान की रक्षा करना ।
15. राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग की स्थापना करना , राष्ट्रीय पैमाने से अधिक संतान पैदा करने पर कठोर दण्ड का प्रावधान करना एवं उन्हें राष्ट्र / राज्य से प्राप्त होने वाली सुविधाओं ( राशनकार्ड / वोटरकार्ड आदि ) से वंचित करना ।
16. जम्मू - कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना तथा कश्मीर के मूल निवासियों का जम्मू - कश्मीर में सुरक्षित पुर्नवास कराना ।
17. केन्द्रिय परीक्षाओं में अंग्रेजी प्रश्नपत्र की अनिवार्यता समाप्त करना तथा संस्कृत , हिन्दी व क्षेत्रिय भाषाओं को वैकल्पित आधार प्रदान करना ।
18. काल गणना के लिए युगाब्ध को अपनाकर राष्ट्रीय पंचांग के रूप में लागू करना ।
19. बडे बाधों की योजनाओं को निरस्त कर पर्यावरण के अनुकूल छोटे - छोटे बांधों की योजना पर कार्य करना ।
20. नदियों का जल राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करना तथा राष्ट्रीय जल आयोग का गठन करना ।

साम्प्रदायिकता के विनाश एवं भारतीय संस्कृति के विकास के लिए हमारी बीस सूत्री कार्ययोजना को पसंद करने वाले मित्रों , भारत माता , गौ माता , गंगा माता के पुजारियों , भगवान राम , कृष्ण के भक्तों , विश्वविजेता सम्राट विक्रमादित्य , अखण्ड भारत के सृजनकर्ता आचार्य चाणक्य , मेवाड़ केशरी महाराणा प्रताप , हिन्दुत्व रक्षक क्षत्रपति शिवाजी , महर्षि दयानन्द सरस्वती , गुरू गोबिन्द सिंह , स्वामी विवेकानन्द , संत रविदास के अनुयायीयों , क्रांतिधर्मी बिरसा मुण्डा , नेताजी सुभाष चन्द्र बोस , वीर सावरकर , भगत सिंह , पं. नाथूराम गोडसे , रानी लक्ष्मीबाई , राजीव भाई दीक्षित के आदर्शवादियों , वेद , शास्त्र , रामायण , गीता के श्रद्धालुओं साम्प्रदायिकता के विनाश एव राष्ट्र - धर्म की रक्षा हेतु अधिक से अधिक हमसे जुड़े , साम्प्रदायिकता विरोधी मोर्चा ( रजिस्टर्ड ) आपका हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करता है ।
रजिस्टर्ड मुख्यालय :- म. न. 60 , KH8/12/1 , गली नं. 1 - A , शहीद भगत सिंह कॉलोनी , करावल नगर , दिल्ली - 110094
Email : svmbharat@gmail.com
संगठन के महत्वपूर्ण मोबाईल नम्बर -
कृष्णपाल सिंह 09756586002
विश्वजीत सिंह ' अनंत ' 09412458954
बाल किशन ' किशना जी ' ( मध्यप्रदेश ) 09827714551
नितेश दहिया ( हरियाणा प्रदेश ) 08930867610
विपिन कुमार सुराण ( उत्तर प्रदेश ) 09997967204
हरीश कुमार शर्मा ( दिल्ली ) 09868354451
चन्द्रभान मिन्हास ( हिमाचल प्रदेश ) 09625569953
धीरज वत्स ( राजस्थान ) 09413357077
इन नम्बरों पर संगठन के जुड़ने हेतु सम्पर्क किया जा सकता है , हमें भारत के सभी राज्यों के सभी जिलों में संगठन की शाखाऐं स्थापित करनी है । बीस सूत्री कार्ययोजना को मानने वाला कोई भी भारतवंशी संगठन का सदस्यता फार्म भर कर इस संगठन से जुड़ सकता है ।
हमें आशा है कि आप सभी का स्नेह , मार्गदर्शन व सहयोग इंटरनैट जगत की भाति धरातल पर भी हमें निरंतर मिलता रहेगा ।
आपका सहयोगाकांक्षी
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '
वन्दे मातरम्
जय माँ भारती ।

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

चंद्रगुप्त और चाणक्य को वृद्धा की सीख

सम्राट चंद्रगुप्त एवं चाणक्य की वीरता एवं बुद्धिमता का लोहा सभी मानते है , चाणक्य की कुटनीति विश्व की सर्वश्रेष्ठ कुटनीति मानी जाती है , फिर भी एक बार उनसे गलती हो गई थी और जिसके फलस्वरूप उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था । दरअसल नन्द राज्य को जीतने के लिये उन लोगों ने सीधा पाटलीपुत्र पर ही हमला कर दिया था और इस कारण उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा और मारे - मारे जंगलों में भी भटकना पड़ा था ।
इसी प्रकार जब वो भूखे - प्यासे एक दिन जंगल में भटक रहे थे तो उन्हें एक झोपड़ी दिखी । झोपड़ी के पास पहुँच कर जब उन्होंने आवाज दी तो अंदर से एक वृद्धा निकली । वह अत्यंत ही गरीब थी परन्तु उसका हृदय अत्यंत विशाल एवं प्रेम से परिपूर्ण था ।
जब उस वृद्धा ने अपने द्वार पर दो - दो अतिथितियों को देखा , तो वह खुशी से जैसे पागल हो गई । उसे यह नहीं पता था कि उसकी कुटिया में सम्राट चंद्रगुप्त एवं उनके बुद्धिमान मंत्री चाणक्य आये है । वह वृद्धा उन्हें केवल अतिथि मान कर उनकी आवाभगत करने लगी । उन्हें बड़े सम्मान से टूटी खाट पर बिठाया और ठंडा पानी पिलाया ।
कुछ देर बाद वृद्धा ने देखा कि अतिथि तो वहीं पर बैठे है और कुछ परेशान से लग रहे है । तो उसने अपने अतिथियों से कहा - ' तुम लोग थके परेशान से लग रहे हो । यही बैठकर आराम करो , तब तक मैं कुछ खाना बनाती हूँ । '
शाम होने को थी । वृद्धा ने अपनी कुटिया के एक कोने में बने चूल्हे को जलाया और उस पर खिचड़ी बनाने को रख दी । थोड़ी ही देर बाद वृद्धा का लड़का खेत से लौटा और अपनी माँ से बोला - ' मुझे कुछ खाने को दो , बहुत जोर से भूख लगी है । ' खिचड़ी बनकर तैयार हो चुकी थी । वृद्धा ने अपने पुत्र के सामने खिचड़ी भरी थाली परोस दी । पुत्र बहुत भूखा था । उसने शीघ्रता पूर्वक अपना हाथ खिचड़ी में डाल दिया और जोर से चीख पड़ा । वृद्धा अपने पुत्र की चीख सुनकर घबराते हुये उसके पास पहुँची और पूछा - ' क्या हुआ , तुम चीखे क्यों थे ? ' , ' कुछ नहीं माँ , खिचड़ी बहुत गर्म थी । मेरा हाथ जल गया । ' लड़के ने उत्तर दिया । पुत्र की व्याकुलता की भर्त्सना करते हुए वृद्धा बोली - ' अरे अभागे ! क्या तू भी चंद्रगुप्त और चाणक्य जैसा ही बेवकूफ है । '
वृद्धा की जुबान पर अपना नाम सुनते ही चन्द्रगुप्त और चाणक्य के कान खड़े हो गये । उन्होंने वृद्धा से पूछा - ' अम्मा , चंद्रगुप्त एवं चाणक्य आखिर मूर्ख कैसे है , उन्होंने क्या मूर्खता की है ? और फिर आपने अपने पुत्र को उनका उद्दाहरण क्यों दिया ? '
वृद्धा हास्यपूर्ण मुद्रा में बोली - ' देखों बेटा , राजा चंद्रगुप्त और चाणक्य ने गलती की थी , तभी तो मैं उनका उदाहरण अपने पुत्र को दे रही थी । चंद्रगुप्त एक शक्तिशाली राजा है और चाणक्य उनका बुद्धिमान मंत्री है । वो लोग नन्द वंश का नाश करना चाहते थे पर उनमें इतनी भी बुद्धि नहीं थी कि पहले आसपास के छोटे - मोटे राजाओं को जीतते , तब राजधानी पर आक्रमण करते । इससे जीते हुये राजाओं का भी उन्हें सहयोग प्राप्त हो जाता । परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया । उन मूर्खो ने सीधे ही बीच में जाकर राजधानी पाटलीपुत्र पर चढ़ाई कर दी और किसी की सहायता न मिलने के कारण वो हार गये ।
ठीक इसी प्रकार मेरे पुत्र ने भी आचरण किया । उसने भी गर्म खिचड़ी में ही सीधे हाथ डाल दिया । उसे चाहिये था कि पहले आस पास यानि की थाली के किनारों की खिचड़ी लेकर ठंडा करता और फिर उसे खाता । '
वृद्धा की बात सुनकर चंद्रगुप्त और चाणक्य की आखें खुल गई । उन्होंने उसकी बात को सीख मानकर और अपनी बुद्धि का उपयोग करके , अंत में नन्द पर विजय प्राप्त कर नन्दवंश का नाश कर दिया ।


राष्ट्र सेवा के संकल्पी मित्रों यदि हमें सच में माँ भारती और इसकी संस्कृति की रक्षा करनी है , तो वेकिटन या अरबपंथीयों पर विजय करने से पूर्व हमें अपने देश के छद्म सेक्यूलर दरिंदों पर विजय प्राप्त करनी होगी । हमें असली खतरा इन्ही गद्दारों से है , यदि ये गद्दार न होते तो भारत कदापि बाहर से आई कुछ मुठ्ठीभर साम्राज्यवादी साम्प्रदायिक ताकतों का गुलाम न बना होता ।
वन्दे मातरम्
जय जय माँ भारती ।
- विश्वजीत सिंह 'अनंत'

आचार्य कृपलानी और उनकी जाति ?

रेल यात्रा कर रहे एक तिलकधारी सेठजी ने जब अपना भोजन का डिब्बा खोलना चाहा तो पास ही बैठे खद्दरधारी नेता को देख उन्हें शंका हुई । उन्होंने पूछा , ' नेताजी , आप किस जाति के है ? '
' जाति न पूछो साधू की , पूछ लीजिए ज्ञान ' यह कहावत क्या आपने नहीं सुनी ? नेताजी ने प्रश्न किया । ' साधू से नहीं पूछेंगे , पर आप तो गेरूवे कपड़े नहीं पहने हो । खादी तो आज कल मेहतर से लेकर ब्रह्मण , बनिये सभी नेतागिरी चमकाने के लिए पहनते है । ' सेठजी ने उत्तर दिया ।
' नहीं सेठजी , जाति बताने या छुपाने से कुछ नहीं होता ', यह कह कर नेताजी समाचार पत्र पढ़ने लगे । फिर भी सेठजी का आग्रह पूर्ववत् जारी रहा । अन्त में कुछ सोच कर नेताजी बोले , ' किसी एक जाति का होऊँ तो बताऊँ । '
सेठजी ने व्यंग्य किया , ' तो फिर क्या आप वर्ण - संकर है ? लगता है आपके पिताजी ने किसी दूसरी जाति की लड़की से विवाह किया था । '
नेताजी के चरित्र पर चोट थी , पर नेताजी ने मार्मिक व्यंग्यशैली में चुटकी लेते हुए कहा , ' सेठजी जाति ही पूछ रहे हो तो सुनिए - प्रातःकाल जब मैं घर , आंगन , शौचालय की सफाई करता हूँ , तो पूरी तरह मेहतर हो जाता हूँ । जब अपने जूते साफ करता हूँ , तब चमार , दाड़ी बनाते समय नाई , कपड़े धोते समय धोबी , पानी भरते समय कहार , हिसाब करते समय बनिया , कॉलेज में पढ़ाते समय ब्रह्मण हो जाता हूँ । अब आप ही बताएँ मेरी जाति ? '
तब तक स्टेशन आ गया । स्वागत में आयी अपार भीड़ ने नेताजी को हार-मालाओं से लाद दिया । सेठ अवाक् ' आचार्य कृपलानी जिन्दाबाद ' के गगनभेदी नारों के बीच कभी अपने को देखता था , कभी नेताजी अर्थात् आचार्य कृपलानी को ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

रविवार, 1 जनवरी 2012

भारत के लिए घातक है आतंकवादियों के प्रति छद्म सैक्युलरवादी शक्तियां का समर्थन !!!

अभी अधिक समय नहीं हुआ जब पाकिस्तान के दक्षिणी सिंध प्रांत के चक कस्बे में हिन्दू चिकित्सक डॉ. अजीत और उनके दो परिजनों नरेश व अशोक कुमार की हत्या कर दी गई। हमले में एक अन्य चिकित्सक डॉ. सत्यपाल गंभीर रूप से घायल हुए है। अंतर्राष्ट्रीय दबाव में प्रशासन ने दोषियों के खिलाप जो भी कार्रवाही की, उसका पाकिस्तान की जनता ने हड़ताल और विरोध प्रदर्शनों द्वारा भारी विरोध किया। असुरक्षा के वातावरण में कुछ अल्पसंख्यक हिन्दू पर्यटक वीजा पर पाकिस्तान से भागकर भारत में आ गये। भारत में फिलस्तीनी नागरिकों के अधिकारों और कश्मीर के अलगाववादियों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए सड़कों पर उतर आने वाले मानवाधिकारी और छद्म सैक्युलर बुद्धिजीवी पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर खामोश क्यों हैं?
कश्मीर समस्या पर विचार करते हुए सैक्युलर बुद्धिजीवी चाहते है कि घाटी की चर्चा हो, किन्तु कश्मीर के मूल निवासियों के बलात् निर्वासन पर चिन्ता व्यक्त न की जाए। वे अलगाववादी आतंकी नेताओं को ही स्थानीय आबादी का प्रतिनिधि मानते हैं। क्या मानवाधिकार और धर्मनिरपेक्षता के समस्त लाभ घाटी के पाकिस्तानपरस्त अलगाववादियों के लिए ही निश्चित होने चाहिए? अमेरिका में सत्तारूढ़ डैमोक्रेटिक पार्टी के सांसद फ्रैंक पॉलोन ने अमेरिकी संसद में प्रस्ताव पेश कर कहा है कि कश्मीर के मूल निवासी और अपनी धरोहर व संस्कृति को हजारों सालों से सहेजे रखने वाले कश्मीरी पंडितों की धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का वर्ष 1989 से ही हनन हो रहा है।1989 में घाटी में करीब 4 लाख कश्मीरी पंडित थे, इस्लामी जेहादियों के उत्पीड़न के कारण घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ और अब वहां केवल 4000 कश्मीरी पंडित ही शेष रह गए है। क्या ऐसा उदाहरण संसार के किसी दूसरे देश में मिल सकता है, जहां अपने ही देश के एक भाग में वहां के बहुसंख्यक 2 दशक से भी कम समय में नगण्य हो गए हों?
महाश्वेता देवी और अरूंधती रॉय दोनों की एक सैक्युलर साहित्यकार के रूप में विशेष प्रतिष्ठा है किन्तु जब भी किसी सामाजिक विषय पर उनकी जबान चलती है तो इसका खुलासा होते देर नहीं लगती कि दोनों न केवल मूल वास्तविक समस्या से अनभिज्ञ है बल्कि उनकी सोच किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। नक्सली आतंकवाद आज भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है जिसे प्रारम्भिक टाल-मटोल के बाद अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लिया है, किन्तु देश में मानवाधिकारियों-सैक्युलर बुद्धिजीवियों के नाम पर एक सशक्त समूह भी विद्यमान है जो हिंसा पर विश्वास करने वाले नक्सलियों को 'जन नायक' बताता है।
गुजरात दंगों के दौरान अरूंधति रॉय की कलम खूब चली किन्तु उनके दुश्प्रचार की कलाई पीड़ित परिवार के एक व्यक्ति ने ही खोल दी। सांसद एहसान जाफरी के घर हुए हमलों का उल्लेख उन्होंने इस तरह किया था मानो वह घटनास्थल पर प्रत्यक्षदर्शी रही हो। जाफरी की बेटी के साथ बलात्कार और दंगाइयों द्वारा तलवार से उसका पेट चीर डालने के उनके क्षूठ ने समाज के एक वर्ग को कितना उद्वेलित किया होगा, सहज सोचा जा सकता है। बाद में पता चला की जाफरी की बेटी तो अमेरिका में सुरक्षित है और इसका खुलासा स्वयं जाफरी के बेटे ने किया था। राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तब उन्होंने हिन्दू समाज की छवि कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। नक्सलियों द्वारा हथियार उठाए जाने को भी वे अपवादों की आड़ में न्यायोचित ठहराती है।" यदि मैं एक विस्थापित पुरूष होती जिसकी पत्नी बलात्कार का शिकार हो चुकी है तथा उसकी जमीन छी ली गई है और अब जिसे पुलिस बल का सामना करना पड़ रहा है तो मेरे द्वारा हथियार उठाया जाना न्यायोचित होगा।"
नक्सली कहां के विस्थापित है? यदि नक्सली विकास और अवसरों से वंचित होकर हताश हुए आदिवासियों का समूह मात्र है तो सरकार द्वारा किये जा रहे विकास कार्यो का विरोध क्यों ? छिटपुट कुटीर उद्योग और कारखाने लगाकर स्थानीय आदिवासियों को रोजगार देने वाले कारोबारियों से जबरन वसुली कर उन्हें पलायन के लिए मजबूर क्यों किया जाता है।
अमेरिका ने 9/11 के आतंकी हमले के बाद एक ओर जहां इस तरह के हमलों की पुनरावृत्ति नहीं होने दी, वही इस अमानवीय कार्य के जिम्मेदार आतंकियों को उनके अंजाम तक भी पहुंचाया। दूसरी ओर भारत संसद और मुम्बई पर हुए हमले के असली गुनाहगारों को पकड़ पाने में नाकाम रहा है और जिन लोगों को गिरफ्तार किया भी गया है, उनमें से एक अफजल गुरू सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फांसी की सजा सुनाए जाने के बावजूद सरकारी मेहमाननवाजी का आनंद ले रहा है तो दूसरे अजमल कसाब को तमाम साक्ष्यों के बावजूद अब तक जिन्दा रखा गया है और उस पर सरकारी सूत्र के अनुसार 35 करोड़ रूपए से ज्यादा धन खर्च हो चुका है। कुछ छद्म सैक्युलर दरिंदे तो अफजल गुरू की फांसी माफ कराने के लिए मुहिम भी चला रहे है उनकी संस्थाओं को संदिग्ध विदेशी स्रोतों से धन और पुरूस्कार मिलते है।
वोट बैंक की राजनीति के कारण कोई भारतीय नेता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को, कोई अफजल गुरू जैसे दुर्दांत आतंकी को तथा कोई आतंकवादी दविंद्र सिंह भुल्लर को राष्ट्रपति की माफी द्वारा फांसी से बचाना चाहता है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में एक तरह से कानून तोड़ने वाले लोगों के मानवाधिकार मामलों की हिमायत करने वाले लोगों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि कोई भी भुखमरी, किसानों की आत्महत्या और आतंकवादी हिंसा में सुरक्षा कर्मियों के मारे जाने की बात क्यों नहीं कर रहा। कई सुरक्षा कर्मियों ने संसद की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिये। क्या किसी ने उनकी भावनाओं के बारे में सोचा। उनके मानवाधिकारों का क्या?
दिल्ली के बाटला हाऊस से लेकर मुम्बई हमले तक ऐसे कई उदाहरण है जो भारत के उन बुद्धिजीवियों के चेहरे को बेनकाब करते है जो सैक्युलरवाद के नाम पर आतंकवादियों का समर्थन कर राष्ट्रद्रौह करते है।
- विश्वजीत सिंह 'अनंत'