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बुधवार, 19 सितंबर 2012
नेहरू ने नेताजी को ब्रिटेन का युद्ध अपराधी कहा था !
जवाहर लाल नेहरू ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली को पत्र लिख कर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को ब्रिटेन का युद्ध अपराधी बताया था और रूस द्वारा उन्हें पनाह देने को द्रोह और विश्वासघात करार दिया था ।
नेहरू के इस पत्र को विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमलेंदु गुहा ने अपनी पुस्तक ' नेताजी सुभाष : आइडियोलाजी एंड डाक्ट्रीन ' में प्रकाशित किया है । लेकिन पुस्तक का विमोचन करते हुए पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरामन ने पुस्तक में उद्धत इस पत्र पर असहमति जताई थी, उनका मानना था कि नेहरू की ऐसी भाषा नहीं है और उन्हें लगता है कि उन्होंने ऐसा पत्र नहीं लिखा होगा । श्री वेंकटरमण ने इस पर भी सवाल उठाया था कि नेहरू का पत्र प्रधानमंत्री के लैटरपैड पर नहीं है और जब भी कोई प्रधानमंत्री किसी दूसरे देश के प्रधानमंत्री को पत्र भेजता है तो आधिकारिक रूप से अपने लैटरपैड पर लिखता है ।
नार्वे में ओस्लो स्थित ' इंस्टीट्यूट फॉर एल्टरनेटिव डेवलपमेंट रिसर्च ' के निदेशक और इस पुस्तक के लेखक श्री अमलेंदु गुहा ने श्री वंकेटरमन की आपत्ति का उत्तर जोरदार तरीके से देते हुए कहा कि नेहरू ने वास्तव में ऐसा पत्र लिखा था और यह पत्र लंदन के ब्रिटिश अभिलेखागार में सुरक्षित है । उन्होंने कहा कि नेहरू ने यह पत्र सादे कागज पर उस समय लिखा था, जब वह प्रधानमंत्री थे ही नहीं और इसलिए यह सरकारी रिकार्ड में नहीं है ।
विश्व के छह राष्ट्राध्यक्षों के आर्थिक सलाहकार रह चुके प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री अमलेंदु गुहा द्वारा लिखित इस पुस्तक में प्रकाशित पत्र के अनुसार पंडित नेहरू ने लिखा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को रूस ने अपने यहां प्रवेश करने की इजाजत देकर द्रोह और विश्वासघात किया है । पत्र के अनुसार उन्होंने लिखा था कि रूस चूंकि ब्रिटिश, अमेरिकियों का मित्र राष्ट्र है, इसलिए रूस को ऐसा नहीं करना चाहिए । पत्र में लिखा था कि इस पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए ।
श्री गुहा ने पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है कि पंडित नेहरू के मन में नेताजी के लिए व्यक्तिगत नापसंदगी थी और वह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को नेताजी के बारे में गोपनीय सूचना देने में नहीं हिचके । प्रस्तावना में कहा गया है कि पंडित नेहरू ने यह पत्र डिक्टेट कराया था, आसफ अली के विश्वस्त स्टेनो शामलाल ने अपने हलफनामे में इसकी पुष्टि भी की है । श्री गुहा ने कहा कि उन्होंने जो लिखा है, उस पर वह कायम है ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '
नेहरू के इस पत्र को विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमलेंदु गुहा ने अपनी पुस्तक ' नेताजी सुभाष : आइडियोलाजी एंड डाक्ट्रीन ' में प्रकाशित किया है । लेकिन पुस्तक का विमोचन करते हुए पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरामन ने पुस्तक में उद्धत इस पत्र पर असहमति जताई थी, उनका मानना था कि नेहरू की ऐसी भाषा नहीं है और उन्हें लगता है कि उन्होंने ऐसा पत्र नहीं लिखा होगा । श्री वेंकटरमण ने इस पर भी सवाल उठाया था कि नेहरू का पत्र प्रधानमंत्री के लैटरपैड पर नहीं है और जब भी कोई प्रधानमंत्री किसी दूसरे देश के प्रधानमंत्री को पत्र भेजता है तो आधिकारिक रूप से अपने लैटरपैड पर लिखता है ।
नार्वे में ओस्लो स्थित ' इंस्टीट्यूट फॉर एल्टरनेटिव डेवलपमेंट रिसर्च ' के निदेशक और इस पुस्तक के लेखक श्री अमलेंदु गुहा ने श्री वंकेटरमन की आपत्ति का उत्तर जोरदार तरीके से देते हुए कहा कि नेहरू ने वास्तव में ऐसा पत्र लिखा था और यह पत्र लंदन के ब्रिटिश अभिलेखागार में सुरक्षित है । उन्होंने कहा कि नेहरू ने यह पत्र सादे कागज पर उस समय लिखा था, जब वह प्रधानमंत्री थे ही नहीं और इसलिए यह सरकारी रिकार्ड में नहीं है ।
विश्व के छह राष्ट्राध्यक्षों के आर्थिक सलाहकार रह चुके प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री अमलेंदु गुहा द्वारा लिखित इस पुस्तक में प्रकाशित पत्र के अनुसार पंडित नेहरू ने लिखा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को रूस ने अपने यहां प्रवेश करने की इजाजत देकर द्रोह और विश्वासघात किया है । पत्र के अनुसार उन्होंने लिखा था कि रूस चूंकि ब्रिटिश, अमेरिकियों का मित्र राष्ट्र है, इसलिए रूस को ऐसा नहीं करना चाहिए । पत्र में लिखा था कि इस पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए ।
श्री गुहा ने पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है कि पंडित नेहरू के मन में नेताजी के लिए व्यक्तिगत नापसंदगी थी और वह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को नेताजी के बारे में गोपनीय सूचना देने में नहीं हिचके । प्रस्तावना में कहा गया है कि पंडित नेहरू ने यह पत्र डिक्टेट कराया था, आसफ अली के विश्वस्त स्टेनो शामलाल ने अपने हलफनामे में इसकी पुष्टि भी की है । श्री गुहा ने कहा कि उन्होंने जो लिखा है, उस पर वह कायम है ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '
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मौका बढ़िया ताड़ के, नेहरु लेते साध |
जवाब देंहटाएंनेता जी से हो गया, शुद्ध युद्ध अपराध |
शुद्ध युद्ध अपराध, भेज कर चिट्ठा बरसे |
सहा सोवियत रूस, सभी गोरे थे हरसे |
बना ब्रिटिश अभिलेख, आज रविकर नहिं चौका |
नेहरु का कश्मीर, गालियों का है मौका ||
बात विवादास्पद तो है...पर इस पर अब तक पूरी तरह से प्रकाश नहीं पड़ा है। हालांकि ये सच है कि ब्रिटिश रिकॉर्ड में नेताजी काफी दिनों तक युद्ध अपराधी रहे थे।
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