सोमवार, 15 नवंबर 2010

सुर्दशन के बयान पर तनाव क्योँ


बुधवार को भोपाल मेँ संघ के घरने मेँ राष्टीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सर संघ चालक श्री कुप्प सी सुर्दशन ने यूपीये अध्यक्षा सोनिया गाँधी पर लग रहे आरोपो की पुर्नावृत्रि क्या कर दी की पूरे देश मेँ लाखोँ स्थानोँ पर उनके पुतले फुंके जा रहे है ।हमारे देश के माननीय सांसदोँ और सम्मानीय नेताओँ ने उन्हेँ मानसिक रुप से दिवालिया तक कह दिया ।शायद उन्हे यह भी ज्ञात नहीँ कि 17 अप्रैल 2004 को `द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' मेँ एस गुरुमूर्ति ने शौधलेख `अनमास्किँग सोनिया गाँधी' लिखकर सोनिया गाँधी पर उससे भी बडे तथ्यपूर्ण आरोप लगाये थे । कहा गया है कि जैसा राजा करता है प्रजा भी वैसा ही करती है ।यदि आप किसी के मुँह पर तमाचा मारनेँ का साहस करते है तो आपको भी मुक्का सहने को तैयार रहना चाहिये ।क्योँकि ईंट का जबाब पत्थर होता है ।यदि आप किसी के विरुद्ध तीखी भाषाशैली का प्रयोग करते है तो आपको भी अपने कानोँ को पत्थर की तरह कठोर बना लेना चाहियेँ । संस्कृति और मानवता को अपने पैरोँ तले कुचल देने वाले गाँधी और नेहरु के मानसपुत्रोँ की भाषाशैली स्वतंत्रता के बाद से अब तक क्या कर रही है ? यह सर्वविदित है । जब भरी जनसभा मे सोनिया ने लोकतंत्रात्मक रुप से चुने गये गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को मौत का सोदागर कह कर पुकारा था,और उसके पुत्र राहुल गाँधी ने संघ और सीमी को एक ही तरह का आतंकी संगठन करार दिया था, तब वह कौन सी मर्यादित भाषाशैली थी ।जब भरी जनसभा मे यूपीये के प्रधानमन्त्री ने समस्त संसाधनोँ पर एक सम्प्रदाय विशेष (मुसलमानोँ) का अधिकार जताया था, और भारत सरकार के केन्दिय मन्त्री ने हिन्दुओँ को बर्बर आतंकवादी कह कर पुकारा था और सम्पूर्ण भगवा परिवार को नृशंस हत्यारा कहा था, तो वह कौन सी मर्यादित भाषाशैली थी । राजनीतिक वोटोँ के सोदागर संस्कृति, मानवता और लोकतन्त्र को गाँधी-नेहरु परिवार के श्री चरणोँ मे समर्पित कर चुके है । गाँधी-नेहरु के वंशज दूसरों के बारे मे चाहे कुछ भी टिप्पणी करे उन्हे वह स्वीकार है । लेकिन उनके बारे मे किसी भी टिप्पणी को न तो वे बर्दाश्त कर सकते है और न ही टिप्पणीकार को अपना पक्ष रखने का कोई अवसर दे सकते है । लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, राष्टपितामह सुभाष चन्द्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, सरदार वल्लभ भाई पटेल भी तो कांग्रेसी थे उन पर तो कोई अंगुली नही उठती, तो फिर गाँधी-नेहरु परिवार पर ही अंगुली क्योँ उठती है , यह एक विचारणीय विषय है । सुर्दशन ने जो भी कहा एक जागरुक नागरिक की हैसियत से कहा है । अतःउनके बयान पर तनाव पैदा करना राष्ट् के हित में नहीँ हैँ ।
- विश्वजीत सिंह 'अनंत'

रविवार, 14 नवंबर 2010

नाथूराम गोडसे के शहीद दिवस 15 नवम्बर के अवसर पर, फाँसी लगने से 5 मिनट पूर्व दिया गया उनका दिव्य संदेश

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वास्तव मेँ मेरे जीवन का उसी समय अन्त हो गया था जब मैँने गाँधी जी पर गोली चलायी थी । मैँ मानता हूँ कि गाँधी जी ने देश के लिए बहुत कष्ट उठाए । जिसके कारण मैँ उनकी सेवा के प्रति एवं उनके प्रति नतमस्तक हूँ, लेकिन इस देश के सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि के विभाजन का अधिकार नहीँ था । मैँ किसी प्रकार की दया नहीँ चाहता हूँ । मैँ यह भी नहीँ चाहता कि मेरी ओर से कोई और दया की याचना करेँ । यदि अपने देश के प्रति भक्ति-भाव रखना पाप है तो मैँ स्वीकार करता हूँ कि यह पाप मैँने किया है । यदि वह पुण्य है तो उससे उत्पन्न पुण्य पर मेरा नम्र अधिकार है । मुझे विश्वास है की मनुष्योँ के द्वारा स्थापित न्यायालय से ऊपर कोई न्यायालय हो तो उसमेँ मेँरे कार्य को अपराध नही समझा जायेगा । मैँने देश और जाति की भलाई के लिए यह कार्य किया है ! मैँने उस व्यक्ति पर गोली चलाई जिसकी नीतियोँ के कारण हिन्दुओ पर घोर संकट आये और हिन्दू नष्ट हुए ! मुझे इस बात मेँ लेशमात्र भी सन्देह नहीँ की भविष्य मे किसी समय सच्चे इतिहासकार इतिहास लिखेँगे तो वे मेरे कार्य को उचित आंकेगे । - नाथूराम गोडसे