' जाति न पूछो साधू की , पूछ लीजिए ज्ञान ' यह कहावत क्या आपने नहीं सुनी ? नेताजी ने प्रश्न किया । ' साधू से नहीं पूछेंगे , पर आप तो गेरूवे कपड़े नहीं पहने हो । खादी तो आज कल मेहतर से लेकर ब्रह्मण , बनिये सभी नेतागिरी चमकाने के लिए पहनते है । ' सेठजी ने उत्तर दिया ।
' नहीं सेठजी , जाति बताने या छुपाने से कुछ नहीं होता ', यह कह कर नेताजी समाचार पत्र पढ़ने लगे । फिर भी सेठजी का आग्रह पूर्ववत् जारी रहा । अन्त में कुछ सोच कर नेताजी बोले , ' किसी एक जाति का होऊँ तो बताऊँ । '
सेठजी ने व्यंग्य किया , ' तो फिर क्या आप वर्ण - संकर है ? लगता है आपके पिताजी ने किसी दूसरी जाति की लड़की से विवाह किया था । '
नेताजी के चरित्र पर चोट थी , पर नेताजी ने मार्मिक व्यंग्यशैली में चुटकी लेते हुए कहा , ' सेठजी जाति ही पूछ रहे हो तो सुनिए - प्रातःकाल जब मैं घर , आंगन , शौचालय की सफाई करता हूँ , तो पूरी तरह मेहतर हो जाता हूँ । जब अपने जूते साफ करता हूँ , तब चमार , दाड़ी बनाते समय नाई , कपड़े धोते समय धोबी , पानी भरते समय कहार , हिसाब करते समय बनिया , कॉलेज में पढ़ाते समय ब्रह्मण हो जाता हूँ । अब आप ही बताएँ मेरी जाति ? '
तब तक स्टेशन आ गया । स्वागत में आयी अपार भीड़ ने नेताजी को हार-मालाओं से लाद दिया । सेठ अवाक् ' आचार्य कृपलानी जिन्दाबाद ' के गगनभेदी नारों के बीच कभी अपने को देखता था , कभी नेताजी अर्थात् आचार्य कृपलानी को ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '
यही सच है
जवाब देंहटाएंआज के दौर में यदि इंसान आंख खोल कर देखे तो यही सच है अब कोई जाती नहीं रह गयी है |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सटीक जगह चोट करने वाला लेख है........................
जय श्री राम
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