भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वीर ऊधम सिंह ( राम मोहम्मद सिंह आजाद ) का बलिदान अनुपम एवं प्रेरणीय है और उनकी गणना देश के प्रथम पंक्ति के बलिदानियों में होती है । आम धारणा है कि उन्होंने जलियाँवाला बाग नरसंहार के उत्तरदायी जनरल डायर को 13 मार्च 1940 में लन्दन में जाकर गोली मारी और निर्दोष भारतीयों की हत्या का बदला लिया । लेकिन जनरल डायर तो 1927 में कई तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर मर गया था , तो फिर ऊधम सिंह ने किसको मारा ! वास्तव में ऊधम सिंह ने माइकल ओडवायर को मारा था , जो जलियाँवाला बांग नरसंहार के समय पंजाब का गर्वनर था ।
ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब प्रान्त के संगरूर जिले के सुनाम गॉव में हुआ था । बचपन में ही इनके माता - पिता का निधन हो गया था और इनका पालन - पोषण अमृतसर के एक अनाथालय में हुआ । अंग्रेजों का शासन था और अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर अमानवीय अत्याचार किये जा रहे थे । 13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग का जघन्य नरसंहार ऊधम सिंह ने अपनी आखों से देखा था । उन्होंने देखा कि कुछ ही समय में जलियाँवाला बाग खून में नहा गया और असहाय निहत्थे नागरिकों पर अंग्रेजी शासन का बर्बर अत्याचार और लाशों का अंबार । इस जुल्म को देखकर उनके स्वाभिमान को भारी ठेस पहुँची और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर निर्दयी डायर से इसका बदला लेने की प्रतिज्ञा की । उन्होंने अनाथालय छोड दिया और क्रान्तिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लडाई में शामिल हो गए ।
जलियाँवाला बाग नरसंहार का बदला लेने हेतु 1923 में वह इंग्लैंड गए , परन्तु 1927 में प्राकृतिक कारणों से जनरल डायर की मृत्यु हो जाने के कारण अपना लक्ष्य असफल होने पर 1928 में भारत वापस लौट आए । इंगलैंड से वह एक पिस्तौल साथ लेकर आए थे जिसे अंग्रेज सरकार ने पकड लिया और उन पर मुकद्दमा चला जिसमें उन्हें चार वर्ष के कारावास की सजा दी गई । वह 1932 में जेल से रिहा हुए । वह फिर इंगलैंड पहुँचे और वहाँ 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे । जनरल डायर मर चुका था , किन्तु उसके अपराध पर मोहर लगाने वाला सर माइकल ओडवायर अभी जीवित था । ऊधम सिंह को निर्दोष भारतीयों के जघन्य हत्याकांड का बदला लेना था । उन्होंने अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु एक कार और छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली । तथा ओडवायर को ढिकाने लगाने के लिए उचित समय की प्रतिक्षा करने लगे ।
अंततः वह समय आ गया जब ऊधम सिंह की योजना सफल होनी थी । 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लन्दन के काक्सटन हॉल में एक भारी सभा का आयोजन था जिसमें माइकल ओडवायर भी वक्ताओं में से एक था । ऊधम सिंह बढिया अंग्रेजी सूट पहने , हाथ में एक पुस्तक लिए उस सभा में पहुँच गए । अपनी पुस्तक के पन्नों में कटिंग करके उसमें उन्होंने रिवाल्वर रख लिया था । ओडवायर उठा और उसने अपना भाषण आरम्भ किया । अपनी प्रशंसा करते हुए उसने कहा कि मैंने भारतीयों को सदा के लिए कुचल दिया है और अब वे स्वतंत्रता का नाम लेना भुल जाएंगे । ऊधम सिंह का खून खौल उठा । उन्होंने पुस्तक में से रिवाल्वर निकाला और गोलियाँ चला कर ओडवायर को सभा के मंच पर ही ढेर कर दिया । सभा में भगदड मच गयी पर ऊधम सिंह भागे नहीं । अपनी प्रतिज्ञा पूरी करके वह दृढता से वही खडे रहे और निर्भयापूर्ण स्वर में कहा - ' माइकल ओडवायर को मैंने मारा है । ' ऊधम सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके विरूद्ध मुकद्दमा चलाया गया । जब उनसे उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने राष्ट्रीय एकता की भावना में अपना नाम ' राम मोहम्मद सिँह आजाद ' बताया ।
न्यायालय में उनसे पूछा गया कि वह डायर के अन्य साथियों को भी मार सकते थे , लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया । ऊधम सिंह ने उत्तर दिया कि वहाँ पर कई स्त्रियाँ भी थी और भारतीय संस्कृति में स्त्रियाँ पर हमला करना पाप है । 4 जून 1940 को अंग्रेज न्यायाधीश ने ऊधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया था और फाँसी की सजा सुनाई । इस पर वीर ऊधम सिंह ने कहा था - ' यह काम मैंने किया माइकल असली अपराधी था , उसके साथ ऐसा ही किया जाना चाहिए था । वह मेरे देश को कुचलना चाहता था , मैंने उसे कुचल दिया । पूरे 21 वर्ष तक मैं प्रतिशोध की आग में जलता रहा , मुझे खुशी है कि मैंने यह काम पूरा किया । मैं अपने देश के लिए मर रहा हूँ , मेरा इससे बडा और क्या सम्मान हो सकता है कि मैं मातृभूमि के लिए मरू । ' 31 जुलाई 1940 को वीर ऊधम सिंह को फाँसी दे दे गई और इस तरह इस मृत्युंजयी ने अपना जीवन देश पर बलिदान कर दिया ।
जुलाई 1974 में इस महान बलिदानी की अस्थियाँ भारत सरकार ने इंगलैंड से भारत मंगवाई , जो उनके जन्म स्थान सुनाम में उस समाधि में रखी गई , जो उनकी स्मृति में बनाई गई है ।
अमर शहीद ऊधम सिंह को उनके बलिदान दिवस पर कोटि - कोटि नमन ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '