गुरुवार, 23 जून 2011

मृत्यु पत्र - अमर बलिदानी वीर नाथूराम गोडसे

प्रिय बन्धो चि. दत्तात्रय वि. गोडसे
मेरे बीमा के रूपिया आ जायेंगे तो उस रूपिया का विनियोग अपने परिवार के लिए करना । रूपिया 2000 आपके पत्नी के नाम पर , रूपिया 3000 चि. गोपाल की धर्मपत्नी के नाम पर और रूपिया 2000 आपके नाम पर । इस तरह से बीमा के कागजों पर मैंने रूपिया मेरी मृत्यु के बाद मिलने के लिए लिखा है ।
मेरी उत्तरक्रिया करने का अधिकार अगर आपकों मिलेगा तो आप अपनी इच्छा से किसी तरह से भी उस कार्य को सम्पन्न करना । लेकिन मेरी एक ही विशेष इच्छा यही लिखता हूँ ।
अपने भारतवर्ष की सीमा रेखा सिंधु नदी है जिसके किनारों पर वेदों की रचना प्राचीन द्रष्टाओं ने की है ।
वह सिंधुनदी जिस शुभ दिन में फिर भारतवर्ष के ध्वज की छाया में स्वच्छंदता से बहती रहेगी उन दिनों में मेरी अस्थि या रक्षा का कुछ छोटा सा हिस्सा उस सिंधु नदी में बहा दिया जाएँ ।
मेरी यह इच्छा सत्यसृष्टि में आने के लिए शायद ओर भी एक दो पीढियों ( Generations ) का समय लग जाय तो भी चिन्ता नहीं । उस दिन तक वह अवशेष वैसे ही रखो । और आपके जीवन में वह शुभ दिन न आया तो आपके वारिशों को ये मेरी अन्तिम इच्छा बतलाते जाना । अगर मेरा न्यायालीन वक्तव्य को सरकार कभी बन्धमुक्त करेगी तो उसके प्रकाशन का अधिकार भी मैं आपको दे रहा हूँ ।
मैंने 101 रूपिया आपकों आज दिये है जो आप सौराष्ट्र सोमनाथ मन्दिर पुनरोद्धार हो रहा है उसके कलश के कार्य के लिए भेज देना ।
वास्तव में मेरे जीवन का अन्त उसी समय हो गया था जब मैंने गांधी पर गोली चलायी थी । उसके पश्चात मानो मैं समाधि में हूँ और अनासक्त जीवन बिता रहा हूँ । मैं मानता हूँ कि गांधी जी ने देश के लिए बहुत कष्ट उठाएँ , जिसके लिए मैं उनकी सेवा के प्रति और उनके प्रति नतमस्तक हूँ , किन्तु देश के इस सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि का विभाजन करने का अधिकार नहीं था ।
मैं किसी प्रकार की दया नहीं चाहता और नहीं चाहता हूँ कि मेरी ओर से कोई दया की याचना करें । अपने देश के प्रति भक्ति-भाव रखना अगर पाप है तो मैं स्वीकार करता हूँ कि वह पाप मैंने किया है । अगर वह पुण्य है तो उससे जनित पुण्य पर मेरा नम्र अधिकार है । मुझे विश्वास है की मनुष्यों के द्वारा स्थापित न्यायालय से ऊपर कोई न्यायालय हो तो उसमें मेरे कार्य को अपराध नहीं समझा जायेगा । मैंने देश और जाति की भलाई के लिए यह कार्य किया है । मैंने उस व्यक्ति पर गोली चलाई जिसकी नीतियों के कारण हिन्दुओं पर घोर संकट आये और हिन्दू नष्ट हुए । मेरा विश्वास अडिग है कि मेरा कार्य ' नीति की दृष्टि ' से पूर्णतया उचित है । मुझे इस बात में लेशमात्र भी सन्देह नहीं की भविष्य में किसी समय सच्चे इतिहासकार इतिहास लिखेंगे तो वे मेरे कार्य को उचित ठहराएंगे ।
कुरूक्षेत्र और पानीपत की पावन भूमि से चलकर आने वाली हवा में अन्तिम श्वास लेता हूँ । पंजाब गुरू गोविंद की कर्मभूमि है । भगत सिंह , राजगुरू और सुखदेव यहाँ बलिदान हुए । लाला हरदयाल तथा भाई परमानंद इन त्यागमूर्तियों को इसी प्रांत ने जन्म दिया ।
उसी पंजाब की पवित्र भूमि पर मैं अपना शरीर रखता हूँ । मुझे इस बात का संतोष है । खण्डित भारत का अखण्ड भारत होगा उसी दिन खण्डित पंजाब का भी पहले जैसा पूर्ण पंजाब होगा । यह शीघ्र हो यही अंतिम इच्छा !

आपका
नाथूराम वि. गोडसे
14 - 11 - 49

बुधवार, 22 जून 2011

अंबाला जेल की कालकोठरी से अमर बलिदानी वीर नाथूराम गोडसे का अपने माता - पिता के नाम अन्तिम पत्र


परम् वंदनीय माताजी और पिताजी ,
अत्यन्त विनम्रता से अंतिम प्रणाम ।
आपके आशीर्वाद विद्युतसंदेश से मिल गये । आपने आज की आपकी प्रकृति और वृद्धावस्था की स्थिति में यहाँ तक न आने की मेरी विनती मान ली , इससे मुझे बडा संतोष हुआ है । आप के छायाचित्र मेरे पास है और उसका पूजन करके ही मैं ब्रह्म में विलीन हो जाऊँगा ।
लौकिक और व्यवहार के कारण आप को इस घटना से परम दुःख होगा इसमें कोई शक नहीं । लेकिन मैं ये पत्र कोई दुःख के आवेग से या दुःख की चर्चा के कारण नहीं लिख रहा हूँ ।
आप गीता के पाठक है , आपने पुराणों का अध्ययन भी किया है ।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया है और वही भगवान ने राजसूय यज्ञभूमि पर -युद्धभूमि पर नहीं - शिशुपाल जैसे एक आर्य राजा का वध अपने सुदर्शन चक्र से किया है । कौन कह सकता है कि श्रीकृष्ण ने पाप किया है । श्रीकृष्ण ने युद्ध में और दूसरी तरह से भी अनेक अहंमन्य और प्रतिष्ठित लोगों की हत्या विश्व के कल्याण के लिए की है । और गीता उपदेश में अपने ( अधर्मी ) बान्धवों की हत्या करने के लिए बार - बार कह कर अन्त में ( युद्ध में ) प्रवृत्त किया है ।
पाप और पुण्य मनुष्य के कृत्य में नहीं , मनुष्य के मन में होता है । दुष्टों को दान देना पुण्य नहीं समझा जाता । वह अधर्म है । एक सीता देवी के कारण रामायण की कथा बन गयी , एक द्रोपदी के कारण महाभारत का इतिहास निर्माण हुआ ।
सहस्त्रावधी स्त्रियों का शील लुटा जा रहा था और ऐसा करने वाले राक्षसों को हर तरह से सहायता करने के यत्न हो रहे थे । ऐसी अवस्था में अपने प्राण के भय से या जन निन्दा के डर से कुछ भी न करना मुझसे नहीं हुआ । सहस्त्रावधी रमणियों के आशिर्वाद भी मेरे पीछे है ।
मेरे बलिदान मेरे प्रिय मातृभूमि के चरणों पर है । अपना एक कुटुम्ब या और कुछ कुटुम्बियों के दृष्टि से हानि अवश्य हो गयी । लेकिन मेरे दृष्टि के सामने छिन्न - भिन्न मन्दिर , कटे हुए मस्तकों की राशि , बालकों की क्रुर हत्या , रमणीयों की विडंबना हर घडी देखने में आती थी । आततायी और अनाचारी लोगों को मिलने वाला सहाय्य तोडना मैने अपना कर्तव्य समझा ।
मेरा मन शुद्ध है । मेरी भावना अत्यन्त शुद्ध थी । कहने वाले लाख तरह से कहेंगे तो भी एक क्षण के लिए भी मेरा मन अस्वस्थ नहीं हुआ । अगर स्वर्ग होगा तो मेरा स्थान उसमें निश्चित है । उस वास्ते मुझे कोई विशेष प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं है ।
अगर मोक्ष होगा तो मोक्ष की मनीषा मैं करता हूँ ।
दया मांगकर अपने जीवन की भीख लेना मुझे जरा भी पसंद नहीं था । और आज की सरकार को मेरा धन्यवाद है कि उन्होंने दया के रूप में मेरा वध नहीं किया । दया की भिक्षा से जिन्दा रहना यही मैं असली मृत्यु समझता था । मृत्यु दंड देने वाले में मुझे मारने की शक्ति नहीं है । मेरा बलिदान मेरी मातृभूमि अत्यन्त प्रेम से स्वीकार करेंगी ।
मृत्यु मेरे सामने आया नहीं । मैं मृत्यु के सामने खडा हो गया हूँ । मैं उनके तरफ सुहास्य वदन से देख रहा हूँ और वह भी मुझे एक मित्र के नाते से हस्तांदोलन करता है ।
जातस्यहि धृवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च । तस्मादपरिहार्येथे न त्वं शोचितुमर्हसि ।।
भगवदगीता में तो जीवन और मृत्यु की समस्या का विवेचन श्लोक - श्लोकों में भरा हुआ है । मृत्यु में ज्ञानी मनुष्य को शोक विह्ल करने की शक्ति नहीं है ।
मेरे शरीर का नाश होगा पर मैं आपके साथ हूँ । आसिंधु - सिंधु भारतवर्ष को पूरी तरह से स्वतंत्र करने का मेरा ध्येय - स्वप्न मेरे शरीर की मृत्यु होने से मर जाये यह असम्भव है ।
अधिक लिखने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है । सरकार ने आपको मुझसे मिलने की अंतिम स्वीकृति नहीं दी । सरकार से किसी भी तरह की अपेक्षा नहीं रखते हुए भी वह कहना ही पडेगा कि अपनी सरकार किस तरह से मानवता के तत्व को अपना रही है ।
मेरे मित्र गण और चि. दत्ता , गोविंद , गोपाल आपको कभी भी अंतर नहीं देंगें ।
चि. अप्पा के साथ और बातचीत हो जायेगी । वो आपको सब वृत्त निवेदन करेंगा ।
इस देश में लाखों मनुष्य ऐसे है कि जिनके नेत्र से इस बलिदान से अश्रु बहेंगे । वह लोग आपके दुःख में सहभागी हैं । आप आपको स्वतः को ईश्वर के निष्ठा के बल पर अवश्य संभालेंगे इसमें संदेह नहीं ।
अखण्ड भारत अमर रहे ।
वन्दे मातरम् ।
आपके चरणों को सहस्त्रशः प्रणाम
आपका विनम्र
नाथूराम वि. गोडसे
अंबाला दिनांक 12 - 11 - 49

रविवार, 19 जून 2011

पूर्वजों के प्रति निष्ठा

एक बार प्राख्यात साहित्यकार डॉ. विद्यानिवास मिश्र इंडोनेशिया की यात्रा पर गए । वहाँ मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया के कला विभाग के निदेशक सुदर्शन के साथ वह कुछ प्राचीन स्थलों का अवलोकन करने निकले । सुदर्शन इस्लाम मतावलम्बी थे । वे दोनों बोरोबुदुर देखने जा रहे थे । रास्ते में कुछ संगतराश पत्थरों पर कुछ अक्षर खोद रहे थे । डॉ. विद्यानिवास मिश्र जी ने जिज्ञासा प्रकट की और पूछा कि पत्थरों पर ये क्या लिख रहे हैं । सुदर्शन ने बताया कि यहाँ के कुछ लोग मरणोपरांत अपनी कब्र पर लगाए जाने वाले पत्थर पर जावाई भाषा में महाभारत या रामायण की कोई पंक्ति खुदवाते हैं । मुस्लिम होते हुए भी वे राम व कृष्ण के प्रति गहरी आस्था रखते हैं ।
डॉ. विद्यानिवास मिश्र को आश्चर्यचकित देख सुदर्शन ने कहा - ' हमने सात सौ वर्ष पहले इस्लाम स्वीकार किया था , लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम अपने पूर्वजों को ही भूल जाएं । रामायण और महाभारत हमारे लिए आज भी प्रेरणादायक हैं । ' डॉ. विद्यानिवास मिश्र उस इंडोनेशियाई मुस्लिम विद्वान का मुहं देखते रह गये ।
जब इंडोनेशिया के मुस्लिम अपने मूलधर्म व पूर्वजों पर गर्व कर सकते है तो भारतीय मुस्लिम अपनी मूल सनातन संस्कृति , हिन्दू धर्म और महापुरूषों पर गर्व क्यों नहीं कर सकते ! ! !
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

रविवार, 5 जून 2011

सांप्रदायिक एवं लक्ष्य केन्द्रित हिंसा निवारण ( न्याय प्राप्ति एवं क्षतिपूर्ति ) विधेयक 2011 - सोनिया गांधी के नेतृत्व में हिन्दुओं का दमन करने का भयानक षडयन्त्र


सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने सांप्रदायिक एवं लक्ष्य केन्द्रित हिंसा निवारण ( न्याय एवं क्षतिपूर्ति ) विधेयक 2011 का एक मसौदा तैयार किया है जो ऊपर से देखने पर सांप्रदायिक हिंसा को रोकने वाला और दोषियों को दंडित किये जाने के प्रयास में नजर आता है लेकिन इसका वास्तविक उद्देश्य इसके विपरीत है। यह एक ऐसा विषाक्त विधेयक है कि यदि यह कभी पारित हो जाता है तो यह भारत के संघीय ढांचे को नष्ट कर देगा और भारत में पंथनिरपेक्षता ( धर्मनिरपेक्षता ) ही छिन्न - भिन्न हो जायेगी।
गांधीजी के पथ पर चलने वाली केन्द्र की संप्रग सरकार द्वारा मुस्लिम और ईसाई वोट बैंक को अपने पक्ष में बनाए रखने के उद्देश्य से सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र की रिपोर्ट जैसे सांप्रदायिक तुष्टिकरण के कार्यो को करने के बाद अब एक ओर ऐसा सांप्रदायिक कटुता बढाने वाला और हिन्दुओं का दमन करने वाला कानून बनाने का प्रयास शुरू हो गया है जो हर हाल में बहुसंख्यक समाज ( हिन्दुओ ) को सांप्रदायिक हिंसा के लिए दोषी ठहराएंगा। इस विधेयक को बनाने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद अर्थात एनएसी को दी गई थी। एनएसी के सदस्य फरह नकवी और हर्ष मंदर के नेतृत्व में एक नया मसौदा देश के सामने रखा गया है। इस मसौदे को तैयार करने में तीस्ता जावेद सीतलवाड, गोपाल सुब्रह्मण्यम, माजा दारूवाला, नाजमी बाजीरी, पीआईजोसे, उषा रानाथन, वृंदाग्रोवर, असगर अली इंजिनियर, एच एस फुल्का, जॉन दयाल, जस्टिक होस्बेट सुरेश, मौलाना निअज फारूखी, शबनम हाशमी, सिस्टर मारी स्कारिया व सैय्यद शहाबुद्दीन जैसे व्यक्तियों की मुख्य भूमिका रही है जिनके धर्मनिरपेक्ष चरित्र कभी भी निर्विवाद नहीं रहे।
इस विधेयक में यह माना गया है कि सभी सांप्रदायिक दंगे हिन्दुओं की तरफ से शुरू किये जाते है तथा उनमें अल्पसंख्यक शिकार बनते है। विधेयक में हिन्दू दंगाईयों से अल्पसंख्यक समूहों को बचाने की बात कही गई है, अर्थात किसी भी सांप्रदायिक हिंसा में अल्पसंख्यकों को हमेशा पीडित तथा बहुसंख्यकों को हिंसा फैलाने वाला माना जायेगा। यदि किसी सांप्रदायिक झगडे में कोई अल्पसंख्यक मारा जाता है तो इस कानून के अंतर्गत इसकी जांच होगी और दोषी बहुसंख्यक समाज के व्यक्ति को कठोर दंड दिया जायेगा, लेकिन वही कोई बहुसंख्यक मारा जाता है तो उसकी साधारण जांच होगी। इस विधेयक में केवल अल्पसंख्यक समूहों की रक्षा की बात की गई है, सांप्रदायिक हिंसा के मामले में यह विधेयक बहुसंख्यकों की सुरक्षा के प्रति मौन है। इस विधेयक का मसौदा बनाने वाली एनएसी की टीम यह मानती है कि दंगों और सांप्रदायिक हिंसा में सुरक्षा की आवश्यकता केवल अल्पसंख्यकों को है। इस कानून के तहत केवल बहुसंख्यकों ( हिन्दुओं ) के विरूद्ध ही मुकदमा चलाया जा सकता है, किसी भी अल्पसंख्यक ( मुसलमान, ईसाई आदि ) को इस कानून के तहत सजा नहीं दी जा सकती भले ही उन्होंने बहुसंख्यक समूहों के विरूद्ध कितनी भी हिंसा की हो।
इस विधेयक के अनुसार सांप्रदायिक दंगे के दौरान यौन संबंधी अपराधों को भी तभी दंडनीय मानने की बात कही गई है यदि वह अल्पसंख्यक समूहों की महिलाओं के साथ हो, अर्थात यदि किसी बहुसंख्यक ( हिन्दू ) महिला के साथ दंगे के दौरान कोई अल्पसंख्यक बलात्कार करता है तो वह दंडनीय नहीं होगा। इस विधेयक के अनुसार अल्पसंख्यक समूह के विरूद्ध कही पर भी यहाँ तक की फेसबुक, ट्विटर जैसी शोशल साईटे और ब्लॉग आदि पर भी घृणा अभियान चलाना गंभीर दंडनीय अपराध है, जबकि बहुसंख्यकों के मामले में ऐसा नहीं है।
इस विधेयक के अनुसार अल्पसंख्यक समुदाय का कोई भी व्यक्ति किसी भी बहुसंख्यक पर किसी भी प्रकार का आरोप लगा सकता है लेकिन बहुसंख्यक को यह अधिकार नहीं है। कोई अल्पसंख्यक यदि पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने जाये और कहे कि बहुसंख्यक समुदाय के ...... व्यक्ति के कारण उसे मानसिक या मनोवैज्ञानिक आघात लगा है तो पुलिस को इस नए कानून के तहत रिपोर्ट दर्ज करनी ही होगी। यही नहीं इस विधेयक में स्पष्ट लिखा गया है कि जब तक विशिष्ठ विवरण न हो, इस कानून के तहत तमाम अपराध संज्ञेय व गैर जमानती होगे। इस विधेयक में संविधान के इस नियम को उल्टा कर दिया गया है कि जब तक दोष सिद्ध न हो जाए, आरोपी निर्दोष है। यही नहीं प्रस्तावित मसौदे की धारा 40 के तहत शिकायतकर्ता का नाम भी गोपनीय रखा जायेगा। इसका अर्थ हुआ कि जिस व्यक्ति पर सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने का आरोप होगा वह यह भी नहीं जान पाएगा कि उसके विरूद्ध शिकायत किसने और किस आधार पर की है।
अगर किसी राज्य में सांप्रदायिक दंगा भडकता है या राजनीतिक दुश्मनी वश भडकाया जाता है और अल्पसंख्यकों को कोई हानि होती है तो केन्द्र सरकार दंगे की तीव्रता का बहाना कर राज्य सरकार के मामले में हस्तक्षेप कर सकती है और चाहे तो बर्खास्त भी कर सकती है। दंगों के दौरान होने वाले किसी भी प्रकार के जान और माल के नुकसान पर मुवावजे के अधिकारी भी केवल अल्पसंख्यक ही होगे।
भारत में पहली बार संवैधानिक और न्यायिक प्राधिकरण का गठन सांप्रदायिक कोटे के आधार पर करने का प्रस्ताव है। राष्ट्रीय व राज्यीय स्तर पर गठित होने वाले सात सदस्यीय प्राधिकरण में अध्यक्ष , उपाध्यक्ष सहित चार सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय से होगे। इसके विपरीत इस कानून के तहत जो लोग अपराध के दायरे में आयेगे वे बहुसंख्यक ( हिन्दू ) समुदाय से होगे। इससे इस प्राधिकरण के हिन्दुओँ के प्रति न्याय की कसौटी पर खरा उतरने की आशंका हमेशा बनी रहेगी। वोटो की लालची सरकार यह कब समझेगी कि दंगों में अल्पसंख्यक व बहुसंख्यक नहीं अपितु एक आम आदमी मारा जाता है। हिंसा अल्पसंख्यक समुहों के प्रति हो या बहुसंख्यक समूहों के प्रति दोनों ही दंडनीय अपराध की श्रेणी में आने चाहिए।
भाईयों धर्मनिरपेक्षता के नाम पर पहले ही हिन्दू साध्वी प्रज्ञा पर अमानवीय अत्याचार और स्वामी रामदेव का अपमान किया जा रहा है, अगर हम अभी भी न जागे तो अगली बारी हम सब हिन्दुओं की है ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '