रविवार, 19 फ़रवरी 2012

चंद्रगुप्त और चाणक्य को वृद्धा की सीख

सम्राट चंद्रगुप्त एवं चाणक्य की वीरता एवं बुद्धिमता का लोहा सभी मानते है , चाणक्य की कुटनीति विश्व की सर्वश्रेष्ठ कुटनीति मानी जाती है , फिर भी एक बार उनसे गलती हो गई थी और जिसके फलस्वरूप उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था । दरअसल नन्द राज्य को जीतने के लिये उन लोगों ने सीधा पाटलीपुत्र पर ही हमला कर दिया था और इस कारण उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा और मारे - मारे जंगलों में भी भटकना पड़ा था ।
इसी प्रकार जब वो भूखे - प्यासे एक दिन जंगल में भटक रहे थे तो उन्हें एक झोपड़ी दिखी । झोपड़ी के पास पहुँच कर जब उन्होंने आवाज दी तो अंदर से एक वृद्धा निकली । वह अत्यंत ही गरीब थी परन्तु उसका हृदय अत्यंत विशाल एवं प्रेम से परिपूर्ण था ।
जब उस वृद्धा ने अपने द्वार पर दो - दो अतिथितियों को देखा , तो वह खुशी से जैसे पागल हो गई । उसे यह नहीं पता था कि उसकी कुटिया में सम्राट चंद्रगुप्त एवं उनके बुद्धिमान मंत्री चाणक्य आये है । वह वृद्धा उन्हें केवल अतिथि मान कर उनकी आवाभगत करने लगी । उन्हें बड़े सम्मान से टूटी खाट पर बिठाया और ठंडा पानी पिलाया ।
कुछ देर बाद वृद्धा ने देखा कि अतिथि तो वहीं पर बैठे है और कुछ परेशान से लग रहे है । तो उसने अपने अतिथियों से कहा - ' तुम लोग थके परेशान से लग रहे हो । यही बैठकर आराम करो , तब तक मैं कुछ खाना बनाती हूँ । '
शाम होने को थी । वृद्धा ने अपनी कुटिया के एक कोने में बने चूल्हे को जलाया और उस पर खिचड़ी बनाने को रख दी । थोड़ी ही देर बाद वृद्धा का लड़का खेत से लौटा और अपनी माँ से बोला - ' मुझे कुछ खाने को दो , बहुत जोर से भूख लगी है । ' खिचड़ी बनकर तैयार हो चुकी थी । वृद्धा ने अपने पुत्र के सामने खिचड़ी भरी थाली परोस दी । पुत्र बहुत भूखा था । उसने शीघ्रता पूर्वक अपना हाथ खिचड़ी में डाल दिया और जोर से चीख पड़ा । वृद्धा अपने पुत्र की चीख सुनकर घबराते हुये उसके पास पहुँची और पूछा - ' क्या हुआ , तुम चीखे क्यों थे ? ' , ' कुछ नहीं माँ , खिचड़ी बहुत गर्म थी । मेरा हाथ जल गया । ' लड़के ने उत्तर दिया । पुत्र की व्याकुलता की भर्त्सना करते हुए वृद्धा बोली - ' अरे अभागे ! क्या तू भी चंद्रगुप्त और चाणक्य जैसा ही बेवकूफ है । '
वृद्धा की जुबान पर अपना नाम सुनते ही चन्द्रगुप्त और चाणक्य के कान खड़े हो गये । उन्होंने वृद्धा से पूछा - ' अम्मा , चंद्रगुप्त एवं चाणक्य आखिर मूर्ख कैसे है , उन्होंने क्या मूर्खता की है ? और फिर आपने अपने पुत्र को उनका उद्दाहरण क्यों दिया ? '
वृद्धा हास्यपूर्ण मुद्रा में बोली - ' देखों बेटा , राजा चंद्रगुप्त और चाणक्य ने गलती की थी , तभी तो मैं उनका उदाहरण अपने पुत्र को दे रही थी । चंद्रगुप्त एक शक्तिशाली राजा है और चाणक्य उनका बुद्धिमान मंत्री है । वो लोग नन्द वंश का नाश करना चाहते थे पर उनमें इतनी भी बुद्धि नहीं थी कि पहले आसपास के छोटे - मोटे राजाओं को जीतते , तब राजधानी पर आक्रमण करते । इससे जीते हुये राजाओं का भी उन्हें सहयोग प्राप्त हो जाता । परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया । उन मूर्खो ने सीधे ही बीच में जाकर राजधानी पाटलीपुत्र पर चढ़ाई कर दी और किसी की सहायता न मिलने के कारण वो हार गये ।
ठीक इसी प्रकार मेरे पुत्र ने भी आचरण किया । उसने भी गर्म खिचड़ी में ही सीधे हाथ डाल दिया । उसे चाहिये था कि पहले आस पास यानि की थाली के किनारों की खिचड़ी लेकर ठंडा करता और फिर उसे खाता । '
वृद्धा की बात सुनकर चंद्रगुप्त और चाणक्य की आखें खुल गई । उन्होंने उसकी बात को सीख मानकर और अपनी बुद्धि का उपयोग करके , अंत में नन्द पर विजय प्राप्त कर नन्दवंश का नाश कर दिया ।


राष्ट्र सेवा के संकल्पी मित्रों यदि हमें सच में माँ भारती और इसकी संस्कृति की रक्षा करनी है , तो वेकिटन या अरबपंथीयों पर विजय करने से पूर्व हमें अपने देश के छद्म सेक्यूलर दरिंदों पर विजय प्राप्त करनी होगी । हमें असली खतरा इन्ही गद्दारों से है , यदि ये गद्दार न होते तो भारत कदापि बाहर से आई कुछ मुठ्ठीभर साम्राज्यवादी साम्प्रदायिक ताकतों का गुलाम न बना होता ।
वन्दे मातरम्
जय जय माँ भारती ।
- विश्वजीत सिंह 'अनंत'

आचार्य कृपलानी और उनकी जाति ?

रेल यात्रा कर रहे एक तिलकधारी सेठजी ने जब अपना भोजन का डिब्बा खोलना चाहा तो पास ही बैठे खद्दरधारी नेता को देख उन्हें शंका हुई । उन्होंने पूछा , ' नेताजी , आप किस जाति के है ? '
' जाति न पूछो साधू की , पूछ लीजिए ज्ञान ' यह कहावत क्या आपने नहीं सुनी ? नेताजी ने प्रश्न किया । ' साधू से नहीं पूछेंगे , पर आप तो गेरूवे कपड़े नहीं पहने हो । खादी तो आज कल मेहतर से लेकर ब्रह्मण , बनिये सभी नेतागिरी चमकाने के लिए पहनते है । ' सेठजी ने उत्तर दिया ।
' नहीं सेठजी , जाति बताने या छुपाने से कुछ नहीं होता ', यह कह कर नेताजी समाचार पत्र पढ़ने लगे । फिर भी सेठजी का आग्रह पूर्ववत् जारी रहा । अन्त में कुछ सोच कर नेताजी बोले , ' किसी एक जाति का होऊँ तो बताऊँ । '
सेठजी ने व्यंग्य किया , ' तो फिर क्या आप वर्ण - संकर है ? लगता है आपके पिताजी ने किसी दूसरी जाति की लड़की से विवाह किया था । '
नेताजी के चरित्र पर चोट थी , पर नेताजी ने मार्मिक व्यंग्यशैली में चुटकी लेते हुए कहा , ' सेठजी जाति ही पूछ रहे हो तो सुनिए - प्रातःकाल जब मैं घर , आंगन , शौचालय की सफाई करता हूँ , तो पूरी तरह मेहतर हो जाता हूँ । जब अपने जूते साफ करता हूँ , तब चमार , दाड़ी बनाते समय नाई , कपड़े धोते समय धोबी , पानी भरते समय कहार , हिसाब करते समय बनिया , कॉलेज में पढ़ाते समय ब्रह्मण हो जाता हूँ । अब आप ही बताएँ मेरी जाति ? '
तब तक स्टेशन आ गया । स्वागत में आयी अपार भीड़ ने नेताजी को हार-मालाओं से लाद दिया । सेठ अवाक् ' आचार्य कृपलानी जिन्दाबाद ' के गगनभेदी नारों के बीच कभी अपने को देखता था , कभी नेताजी अर्थात् आचार्य कृपलानी को ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '