ब्रिटिश शासकों के चंगुल से तो ' इंडिया ' मुक्त हो गया किन्तु तब तक यह आर्यावर्त तो किसी तरह रह ही नहीं गया था, भारतवर्ष अथवा हिन्दुस्थान भी नहीं बन पाया । क्योंकि सत्ता हस्तांतरण के समय हमारे स्वदेशी शासन का सूत्र संचालन जिन तथाकथित कर्णधारों ने येन - केन - प्रकारेण अपने हाथों में लिया वे भारतीय संस्कृ

स्वतंत्रा प्राप्ति से पूर्व जो युवा पीढ़ी देश में थी उसकी सारी शक्ति संचित रूप से एक महान लक्ष्य को समर्पित थी । वह लक्ष्य था - पराधीनता की बेड़ियों को तोड़ कर देश को विदेशियों की दासता से मुक्त करना । अपनी सारी शक्ति से वह पीढ़ी अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये दृढ़ संकल्प थी और अंततः वह सफल भी हो गई । किन्तु विडम्बना यह है कि युवा पीढ़ी के उस बलिदान का श्रेय तत्कालीन स्वार्थान्ध किन्तु चतुर नेताओं ने अपनी झोली में समेट कर पूरी पीढ़ी को घोर चाटुकारिता नपुंसकता के पर्यायवाची गीत ' दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल ' की लय पर नचा दिया । न केवल इतना अपितु तिल - तिल कर अपने प्राणों की आहुति देने वाले महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी, गुरू गोविन्द सिंह, गोकुल सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, पं. नाथूराम गोडसे, मदन लाल ढिंगरा, वीर सावरकर जैसे वीरों की नितांत अवहेलना कर उन्हें लांक्षित किया ।
स्वाधीना प्राप्ति से पूर्व और पश्चात की स्थिति का विश्लेषण करने पर जो दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य प्रकट होता है वह यह है कि पहले तो अभारतीय अर्थात अहिन्दू ही भारत तथा भारतीयता को नष्ट करने में संलग्न थे, किन्तु आज भारतीय और हिन्दुओं के द्वारा ही भारतीयता तथा हिन्दुत्व को नष्ट करने का कार्य किया जा रहा है । भारतीय जीवन पद्धति के सोलह संस्कारों में से अधिकांश तो भुला दिये गए हैं, शेष भी शीघ्र भुला दिये जाने की स्थिति में है । विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार पंजीयक के कार्यालय में सम्पन्न होने लगे हैं । वैदिक विधि से सम्पन्न होने वाले विवाहों में भी केवल परिपाटी का ही परिचलन किया जाने लगा है । जन्मदिन तो बहुत पहले से ही ' बर्थ - डे ' के रंग में रंग गए है, जिनकी जीवन - ज्योति को जलाया नहीं बल्कि बुझाया जाता है । पारिवारिक संबोधन और संबंध मम्मी - डैडी, आंटी - अंकल, मदर - फादर, कजन - बर्दर आदि में परिवर्तित हो गए है । सामाजिक समारोह, संस्कारों आदि के अवसर पर निमंत्रण पत्रों को संस्कृत, हिन्दी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में मुद्रित कराना उनकी दृष्टि में स्वयं को पिछड़ा सिद्ध करना है ।
सत्तालोलुप अधिकांश नेता सत्ता हस्तांतरित होते ही देश प्रेम को भुल कर जो कुछ त्याग - तप करने का नाटक उन्होंने किया था, उससे सहस्र गुणा अधिक समेटने के लिए आतुर हो उठे । उभरती हुई युवा पीढ़ी और देश के पुर्निर्माण की बात भूल कर वे अपने निर्माण में जुट गए । पाश्चात्य सभ्यता में आकण्ठ डूबे होने के कारण वे अपने तुच्छ स्वार्थो की पूर्ति और तुष्टि के लिये उन्होंने भावी भारत की निर्मात्री पीढ़ी के भविष्य के साथ - साथ देश के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया ।
ऐसी स्थिति में अब वर्तमान पीढ़ी को ही भारत को इंडिया के चंगुल से मुक्त कर उसे पुन विश्व की महाशक्ति बनाने व जगद्गुरू पद पर प्रतिष्ठित करने का दायित्व लेना होगा । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारतीय शिक्षा प्रणाली को पुर्नजीवित करना होगा । संविधान में संसोधन करा इंडिया शब्द की बजाय भारत का प्रावधान कराना होगा तथा देश की किशोर व युवा पीढ़ी को राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना के साथ जोड़ना होगा ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '
प्रिय राष्ट्र प्रेमियों, आपको यह जानकर हर्ष होगा कि वैदिक राष्ट्रवादी चिंतन के अनुसार साम्प्रदायिकता एवं भ्रष्टाचार के उन्मूलन तथा भारतीय संस्कृति व मानवाधिकार के संरक्षण हेतु प्रगतिशील देशभक्तों के राष्ट्रव्यापी संगठन ' साम्प्रदायिकता विरोधी मोर्चा ( रजिस्टर्ड ) द्वारा भारतीय संस्कृति के संरक्षण व सम्वर्धन हेतु देश के संविधान से अपमानजनक शब्द इंडिया को हटाकर भारत की पुर्नस्थापना हेतु जन आन्दोलन तथा गौ - गुरूकुल परियोजना का प्रारम्भ किया जा रहा हैं । सहयोगी राष्ट्रभक्त बंधु संस्था के ईमेल svmbharat@gmail.com पर या हमारे फोन नम्बर 09412458954 पर कॉल कर अधिक जानकारी ले सकते है ।
वन्दे मातरम्
जय माँ भारती ।
आपका - विश्वजीत सिंह ' अनंत '
जय माँ भारती,,,,,बहुत बढ़िया लेख है ,,,धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसच कह रहे हो विश्वजीत जी. बहुत अच्छा लेख हैं. वन्देमातरम....
जवाब देंहटाएंविश्वजीत जी, मुझे ये मालुम नहीं था की ये आपका लेख हैं, मैंने इसे फेसबुक पर से संदीप गोयल जी के टाईम लाइन से लिया था. मैं क्षमा चाहता हूँ. दरअसल मेरा ये ब्लॉग हिंदू हितों के लिए हैं. मुझे जंहा से भी कोई अच्छा लेख मिलता हैं. जिसकी साईट से मिलता हैं, सधन्यवाद उठा लेता हूँ और उनका नाम नीचे डाल देता हूँ. यदि हिंदू हितों के लिए मुझे इतना करना पड़े तो आप लोग मुझे क्षमा करे. क्योंकि अच्छा लेख जितने ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुंचेगा, उतना ही धर्म के लिए अच्छा होगा. धन्यवाद, वन्देमातरम
जवाब देंहटाएंभारत को इण्डिया नहीं बनने दिया जाएगा , राष्ट्रवादी ऐसा होने नहीं देंगे ! हम इस परियोजना में आपके साथ शामिल हैं !--वन्दे मातरम् !
जवाब देंहटाएंDhanyabad
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