रविवार, 20 नवंबर 2011

अपने को हिन्दू बताते हुए मुझे गर्व का अनुभव होता है - स्वामी विवेकानन्द

शेर की खाल ओढ़कर गधा कभी शेर नहीं बन सकता । अनुकरण करना , हीन और डरपोक की तरह अनुसरण करना , कभी उन्नति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता । वह तो मनुष्य के अधःपतन का लक्षण है । जब मनुष्य अपने - आप पर घृणा करने लग जाता है , तब समझना चाहिए कि उस पर अंतिम चोट बैठ चुकी है । जब वह अपने पूर्वजों को मानने में लज्जित होता है , तो समझ लो उसका विनाश निकट है । यद्यपि मैं हिन्दू जाति में एक नगण्य व्यक्ति हूँ तथापि अपनी जाति और अपने पूर्वजों के गौरव से मैं अपना गौरव मानता हूँ ।
अपने को हिन्दू बताते हुए , हिन्दू कहकर अपना परिचय देते हुए मुझे एक प्रकार का गर्व - सा अनुभव होता है । ... अतएव भाइयों , आत्मविश्वासी बनो । पूर्वजों के नाम से अपने को लज्जित नहीं , गौरवान्वित समझों । याद रहे , किसी का अनुकरण कदापि न करो ।
- स्वामी विवेकानन्द

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

स्वतंत्र भारत में औद्योगिक क्रांति के समर्थक वीर नाथूराम गोडसे

वीर नाथूराम गोडसे एक विचारक , समाज सुधारक , हिन्दूराष्ट्र समाचार पत्र के यशस्वी संपादक एवं अखण्ड भारत के स्वप्नद्रष्टा होने के साथ - साथ स्वतंत्र भारत में औद्योगिक क्रांति के समर्थक भी थे । यह तथ्य उनके द्वारा अप्पा को लिखे गये पत्रों से सिद्ध होता है । प्रस्तुत है वीर नाथूराम गोडसे जी की भतीजी श्रद्धेया हिमानी सावरकर जी ( गोपाल गोडसे जी की पुत्री व वीर सावरकर जी की पुत्रवधु तथा हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्षा , जिन्होंने हम सम्मानपूर्वक ताई जी कहते है । ) से प्राप्त वह ऐतिहासिक पत्र -
प्रिय अप्पा ,
कल आपका पत्र मिला उसमें कारखाने की हालत के बारे में कुछ जानकारी हुई । और कारखाने की संभावित वृद्धि को देखकर संतोष हुआ ।
आज - कल सरकार की यह नीति दिखाई देती है कि वह यंत्र आधारित धंधों को उत्तेजन देना चाहती है । और अगर स्वतंत्र भारत को सचमुच ही सम्पन्न करना है तो उसके लिए एक ही मार्ग है । और वह यह कि यंत्र प्रधान व्यवसायों का पोषण और उनकी वृद्धि करना । लेकिन विशेष बात यह है कि चरखा युग के अनेक लेप जिन पर चढे हुये है ऐसे नेता ही यंत्र प्रधान व्यवसायों की प्रशंशा करने लगे है ।
स्वतंत्र भारत में इन व्यवसायों के क्षेत्र को निर्भयता का स्थान प्राप्त होना बड़ी मात्रा में संभव है यह जरूर देखा जायेगा कि विदेशी चीजों की स्पर्धा अपने व्यवसायों को मारक न हो । अब इन व्यवसायों को धोखा एक ही बात है और वह यह कि श्रमिक लोगों को दायित्व शून्य रहने का अवसर देना । श्रमिक लोगों को किसी भी तरह की हानि न पहुँचाना और इन व्यवसाय केन्द्रों की वृद्धि करना यही नीति हमारे राष्ट्र के लिए हित कारक सिद्ध होने वाली है । श्रमिक और उद्योगपति इन दोनों में सामंजस्य पैदा करने की नीति का अवलम्ब ज्यादा सुसंबधता से करना आवश्यक है । हां लेकिन यह बात इन व्यवसायों को चलाने वालों के सोचने की नहीं है । उसके लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं की राष्ट्र की सम्पत्ति के संवर्धन की दृष्टि से श्रमिक और उद्योगपति इन वर्गो के बीच सौहाद्र का निर्माण करने की ओर यत्न होना चाहिये ।
आपका
नथुराम
दि. 27 - 12 - 1948

अमर बलिदानी नाथूराम गोडसे जवाहर लाल नेहरू की इस्लामप्रस्त नीतियों के ध्रुव विरोधी थे , लेकिन जब दिनांक 25 जनवरी 1949 के अंग्रेजी समाचार पत्र States man में The Central Advisory Council of Industry के अधिवेशन में प्रथम दिन का वृत्तांत पढ़ा तो उन्होंने अपने ध्रुव विरोधी नेहरू की औद्योगिकरण की नीतियों का पूर्ण समर्थन किया । यह बात वीर गोडसे ने अप्पा को दूसरे पत्र में लिखी । प्रस्तुत है उस पत्र का संक्षित्त अंश -
... प्रथम दिन का वृत्तांत मैंने पढ़ा डॉक्टर श्यामाप्रसाद अध्यक्ष थे और उदघाटन नेहरूजी ने किया था । ... नेहरूजी का एक ही भाषण मुझे बहुत ही अच्छा लगा । इस पत्र में यह बात लिखने की यह वजह है कि इससे यह विदित हुआ कि सरकार को इसकी पूरी जानकारी हुई कि उद्योग - धंधे और उत्पादन इनकी ओर बहुत ही सावधान होना परमावश्यक है । अपने राष्ट्र के कोने - कोने को आधुनिक विज्ञान की सहायता से प्रकाशित करना यही एक चीज है जिसने भारत का बल और सौख्य बढेगा । यदि हिन्दुस्थान की खेती यंत्रों की सहायता से की गयी तो इस सुजलां सुफलां राष्ट्रभूमि को पर्याप्त धान्य की पैदाइश होगी बल्कि यहाँ से बाहर अनाज भेजा जा सकेगा । भारतीयों के रहन - सहन और आर्थिक स्थिति के सुधार के लिए यहाँ का सब उत्पादन यंत्र - तंत्र से किया जाना चाहिए । यंत्र प्रधान उत्पादन के साथ - साथ ही श्रमिक और उद्योगपतियों के सहकार्य का प्रश्न भी काफी महत्वपूर्ण है । तुम खुद एक कारखाने के उत्पादक और संचालक हो । तुम्हारा कारखाना सिर्फ आजीविका का एक साधन नहीं है इस बात को मैं पूरी तरह से जानता हूँ । आपने कारखाने के चलाने में और संवर्धन में तुम्हारी प्रेरक शक्ति राष्ट्रीय ध्येयवाद की है । यह बात मुझे और आपके जान पहचान वालों को विदित है । आपकी श्रम करने की तैयारी आपको हमेशा यश देती रहेगी इसमें मुझे शक नहीं है । अब विदेश का माल बाजार में अधिक मात्रा में आ रहा है । यहाँ का उत्पादित माल बेचने में कठिनाई होगी यह सवाल कारखानदारों के सामने खडा है । ... और हमारी सरकार स्वतंत्र भारत की होती हुई भी यही सवाल हमारे कारखानादारों के सामने बहुत दिन तक खडा रहने वाला है इसमें कोई शक नहीं ।
आपका
नथुराम
दि. 02 - 02 -1949

रविवार, 13 नवंबर 2011

बाल दिवस : मेरे देश के बच्चों के आदर्श नहीं हो सकते नेहरू ?




ये है सच जवाहर लाल नेहरू का जो अपनी बेटी समान लड़कियों को भी अपनी अय्याशी का साधन समझता रहा । इसके जैसे निर्लज्ज अय्याश पुरूष को मैं क्या बच्चे भी स्वीकारने को तैयार नहीं कि इसे चाचा कहा जाये ।
जब स्वतंत्रता के संघर्ष में सत्ता का हस्तांतरण हुआ तो सारा श्रेय कांग्रेस को मिला । प्रधानमंत्री पद के चुनाव में कुल 15 वोटों में से 14 वोट सरदार पटेल के पक्ष में और 1 वोट नेहरू के पक्ष में पड़ने के बाद भी नेहरू गांधी जी की कृपा से देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने । लेकिन 1955 में " ओह दैट आफुल ओल्ड हिपोक्रेट " Oh, that awful old hypocrite - ओह ! वह ( गांधी ) भयंकर ढोंगी बुड्ढा कहकर नेहरू ने अपने प्रति किये गये गांधी के महान त्याग को अपमानित कर दिया ।
विदेश में पढ़ा एक व्यक्ति जो भारत की सनातन संस्कृति से अनजान था । जो अपने को हिन्दू कहलाने में अपमान समझता था । जो पराई स्त्री के चक्कर में इतना गिर सकता है कि जिसका कोई चरित्र ही नहीं हो , जो उन्मुक्त रूप से एक औरत के साथ सिगरेट पीता दिखाई देता है । ऐसे व्यक्ति के जन्मदिन को अगर हमारी सरकार बाल दिवस के रूप में मनाती है , विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यक्रम करती है और कहती है इसने प्रेरणा ले ? अगर हमारे देश की आने वाली पीढ़ी इसके पद चिन्हों पर चलने लगे तो भारत का भविष्य अंधकारमय होगा ।
आज देश में जो आतंकवाद , संप्रदायवाद की समस्या है । कश्मीर की समस्या , राष्ट्र भाषा हिन्दी की समस्या और चीन तथा पाकिस्तान द्वारा भारत की भूमि पर अतिक्रमण की समस्या है । इन सभी समस्याओं के मुख्य उत्तरदायी जवाहर लाल नेहरू है , जिन्हें भारत सरकार चाचा नेहरू कहती है ?
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

एको ॐकार सतिनामु ...


रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः ।
प्रवणः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरूषं नृषु ।।
भगवान श्रीकृष्ण कहते है ' हे अर्जुन ! जल में रस मैं हूँ । चन्द्रमा तथा सूर्य में प्रकाश मैं हूँ । संपूर्ण वेदों में ॐकार मैं हूँ । आकाश में शब्द और पुरूषों में पुरूषत्व मैं हूँ । '
( श्रीमद्भगवद्गीता : 7.8 )
किसी भी जाति का , किसी भी देश , मत या संप्रदाय का बालक हो , जब वह पैदा होता है तब पहली ध्वनि ' ॐ ... आ ... ॐ ... आ ... ' कहाँ से आती है ? उसकी ध्वनि इसी ॐकार से मिलती है । ॐ अनहद्नाद है , परम संगीत है , सृष्टि के सभी स्वर इसमें पिरोए गये है । इसी से उनका जन्म हुआ है , इसी से उनको जीवन मिलता है और इसी में उन्हें लय होना है । ॐ सृष्टि की सभी ऊर्जाओं का परमस्रोत है । ॐ ध्यान बीज है । इसके सुदीर्घ ध्यान से सृष्टि के सभी रहस्य उजागर हो जाते है । ॐ के नाद का , ध्वनि का महत्व केवल सनातन धर्म या वैदिकों में ही नहीं बल्कि जैन , बौद्ध , सिक्ख आदि सभी में है । ईसाइयों का ' आमेन ' और इस्लाम का ' आमीन ' भी ॐ का ही रूप है ।
ॐ शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है । अ + उ + म् = ओम् । ॐ का ' अ ' कार स्थूल जगत का आधार है । ' उ ' कार सूक्ष्म जगत का आधार है । ' म् ' कार कारक जगत का आधार है । जो इन तीनो जगत से प्रभावित नहीं होता बल्कि तीनों जगत जिससे सत्ता - सफूर्ति लेते है फिर भी जिसमें तिलभर भी फर्क नहीं पड़ता , उस परमात्मा का द्योतक ॐ है ।
ॐ आत्मिक बल देता है । ॐ के उच्चारण से जीवनशक्ति ऊर्ध्वगामी है । इसके सात बार के उच्चारण से शरीर के रोग के कीटाणु दूर होने लगते है तथा चित्त से हताशा - निराशा भी दूर होती है । यही कारण है कि प्राचीन ऋर्षि - मुनि , वैज्ञानिकों ने सभी मन्त्रों के आगे ॐ जोड़ा है ।
एक बार सद्गुरू नानक नदी में गये और तीन दिन तक डूबे रहे , खो गये । फिर बाहर आये । वे बाहर की सरिता में सरिता में नहीं , वरन् अन्तर्मुखी वृत्तियों की सरिता में खो गये थे । नानकजी ध्यानमग्न हो गये थे । वे तीन दिन तक अन्तरात्मा के ध्यान में डूबे थे और तीन दिन बाद जब जगे , तब उनका पहला वचन था : एको ॐकार ... परमात्मा एक है ।
एको ॐकार सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरू ।
अकाल मूरति अजूनि सैभं गुरू प्रसादी ।।
आदि सचु जुगादि सचु ।
है भी सचु नानक होसी भी सचु ।।
एको ॐकार : परमात्मा एक है ।
सतिनामु : वही सत् है ।
करता पुरखु : वही प्रकृति को सत्ता देता है ।
निरभउ : वह निर्भय है ।
निरवैरू : उसका कोई प्रतिस्पर्धी नहीं है ।
अकाल मूर्ति : वहाँ काल की गति नहीं है । काल संसार की सब वस्तुओं को खा जाता है , निगल जाता है , आकृतियों को नष्ट कर देता है लेकिन वह परमात्मा आकृति से परे है , निराकार सत्ता है ।
अजूनि : वह योनि में नहीं आता अर्थात अजन्मा है ।
सैभं : वह स्वयंभू है ।
गुर प्रसादि : उस परमात्मतत्व का जिन्होंने अनुभव किया हो ऐसे गुरूओं की जब कृपा बरसती है तब प्रसादरूप में वह मिलता है । आत्मतत्व की अनुभूति के रूप में वह मिलता है ।
आदि सचु जुगादि सचु : जो आदि में सत् था , जो युगों से सत् था ... युग बदल गये , समय बदल गया , परिस्थितियाँ बदल गई , मनुष्य बदल गये , मनुष्य के मन , बुद्धि , विचार बदल गये फिर भी वह नहीं बदला ।
है भी सचु नानक ! होसी भी सचु : जो युगों से सत् था , अभी - भी सत् है और बाद में भी सत् रहेगा , उसी को नानक ने एको ॐकार सतिनामु ... कहा है । उस अकाल पुरूष को जानने पर मनुष्य को कुछ भी जानना बाकी नहीं रहता ।
ॐ का पहला अक्षर ' अ ' नाभि में कम्पन करता है , दूसरा अक्षर ' उ ' हृदय में कम्पन करता है और तीसरा अक्षर ' म् ' दोनों भोहों के मध्य आज्ञाचक्र में कम्पन करता है । ओम् ध्वनि के उच्चारण करने से समस्त ज्ञानेन्द्रियाँ , कर्मेन्द्रियाँ और मन एकाग्र व अर्न्तमुखी हो जाता है तथा प्रसुप्त शक्तियाँ जाग्रत होती है । ॐ ध्वनि का दीर्घकालिक अभ्यास समाधि के दिव्य नाद को भी प्राप्त करा देता है ।
सद्गुरू नानकदेव ज्यन्ति कार्तिक पूर्णिमा की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ॐ लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

बुधवार, 9 नवंबर 2011

मेडिकल साइंस की नई आशा ॐ


ॐ ब्रह्मांड के निर्माण का रहस्य , परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग और अब विज्ञान जगत की नई आशा । हमारे सनातन वेद , उपनिषद् आदि शास्त्रों में ॐ का विशेष महत्व एवं उसकी मन्त्र शक्ति का उल्लेख किया गया है । वैदिक ऋचाओं से निकले ॐ में अब मेडिकल साइंस उन बीमारियों का इलाज खोज रही है जिनसे दवाएँ हार गई है ।
विश्व के अनेक वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि ॐ के उच्चारण मात्र से अनेक रोगों की चिकित्सा संभव है । प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका ' साइंस ' में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि ॐ एक ऐसा शब्द है जिसका अलग - अलग आवृत्तियों में जाप हृदय , मस्तिष्क , पेट और रक्त से जुड़ी कई बीमारियों के इलाज में चमत्कारी असर दिखा सकता है । यहाँ तक कि सेरीब्रल पैल्सी जैसी असाध्य बीमारी में भी इसके सकारात्मक प्रभाव देखने में आये है ।
पत्रिका में रिसर्च एंड एक्सपेरिमेंटल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइंसेज की एक टीम का शोध प्रकाशित किया गया है । टीम के प्रमुख प्रोफेसर जे. मॉर्गन के अनुसार उनकी टीम ने सात वर्ष तक हृदय और मस्तिष्क के रोगियों पर परीक्षण किया है । परीक्षण के दौरान देखा गया कि ॐ का अलग - अलग आवृत्तियों और ध्वनियों में नियमित जाप काफी प्रभावशाली है । ॐ का उच्चारण पेट , हृदय और मस्तिष्क में एक कंपन पैदा करता है । देखा गया कि यह कंपन शरीर की मृत कोशिकाओं को पुनर्जीवन देता है और नई कोशिकाओं का निर्माण भी करता है । यह जाप मस्तिष्क से लेकर नाक , गला , फेफड़े तक के हिस्से में बड़ी तेज तरंगों का वैज्ञानिक रूप से संतुलित संचार करता है ।
प्रो. मॉर्गन ने बताया कि परीक्षण के लिए मस्तिष्क और हृदय के विभिन्न रोगों से ग्रस्त 2500 पुरूषों और 2000 स्त्रियों को चुना गया । इनमें से कुछ लोग बीमारी के अंतिम चरण में पहुँच चुके थे । प्रो. मॉर्गन की टीम ने धीरे - धीरे इन लोगों को मिलने वाली बाकी दवाइयाँ बंद कर सिर्फ वही दवाएँ जारी रखीं जो जीवन बचाने के लिए आवश्यक थी । डॉक्टरी निरीक्षण में इन लोगों ने प्रतिदिन सुबह छह से सात बजे तक एक घंटे तक विभिन्न आवृत्तियों में ॐ का जाप किया । इसके लिए योग्य प्रशिक्षक रखे गए थे । हर तीन माह पर इन लोगों का शारीरिक परीक्षण करवाया गया । चार वर्ष बाद सामने आए परिणाम चौंकाने वाले थे । 70 प्रतिशत पुरूष और 85 प्रतिशत स्त्रियों को 90 प्रतिशत फायदा मिला । कुछ लोगों पर इसका प्रभाव 10 प्रतिशत ही हुआ । लेकिन प्रो. मॉर्गन ने इसका कारण रोग का अन्तिम अवस्था में पहुँचना बताया ।
अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान द्वारा किये गये एक रिसर्च के अनुसार ॐ के उच्चारण से इंटरनल , ऑटोनोमिक नर्व्स पर प्रभाव पडता है और दोनों की गतिविधियाँ कम हो जाती है । जिससे लोग शान्ति अनुभव करने लगते है । एंग्जाइटी , डिप्रेशन व रक्तचाप ठीक हो जाता है । ॐ के उच्चारण से नाभि से लेकर मस्तिष्क तक धमनियाँ सामान्य होने लगती है । इससे रक्त प्रवाह सामान्य हो जाता है , जिससे ॐ का प्रभाव नकारा नहीं जा सकता ।
ॐ को उच्चारण की दृष्टि से तीन स्वरों अ , उ एवं म् के रू में स्पष्ट किया जाता है । ' अ ' सृष्टि के उद्भव का , ' उ ' सृष्टि के विस्तार का तथा ' म् ' सृष्टि के समाहार का प्रतिक है । ' अ ' शब्द के उच्चारण से ओज एवं शक्ति का विकास होता है । ' उ ' शब्द के उच्चारण से यकृत , पेट एवं आंतों पर अच्छा प्रभाव पडता है । ' म ' शब्द के उच्चारण से मानसिक शक्ति विकसित होती है । विभिन्न मनोदैहिक रोगों के उपचार में ॐ ( ओम् ) मन्त्र की सफलता असंदिग्ध है । असाध्य मानसिक रोगों में भी इस मन्त्र से आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त किये जा सकते है । तनाव , अवसाद जैसे मनोरोगों से पीडित मनुष्य के लिए यह मन्त्र किसी औषधि से कम नहीं है । ॐ जाप स्नायुओं की दुर्बलता , हृदय रोग , उच्च व निम्न रक्तचाप , मधुमेह जैसे रोगों में भी लाभदायक है । ओम् मन्त्र के नियमित जाप से हृदय की शुद्धि होती है तथा मानसिक शक्ति प्रखर होती है ।
ॐ का प्रयोग करें और लाभ उठाएँ : -
आप स्वयं भी ॐ के चमत्कारी लाभों से फायदा उठा सकते है । प्रतिदिन प्रातः और रात्रि सोते समय ओम् का जाप पाँच - दस मिनट तक करें और फिर कुछ देर बिना बोले ( मानसिक ) जाप करें । कुछ ही दिनों में आप देखेंगे कि आप के सारे के सारे शारीरिक और मानसिक रोग ठीक होते जा रहे है । बुद्धि , स्मरणशक्ति , शक्ति , उत्साह तथा प्रसन्नता आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती ही जायेगी ।
ॐ लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

रविवार, 6 नवंबर 2011

त्याग एवं गौ पूजा के पवित्र पर्व बकर ईद ( ईद - उल - जुहा ) के अवसर पर एक अनुरोध :- अल्लाह के नाम पर पशु - बलि जैसा महापाप क्यों ?

बकर ईद ( ईद - उल - जुहा ) त्याग और गौ पूजा का महान पर्व है , जो त्याग के महिमावर्द्धन और गौ वंश के संरक्षण के लिए मनाया जाता है । त्याग की प्रेरणा के लिए हजरत इब्राहीम के महान त्याग को याद किया जाता है और गौ पूजा के लिए प्राचीन अरबी समाज की समृद्ध वैदिक संस्कृति को । बकरीद अर्थात बकर + ईद , अरबी में गाय को बकर कहा जाता है , ईद का अर्थ पूजा होता है । जिस पवित्र दिन गाय की सेवा करके पुण्य प्राप्त किया जाना चाहिए , उस दिन ईद की कुर्बानी देने के नाम पर विश्वभर में लाखों निर्दोष बकरों , बैलों , भैसों , ऊँटों आदि पशुओं की गर्दनों पर अल्लाह के नाम पर तलवार चला दी जाएगी , वे सब बेकसूर पशु धर्म के नाम पर कत्ल कर दिए जायेगे ।
कुर्बानी की यह कुप्रथा हजरत इब्राहीम से सम्बंधित है । इस्लामी विश्वास के अनुसार हजरत इब्राहीम की परीक्षा लेने के लिए स्वयं अल्लाह ने उनसे त्याग - कुर्बानी चाही थी । हजरत इब्राहीम ज्ञानी और विवेकवान महापुरूष थे । उनमें जरा भी विषय - वासना आदि दुर्गुण नहीं थे , जब दुर्गुण ही नहीं थे तो त्यागते क्या ? उन्हें मजहब प्रचार के हेतु से पुत्र मोह था , अतः उन्होंने उसी का त्याग करने का निश्चय किया । मक्का के नजदीक मीना के पहाड़ पर अपने प्रिय पुत्र इस्माईल को बलि - वेदी पर चढाने से पहले उन्होंने अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली । जब बलि देने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने खड़ा देखा । वेदी पर कटा हुआ मेमना पड़ा हुआ था ।
त्याग के इस महान पर्व को धर्म के मर्म से अनजान स्वार्थी मनुष्यों ने आज पशु - हत्या का पर्व बना दिया है । लगता है कि आज के मुस्लिम समाज को भी अल्लाह पर विश्वास नहीं है तभी तो वे अपने पुत्रों की कुर्बानी नहीं देते बल्कि एक निर्दोष पशु की हत्या के दोषी बनते है । यदि बलि देनी है तो बलि विषय वासनाओं , इच्छाओं और मोह आदि दुर्गुणों की दी जानी चाहिए , निर्दोष निरीह पशुओं की नहीं । पशु बलि न तो इस्लाम के अनिर्वाय स्तम्भों में से एक है और न ही मुसलमानों के लिए अनिवार्य कही गयी है । पशु हत्या के बिना भी एक पक्का मुसलमान बना जा सकता है । इस्लाम का अर्थ शान्ति है तो ईद के अवसर पर निर्दोष पशुओं की हत्या का चीत्कार क्यों ?
जब एक पशु किसी मनुष्य को मारता है तो सभी लोग उसको दरिंदा कहते है , और जब एक मनुष्य किसी पशु को मारकर या मरवाकर उसकी लाश को मांस के नाम से खाता है तो आधुनिक बुद्धिजीवी मनुष्य उसको दरिंदा न कहकर मांसाहारी कहते है । क्या मांस किसी पशु की हत्या किए बिना प्राप्त हो जाता है ? अल्लाह के नाम पर , धर्म के नाम पर पशु बलि व मांसाहार की दरिंदगी को छोड़कर स्वस्थ और सुखद शाकाहारी जीवन अपनाओं ।
शाकाहार विश्व को भूखमरी से बचा सकता है । आज विश्व की तेजी से बढ़ रही जनसंख्या के सामने खाद्यान्न की बड़ी समस्या है । एक कैलोरी मांस को तैयार करने में दस कैलोरी के बराबर शाकाहार की खपत हो जाती है । यदि सारा विश्व मांसाहार को छोड़ दे तो पृथ्वी के सीमित संसाधनों का उपयोग अच्छी प्रकार से हो सकता है और कोई भी मनुष्य भूखा नहीं रहेगा क्योंकि दस गुणा मनुष्यों को भोजन प्राप्त हो सकेंगा । कुर्बानी की रस्म अदायगी के लिए सोयाबीन अथवा खजूर आदि का उपयोग किया जा सकता है ।
बकर ईद के अवसर पर गौ आदि पशुओं के संरक्षण का संकल्प लिया जाना चाहिए । हदीस जद - अल - माद में इब्न कार्य्यम ने कहा है कि " गाय के दूध - घी का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि यह सेहत के लिए फायदेमंद है और गाय का मांस सेहत के लिए नुकसानदायक है । "
ईश्वर पशु - हत्यारों को सद्बुद्धि प्रदान करे और वे त्याग एवं गौ पूजा के इस पवित्र पर्व बकर ईद के तत्व को समझकर शाकाहारी और सह - अस्तित्व का जीवन जीने का संकल्प लें , हार्दिक शुभकामनाएँ ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '