रविवार, 24 जुलाई 2011

एक माँ की दुर्लभ अभिलाषा


एक 28 वर्षीय तरूण क्रान्तिकारी को फाँसी की सजा दी गयी । उस क्रान्तिकारी की माँ ने जेल प्रशासन से अपने लाडले पुत्र के अन्तिम संस्कार हेतु शव की मांग की । अत्याचारी निर्दयी अंग्रेजों को डर था कि कहीं जनता क्रान्तिकारी तरूण का शव देखकर भडक नहीं उठे । अतः उस क्रान्तिकारी का शव उस माँ को न सौपने हेतु जेल प्रशासन द्वारा तरह - तरह के तर्क - वितर्क दिये जाते रहे । लेकिन अन्त में उस माँ के तर्को के सामने प्रशासन को झुकना पडा और तरूण के शव को उस माँ को सौपना पडा । माँ अपने तरूण पुत्र का शव लेकर चल पडी , रास्ते में क्रान्तिकारियों के समर्थकों की टोलियाँ आती गयी और काफिला बनता गया । देखते ही देखते कुछ ही समय में शवयात्रा ने एक विशाल जुलूस का रूप धारण कर लिया ।
जब उस क्रान्तिकारी की शव यात्रा मुख्य सडकों से होती हुई उर्दू बाजार पहुँची तो माँ ने आगे आकर कहा - " मेरे लाडले की अर्थी को जरा विश्राम दे दो । तुरन्त एक स्टूल की व्यवस्था करों । "
उपस्थित लोगों में खुसर - पुसर शुरू हुई कि माता जी स्टूल का क्या करेंगी । खैर स्टूल मंगवाया गया । बडे ही गर्व से माता जी स्टूल पर खडी होकर उपस्थित जनसमुदाय को सम्बोधित कर बुलन्द आवाज में कहने लगी ,
" मुझे गर्व है कि मेरे बेटे ने न केवल मेरी कोख की लाज रखी है , बल्कि आप सबको वह रास्ता दिखाया है , जिस पर चलकर आप एक न एक दिन देश को अवश्य आजाद करा लेंगे । मेरे पास देश को देने के लिए और कुछ नहीं है । हाँ , छोटा बेटा है , जिसे मैं जयदेव कपूर को सौपती हूँ और उनसे कहती हूँ कि वे उसे भी ऐसा ही बनायें , जैसा कि उसका बडा भाई था । वह भी अपने बडे भाई के पद चिन्हों पर चलकर दुश्मन गोरों से लोहा लेता हुआ अपना जीवन धन्य करें । वक्त आने पर भाई के समान भारत माता के चरणों में पूजा के पुष्प की तरह समर्पित हो जाए । " माँ बोल रही थी और समस्त जनसमुदाय स्तब्ध श्वांस रोके सुन रहा था ।
" मेरी यही अभिलाषा है । भारत माता की ओजस्वी सन्तानों की , देश हित में बलिदान होने की परम्परा मंद नहीं पड जाये । आपने आज मेरे शहीद पुत्र को जो सम्मान प्रदान किया है , उसके लिए मैं जन - जन की कृतज्ञ हूँ । "
और ऐसा कहकर वह माँ नीचे उतर आयी । शव यात्रा श्मशान घाट की तरफ चल दी । ऐसी दिव्य अभिलाभा रखने वाली वह देवी थी , अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की माँ । विश्व भर के क्रान्ति इतिहास में शायद ही ऐसी माँ की दूसरी मिसाल मिले । सत्ता के दलालों ने ऐसी दिव्य आत्मा के प्रति भी न्याय नहीं किया । वे विस्मृत कर दी गयी । उस दिव्य माँ को हम सबका प्रणाम ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

4 टिप्‍पणियां:

  1. पहली बार जाना। सुन्दर और प्रेरक! धन्यवाद यह पढ़वाने के लिए। अब ऐसी माताएँ हैं? लेकिन गाना गाते हैं- कि दशरथ जैसे पिता हैं राम जैसा पुत्र नहीं। सब बकवास! क्योंकि मैं किसी ऐसे आदमी को नहीं जानता जो अपनी सन्तान को ऐसी शिक्षा देता हो और आदर्श की बात करता हो। पाखंडियों से भरा हमारा देश।

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  2. विश्वजीत सिंह जी...यह जानकारी पहली बार मिली...आभार...
    उस दिव्य माँ को प्रणाम...यही तो है हमारी भारत माँ...

    चन्दन भाई, यह देश केवल पाखंडियों का नहीं है| आँखे खोल कर देखें, दिल खोल कर देखें, विश्वास के साथ देखें, बहुत कुछ सकारात्मक दिखाई देगा|

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  3. दिवस भाई,
    ऐसे लोग 120 करोड़ में कितने हैं जिन्होंने अपने बेटे-बेटियों को सिखाया है कि भगतसिंह बनो। मैंने तो आज तक न सुना, न देखा, न पढ़ा मतलब 1947 के बाद की बात कर रहा हूँ। इससे सहमत कि लोग हैं लेकिन कम हैं। आपने कहा है केवल, हाँ सही है केवल तो नहीं अधिकांश पाखंडी तो हैं ही।

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  4. एक अच्छा आलेख पढ़ने को मिला विश्वजीत जी साधुवाद आपको !
    @ दिवस भाई हाँ हमें सारात्मक सोचना चाहिए और सारात्मक ही कर्म करना चाहिए तब बहुत कुछ तो नहीं परन्तु कुछ तो बदल ही सकता है , @ चन्दन भाई आपकी बात मुझे अच्छी लगी कि आज कितने माँ बाप हैं जो ऐसा सोचते हैं कि उनके बच्चे भगत सिंह, राजगुरु , सुखदेव आजाद चंद्रशेखर बने ? नहीं शायद यही मैकाले कि चाल थी जो उनसे हमारे यहाँ के पुराने सभ्य सुसंस्कृतिक शिक्षा प्रणाली को बदलवाकर नवीनतम शिक्षा प्रणाली लागू करवाई जो हमें पश्चिम अमेरिकी सभ्यता की तरफ ले जा रही है जिसके अन्धाक्र में आज हर माँ बाप अपने बचे को रियलिटी शो दिखा कर शाहरुख बंदर खान या फिर मल्लू सलमान खान या फिर राखी सावंत बनाना चाहता है !

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