बुधवार, 20 जुलाई 2011

महान गणितज्ञ गोस्वामी तुसलीदास


महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी को गणितज्ञ कहा जाना थोडा अटपटा लगना स्वभाविक है लेकिन तुलसीदास के साहित्य में गणित और ज्योतिष का प्रयोग देखकर हमें तुलसीदास को गणितज्ञ तो मानना ही पडेगा । तुलसीदास की प्रसिद्ध रचना ' हनुमान चालिसा ' की पंक्ति - ' जुग सहस्त्र योजन पर भानू ...... ' हमें उनके ज्ञान के बारे में एक नये दृष्टिकोण से सोचने पर विवश करती है , इस पंक्ति में उन्होंने सूर्य को पृथ्वी से युग ( जुग ) सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित बताया हैं । जब इसके आधार पर वैदिक गणित के अनुसार गणना की जाती है तो पृथ्वी से सूर्य की दूरी का सही मान निकल कर आता है । सर्वप्रथम युग , सहस्त्र और योजन इन पदों के मान देखें ।
* युग - साधारणतः युग शब्द चार के अर्थ में प्रयुक्त होता है । किन्तु यहाँ युग तथा उसका मान दिव्य वर्षो एवं सौर वर्षो में क्या होता है साथ ही चार युग अर्थात चतुर्युग का मान वर्षो में कितना है , यह ज्ञात देखेगे ।
सतयुग दिव्य वर्षो में 4800 वर्ष तथा सौर वर्षो में 1728000 वर्ष
त्रेतायुग दिव्य वर्षो में 3600 वर्ष तथा सौर वर्षो में 1296000 वर्ष
द्वापरयुग दिव्य वर्षो में 2400 वर्ष तथा सौर वर्षो में 864000 वर्ष
कलियुग दिव्य वर्षो में 1200 वर्ष तथा सौर वर्षो में 432000 वर्ष ।
चतुर्युग का मान सौर वर्षो में अधिकांश व्यक्ति जानते है किन्तु चतुर्युग का मान दिव्य वर्षो में 12000 है और यह वैदिक काल गणना का एक मुख्य आधार है ।
* सहस्त्र - सहस्त्र अर्थात हजार , गणना करने में सहस्त्र का मान एक हजार रखते है ।
* योजन - 1 योजन = 8 मील , 1 मील = 1.6 कि.मी. ( लगभग )
जब तीन पदों क्रमशः युग , सहस्त्र और योजन का मान रखकर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा दिये गये सूत्र से पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी की गणना की जाती है तो -
युग सहस्त्र योजन पर भानू = 12000x 1000x8 = 9,60,00,000 = 9,60,00,000x1.6 कि.मी. = 15,36,00,000 कि.मी.
पन्द्रह करोड छत्तीस लाख किलोमीटर पृथ्वी से सूर्य की दूरी निकल कर आती है । यह मान गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ' जुग सहस्त्र योजन पर भानू ...... ' से ज्ञात होता है । वर्तमान की गणना के आधार पर भी हम जानते है कि पृथ्वी की दूरी 150000000 ( पन्द्रह करोड ) किलोमीटर लगभग है । यह सुखद आश्चर्य है कि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा दिया गया पृथ्वी से सूर्य की दूरी का मान , वर्तमान गणना के लगभग निकट है । अब तो मानना ही पडेगा कि गोस्वामी तुलसीदास महान गणितज्ञ भी थे ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

10 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी मर्जी से क्यों तुले हुए हैं ये सब साबित करने पर। तुलसी कोई गणितज्ञ नहीं हैं। वैसे 43,20,000 साल होते हैं चार युग में । इसलिए 4320000*1000*4*3 किलोमीटर होगा। योजन मतलब चार कोस जिसे क्रोश कहते हैं संस्कृत में। तुलसी अगर गणितज्ञ थे तो एक ही सूत्र क्यों दे पाए?

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  2. तुलसी का महत्‍व, उनके अच्‍छे साहित्‍यकार और भक्‍त होने से बना रहेगा, उन्‍हें अलग-अलग शास्‍त्रों के ज्ञाता साबित करने में उनकी छीछालेदर होना अधिक संभव है, अगर आपका उद्देश्‍य यह नहीं तो एक बार स्‍वयं विचार करें.

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  3. युग नहीं जुग लिखा है तुलसीदास ने।

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  4. आदरणीय श्रीचंदन कुमार मिश्र जी सर्वप्रथम तो आपकों धन्यवाद कि आप मेरे ब्लॉग पर न केवल आये बल्कि अपने अमूल्य विचारों से भी मुझे अनुग्रहित किया ।
    प्राचीन वैदिक गणित में प्रत्येक युग की अवधि अलग - अलग होती है , जिसका कुल योग दिव्य वर्षो में 12000 वर्ष तथा सौर वर्षो में 4320000 वर्ष होते है ।
    गोस्वामी तुलसीदास जी ने युग को ही अपनी भाषा में जुग लिखा था , जिसे आपके मार्गदर्शन के बाद मैंने भी वापस मूल रूप में जुग कर दिया है ।
    अंत में अमूल्य मार्गदर्शन के लिए आपका आभार ।

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  5. विश्वजीत भाई,
    तुलसीदास ने जिक्र किया ही नहीं कि सौर वर्ष या दिव्य वर्ष फिर आप अर्थ निकाल रहे हैं। और दूसरा कि गणितज्ञ पूरे जीवन में एक ही चौपाई में गणित का ज्ञान दिखाता है?

    प्राचीन वैदिक गणित में शायद इसकी कल्पना भी नहीं थी।
    we claim these are indian discoveries 1.pdf खोजें गूगल में, कुछ मिलेगा।

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  6. પુરાણકાળ અનુસાર સમયનો વિચાર
    ૧૮ નિમેષ (આંખનો પલકારો) = ૧ કાષ્ઠા
    ૩૦ કાષ્ઠા = ૧ કલા (ચંદ્રનો સોળમો ભાગ)
    ૩૦ કલા = ૧ ઘટી (૨૪ મિનિટ)
    ૨ ઘટી = ૬૦ કલા = ૧ મુહૂર્ત (૪૮ મિનિટ)
    ૬૦ ઘટી = ૩૦ મુહૂર્ત = ૧ દિન-રાત
    ૧૫ દિન - રાત = ૧ પક્ષ
    ૨ પક્ષ = ૧ મહિનો
    ૬ મહિના = એક દક્ષિણાયન
    ૬ મહિના = એક ઉત્તરાયન
    ૨ અયન = એક વર્ષ
    ૧ દક્ષિણાયન = એક દિવ્ય રાત
    ૧ ઉત્તરાયન = એક દિવ્ય દિવસ
    ૩૦ વર્ષ = એક દિવ્ય માસ
    ૩૬૦ વર્ષ = એક દિવ્ય વર્ષ
    ૩૦૩૦ વર્ષ = એક સપ્તર્ષિ વર્ષ
    ૯૦૯૦ વર્ષ = એક ધ્રુવ વર્ષ
    ૯૬,૦૦૦ વર્ષ = એક દિવ્ય સહસ્ર
    ૧૭,૨૮,૮૦૦ વર્ષ = એક સત્યયુગ
    ૧૨,૯૬,૦૦૦ વર્ષ = એક ત્રેતાયુગ
    ૮,૬૪,૦૦૦ વર્ષ = એક દ્વાપરયુગ
    ૪,૩૨,૦૦૦ વર્ષ = એક કલિયુગ
    ૪૩,૨૦,૦૦૦ વર્ષ = એક ચતુર્યુગી
    ૩૦,૬૭,૨૦,૦૦૦ વર્ષ = એક મન્વંતર
    ૪,૨૯,૪૦,૮૦,૦૦૦ વર્ષ = ચૌદ મન્વંતર
    ૪,૩૨,૦૦,૦૦,૦૦૦ વર્ષ = એક બ્રાહ્ન દિન-સહસ્ર ચતુયુંગી
    ૪,૩૨,૦૦,૦૦,૦૦૦ વર્ષ = એક બ્રહ્ન રાત

    राजेंद्र-गुजरात

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  7. एक परमाणु मानवीय चक्षु के पलक झपकने का समय = लगभग 4 सैकिण्ड
    एक विघटि = ६ परमाणु = (विघटि) is २४ सैकिण्ड
    एक घटि या घड़ी = 60 विघटि = २४ मिनट
    एक मुहूर्त = 2 घड़ियां = 48 मिनट
    एक नक्षत्र अहोरात्रम या नाक्षत्रीय दिवस = 30 मुहूर्त (दिवस का आरम्भ सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक, ना कि अर्धरात्रि से)

    विष्णु पुराण में दिया गया अक अन्य वैकल्पिक पद्धति समय मापन पद्धति अनुभाग, विष्णु पुराण, भाग-१, अध्याय तॄतीय निम्न है:

    10 पलक झपकने का समय = 1 काष्ठा
    35 काष्ठा= 1 कला
    20 कला= 1 मुहूर्त
    10 मुहूर्त= 1 दिवस (24 घंटे)
    50 दिवस= 1 मास
    6 मास= 1 अयन
    2 अयन= 1 वर्ष, = १ दिव्य दिवस
    छोटी वैदिक समय इकाइयाँ
    एक तॄसरेणु = 6 ब्रह्माण्डीय अणु.
    एक त्रुटि = 3 तॄसरेणु, या सैकिण्ड का 1/1687.5 भाग
    एक वेध =100 त्रुटि.
    एक लावा = 3 वेध.
    एक निमेष = 3 लावा, या पलक झपकना
    एक क्षण = 3 निमेष.
    एक काष्ठा = 5 क्षण, = 8 सैकिण्ड
    एक लघु =15 काष्ठा, = 2 मिनट.
    15 लघु = एक नाड़ी, जिसे दण्ड भी कहते हैं. इसका मान उस समय के बराबर होता है, जिसमें कि छः पल भार के (चौदह आउन्स) के ताम्र पात्र से जल पूर्ण रूप से निकल जाये, जबकि उस पात्र में चार मासे की चार अंगुल लम्बी सूईं से छिद्र किया गया हो. ऐसा पात्र समय आकलन हेतु बनाया जाता है.
    2 दण्ड = एक मुहूर्त.
    6 या 7 मुहूर्त = एक याम, या एक चौथाई दिन या रत्रि.
    4 याम या प्रहर = एक दिन या रात्रि.
    राजेंद्र -गुजरात

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  8. In original Valmiki Ramayana, height of Hindukush (Pāriyātra Parvata) was mentioned as "shata yojanam" (100 yojana) The height of Hindukush is approx 8000 meters. This means, length of unit 'Yojana' in Ramayana time was approx 80 meters (and not 8 miles). Goswami Tulsidas was poet, saint and philosopher (and not astronomer or mathematician). He must have taken references from Valmiki Ramayana when he authored Hanumanchalisa in 15th century.

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