रविवार, 10 जुलाई 2011

श्रीकृष्ण और कम्युनिस्ट


ईस्वी सन 1941 की बात है । स्वाधीनता संग्राम सेनानी रघुकुल तिलक तथा विख्यात शायर सज्जाद जहीर आदि अनेक व्यक्ति लखनऊ की जेल में सजा काट रहे थे । श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात को डॉ. जवाहर लाल रस्तोगी व बाबा रामचन्द्र ने फूलों की डोली बनाई । उसमें श्रीकृष्ण की मूर्ति रखी गई । गीता का अखण्ड पाठ हुआ । रघुनाथ तिलक ने अचानक सच्जाद जहीर की ओर संकेत करते हुए कहा , ' ये विचारधारा से कम्युनिस्ट हैं । विख्यात लेखक भी हैं । अतः आज इन्हीं के मुख से कृष्ण लीलाओं पर कुछ सुनिएगा । '
सज्जाद जहीर मुस्कराए व सूरदास के कुछ पद सुनाने के बाद बोले , ' मुझे श्रीकृष्ण के जीवन का वह प्रसंग बहुत पसंद है , जब उन्होंने दूध , दही तथा घी ब्रज के गांवों से बाहर ले जाने का विरोध करते हुए क्रान्तिकारी स्वरूप का प्रदर्शन कर मटकियां फोडी थी । मैं कृष्ण के उस रूप का भी कायल हूँ , जब वह साधारण परिवार में जन्मे गोप - बालकों के साथ खाते - पीते थे , समता का संदेश देते थे । ' एक घोर कम्युनिस्ट नेता से श्रीकृष्ण का गुणगान सुनकर लोग बहुत प्रसन्न हुए ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. धर्म,दर्शनऔर परंपरा में समयोचित सार्थकता देखी जानी चाहिए | अन्धानुकरण सर्वत्र त्याज्य है |

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  2. ये लेख बताना क्या चाहता है? समझ में नहीं आया। मेरी बातों का जवाब कृपाया ईमेल से देंगे क्योंकि अब सभी आलेखों पर तो मै नहीं आ सकता।

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