गुरुवार, 22 सितंबर 2011

शौकत अली को वीर सावरकर का करारा जबाब


सन् 1914 में हिन्दुओं के सुप्त स्वाभिमान को जाग्रत करने के उद्देश्य से कुछ दिनों के लिए वीर सावरकर मुम्बई में ठहरे हुए थे । एक दिन अरब साम्राज्यवादी कट्टर जेहादी मुसलमानों के हिन्दुस्थानी प्रतिनिधि नेता शौकत अली उनसे मिलने आये । उन्होंने वीर सावरकर की भूरि - भूरी प्रशंसा की । परन्तु साथ ही साथ बतलाया कि ' आपको हिन्दू संगठन का कार्य नहीं करना चाहिए । '
वीर सावरकर ने कहा - ' आप यदि खिलापत आन्दोलन बन्द करते है , तब तो आपके सुझाव पर मैं कुछ विचार कर सकता हूँ । '
शौकत अली ने कहा - ' खिलापत आन्दोलन तो मेरा प्राण है । वह मैं कैसे छोड़ सकता हूँ ? ' ( खिलापत आन्दोलन तुर्की के खलीपा के समर्थन में चलाया गया विशुद्ध साम्प्रदायिक आन्दोलन था , जिसका भारत या भारत के मुसलमानों से कोई सम्बन्ध नहीं था । )
वीर सावरकर ने उत्तर दिया - ' अच्छा तो यह बात है । मुसलमान अपनी अलग खिचड़ी पकाते रहेंगे । वे मुसलमानों की संस्थाएँ चलाते रहेंगे । वे धर्मान्तरण भी कराते रहेंगे और चाहेंगे कि हिन्दू हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें , तो यह कभी नहीं हो सकता । हिन्दू संगठन और शुद्धि का कार्यक्रम तीव्र गति से चलाने का हमारा निश्चय है । '
सौकत अली ने कहा - ' मैं इतना भर कह सकता हूँ कि सब मुसलमान हिन्दू संगठन के विरोध में है । आपके इन आन्दोलनों ने उन्हें प्रक्षुब्ध कर दिया है । यदि आप इन सब गतिविधियों को छोड़ते नहीं है , तब आपके भाग्य का ही हवाला देना पड़ेगा । फिर आप पर क्या बीतेगी , मैं नहीं कह सकता । '
वीर सावरकर ने कहा - ' तोप , तमंचा और आधुनिक शस्त्रास्त्रों से लैस अंग्रेज सरकार जब मुझे नहीं झुका सकी तब क्या समझते है कि मैं केवल मुसलमानों के हाथ के छुरों से डर जाऊँगा ? '
सौकत अली ने कहा - ' देखों , मुसलमानों के तो कई देश है । यहाँ रहना यदि असम्भव हुआ , तो मुसलमान कही अन्यत्र चले जायेंगे । तब आपकी क्या गति होगी । '
वीर सावरकर ने तपाक से कहा - ' शौक से जाइये । कल जाना हो तो आज जाइये । जिनकी यहाँ निष्ठा नहीं है , वे यहाँ न रहें तभी अच्छा है । '
विदा होते समय हाथ मिलाते हुए शौकत अली ने हँसते - हँसते हुए कहा - ' देखो सावरकर जी ! मैं कितना ऊँचा , पूरा और बलिष्ठ हूँ । आप मेरे सामने बहुत छोटे है । मैं आपको पल भर में मसल सकता हूँ । '
वीर सावरकर ने तपाक से उत्तर दिया - ' वैसा प्रयत्न कीजिये और आजमाइये कि क्या नतीजा निकलता है । मैं आपको जबाबी चुनौती देता हूँ । एक बात ध्यान में रखिये । अफजल खाँ का आकार राक्षस जैसा था । उसकी तुलना में शिवाजी नाटे और छोटे थे । परन्तु किसकी विजय हुई , यह सारी दुनिया जानती है । '
वीर सावरकर का यह तेजस्वी जबाब सुनकर समूचे हिन्दुस्थान को दारूल इस्लाम बनाने का स्वप्न देखने वाले शौकत अली ठण्डे पड़ गये ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

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