रविवार, 11 सितंबर 2011

वीर सावरकर और हिन्दी भाषा


स्वातंत्र्यवीर सावरकर हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाये जाने के प्रबल समर्थक थे । 6 जनवरी 1924 में वीर सावरकर को कारागार से मुक्त किया गया और उन्हें सशर्त रत्नागिरि जनपद में स्थानबद्ध कर दिया गया । केवल जनपद भर में घुमने - फिरने की स्वतंत्रता उन्हें दी गई , इसका लाभ उठाकर वीर सावरकर ने हिन्दी भाषा के प्रचार - प्रसार के लिए भाषा - शुद्धि आन्दोलन प्रारम्भ किया । आन्दोलन के प्रचार के लिए उन्होंने भाषा शुद्धि नामक विस्तृत लेख लिखा । उन्होंने लिखा - ' अपनी हिन्दी भाषा को शुद्ध बनाने के लिए हमें सबसे पहले हिन्दी भाषा में घुसाये गये अंग्रेजी व उर्दू के शब्दों को निकाल बाहर करना चाहिए । संस्कृतनिष्ठ हिन्दी ही हमारी राष्ट्रभाषा है । हिन्दी में अंग्रेजी व उर्दू शब्दों के मिश्रण से वर्णसंकरी भाषा बन गयी है । ' उन्होंने देवनागरी लिपि को ही भारत की एकता का आधार बताते हुए लिखा -
' भारत के सब भाषा - भाषी लोग यदि नागरी लिपि में अपनी भाषाओं को लिखना आरम्भ कर दें तो भारत की भाषायी समस्या सुविधापूर्वक हल हो सकती है । ' नागरी लिपि में छपाई के कुछ दोष देखकर उन्होंने इसकी वर्णमाला में आवश्यक सुधार किया , ताकि छपाई में अधिक सुविधा हो । आज तो उन सुधारों को प्रायः सभी मराठी प्रेसों ने अपनाकर अपने टाईपों में परिवर्तन कर लिया है और हिन्दी प्रेसों में भी उनका तेजी से अनुकरण किया जा रहा है ।
वीर सावरकर ने हिन्दी के विकास के लिए एक हिन्दी शब्दकोष की भी रचना की । शहीद के स्थान पर हुतात्मा , प्रूफ के स्थान पर उपमुद्रित , मोनोपोली के लिए एकत्व , मेयर के लिए महापौर आदि शब्द वीर सावरकर की ही देन है । वीर सावरकर ने अनेक बार ' परकीय शब्दों का बहिष्कार करों ' का उद्घोष कर शुद्ध हिन्दी अपनाने पर बल दिया ।
गांधी जी ने जब साम्प्रदायिक तुष्टिकरण की विभाजक नीतियों पर चलते हुए हिन्दी के स्थान पर हिन्दुस्तानी भाषा ( फारसी लिपि में लिखे जाने वाली उर्दू भाषा ) को हिन्दुस्थान की राष्ट्रभाषा बनाये जाने का आह्वान किया और भगवान श्रीराम को शहजादा राम , महाराजा दशरथ को बादशाह दशरथ और माता सीता को बेगम सीता तथा महर्षि वाल्मीकि को मौलाना वाल्मीकि शब्दों से संबोधित कराया तो वीर सावरकर ने गांधी जी की अनुचित भाषा की कड़ी आलोचना करते हुए हिन्दुस्थान की आत्मा पर घोर प्रहार बताया । पुणे में जब राजर्षि श्री पुरूषोत्तम दास टंडन की अध्यक्षता में हिन्दी राष्ट्रभाषा सम्मेलन हुआ तो गांधी जी की हिन्दुस्तानी भाषा का प्रस्ताव गिरा दिया गया और संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का प्रस्ताव पास हो गया ।
हिन्दी भाषा के श्लाकापुरूष राजर्षि श्री पुरूषोत्तम दास टंडन ने एक लेख में लिखा था - ' मुझे संस्कृतनिष्ठ हिन्दी के आन्दोलन की प्रेरणा वीर सावरकर से ही प्राप्त हुई थी । ' वीर सावरकर ने ही सबसे पहले विशुद्ध हिन्दी अपनाओं आन्दोलन प्रारम्भ किया था ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

4 टिप्‍पणियां:

  1. हिंदी भाषा के संस्कृतनिष्ठ स्वरुप और सभी भारतीयों को एक सूत्र में बाँधने में वीर सावरकर का बहुत बड़ा योगदान है। आपका यह आलेख बहुत प्रेरणादायी है। जहाँ तक संभव हो हिंदी के शुद्धतम स्वरुप का प्रयोग होना चाहिए बोलने और लिखने दोनों में।

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  2. अच्छा। पढ़ा। गाँधी जी का वह प्रयोग तो घटिया रहा ही। सावरकर की संस्कृत की पक्षधरता और मराठियों में इतना आदर होता तो हिन्दी के लिए लड़ते न कि हिन्दी में शपथ लेने मात्र से विधायक से हाथापाई करते और पूरा महाराष्ट्र खामोश बैठा रहता। भाषा का बचना आवश्यक है लेकिन अधिक शुद्धिकरण से बचना चाहिए। भाषा में जबरदस्त सीमा बाँधना उचित नहीं। फिर भी सावरकर के हिन्दी प्रेम का सम्मान करते हुए आपको यह जानकारा उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद!

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  3. सावरकर जी से सहमति।
    केवल जज़िया, काफिर, जहन्नुम, हूर इत्यादि, शब्द अनुवादित नहीं किए जा सकते। संस्कृत भाषा आध्यात्मिक,
    शुद्ध हिन्दी राष्ट्रीय,
    और अन्य परदेशी भाषाएं,दैहिक है।
    संस्कृत में आपको गाली नहीं मिलेगी।

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