रविवार, 20 नवंबर 2011

अपने को हिन्दू बताते हुए मुझे गर्व का अनुभव होता है - स्वामी विवेकानन्द

शेर की खाल ओढ़कर गधा कभी शेर नहीं बन सकता । अनुकरण करना , हीन और डरपोक की तरह अनुसरण करना , कभी उन्नति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता । वह तो मनुष्य के अधःपतन का लक्षण है । जब मनुष्य अपने - आप पर घृणा करने लग जाता है , तब समझना चाहिए कि उस पर अंतिम चोट बैठ चुकी है । जब वह अपने पूर्वजों को मानने में लज्जित होता है , तो समझ लो उसका विनाश निकट है । यद्यपि मैं हिन्दू जाति में एक नगण्य व्यक्ति हूँ तथापि अपनी जाति और अपने पूर्वजों के गौरव से मैं अपना गौरव मानता हूँ ।
अपने को हिन्दू बताते हुए , हिन्दू कहकर अपना परिचय देते हुए मुझे एक प्रकार का गर्व - सा अनुभव होता है । ... अतएव भाइयों , आत्मविश्वासी बनो । पूर्वजों के नाम से अपने को लज्जित नहीं , गौरवान्वित समझों । याद रहे , किसी का अनुकरण कदापि न करो ।
- स्वामी विवेकानन्द

10 टिप्‍पणियां:

  1. सत्य कह गए स्वामी विवेकानंद...
    आज तो परिस्थितियाँ विपरीत हैं| हिन्दू खुद पर शर्म कर रहा है, उस कार्य के लिए जो हिन्दू ने किये ही नहीं| हमारी मैकॉले मानस शिक्षा प्रणाली ने वह पढ़ाया जो कभी हमारा था ही नहीं|
    हिन्दुओं को केवल धर्म में दोष ही kyon नज़र आता है| क्या वे इतना भी नहीं सोच सकते कि यदि हिन्दू धर्म इतना बुरा था तो भारत विश्वगुरु कैसे बन गया?
    स्वामी विवेकानंद के कथनों पर ध्यान देने की आवश्यकता है...

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  2. हिन्दू आज अपने अस्त्तित्व को लेकर संघर्षरत हे हम सब को साथ मिल कर हिन्दू शक्ति को बढ़ाना चाहिए हिंदुत्व विरोधियो का मुह बंद कर देना चाहिए

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  3. शब्द ऐसे जिनसे लोगों की आँखे खुल जाये,

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  4. हुजूर! विश्वगुरू तो 4-5 एशियाई देशों के ही कारण कोई नहीं बन जाता। सर्वमान्य है कि भारत के लोग अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका किसी को नहीं जानते थे। और विश्वगुरू कुछ देर के लिए कह भी लें तो वह समय या गुरू होने कारण बौद्ध धर्म रहा था, न कि हिन्दू धर्म। सारे प्रमाण इसके लिए हैं कि विश्वविद्यालय हो या कोई बड़ा गुरु-ज्ञान केंद्र सब बौद्धों के थे। ब्राह्मणों पर जिसका आरोप है कि इन्होंने सारे विहारों को बचाया नहीं। यह सही है कि विदेशी आक्रान्ताओं ने भी हमले किए, बहुत कुछ नष्ट किया लेकिन हिन्दू के मन्दिर और सारे प्रतीक इतनी बड़ी मात्रा में बचे रहे, इसलिए कि बौद्धों से सच में ब्राह्मण वर्ग ने और उनके रक्षक वर्ग ने नफ़रत की।

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  5. हुजूर! विश्वगुरू तो 4-5 एशियाई देशों के ही कारण कोई नहीं बन जाता। सर्वमान्य है कि भारत के लोग अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका किसी को नहीं जानते थे। और विश्वगुरू कुछ देर के लिए कह भी लें तो वह समय या गुरू होने कारण बौद्ध धर्म रहा था, न कि हिन्दू धर्म। सारे प्रमाण इसके लिए हैं कि विश्वविद्यालय हो या कोई बड़ा गुरु-ज्ञान केंद्र सब बौद्धों के थे। ब्राह्मणों पर जिसका आरोप है कि इन्होंने सारे विहारों को बचाया नहीं। यह सही है कि विदेशी आक्रान्ताओं ने भी हमले किए, बहुत कुछ नष्ट किया लेकिन हिन्दू के मन्दिर और सारे प्रतीक इतनी बड़ी मात्रा में बचे रहे, इसलिए कि बौद्धों से सच में ब्राह्मण वर्ग ने और उनके रक्षक वर्ग ने नफ़रत की।

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  6. विवेकानन्द को पढते समय कहीं से नहीं लगता कि अंग्रेजी के अलावे कुछ बोलते-लिखते भी हैं। विदेश-भ्रमण में लगे रहे…उनकी खासियतों से किसी को इनकार नहीं।

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  7. एक और टिप्पणी की है। देखिए स्पैम में, शायद हो।

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  8. आदरणीय भाई चन्दन कुमार मिश्र जी आधुनिक भारतीय इतिहास की दृष्टि से आपकी बातें पूर्णरूपेण सच है , किन्तु भारत का इतिहास केवल वही तो नहीं है जो आधुनिक इतिहासकार हमें पढ़ाते है । भाई जी ऐशियाई देशों के साथ - साथ अरब , मिश्र और ब्रिटेन जैसे देश भी भारत के उपनिवेश रहें हैं और उनकी सभ्यता भारतीय संस्कृति से अनुप्रेरित थी , इस बात के अब पुरातत्व के साथ - साथ ऐतिहासिक तथ्य भी मिल गए है । इन तथ्यों को जल्द ही दो अलग लेखों में " विश्वगुरू भारत " और " विश्व को जीतने वाले महान भारतीय सम्राट " शीर्षक से आपके सामने रखूंगा ।

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  9. आदरणीय विश्वजीत भाई, पौराणिक, पुरातात्विक, आधुनिक, मध्यकालीन, विदेशी-स्वदेशी, प्राचीन किस इतिहास में विश्वगुरू के रूप में भारत को बताया गया है हिन्दू धर्म के कारण। बेबीलोन, रोम, यूनान, मिस्र, चीन, अरब सभी समृद्ध सभ्यता के केंद्र रहे हैं और प्राचीनतम भी। हमारा भारत भी रहा है, इससे किसी को इनकार नहीं हो सकता। नालन्दा, तक्षशिला, विक्रमशीला सारे विश्वविद्यालय, सम्राट अशोक का समय, एशिया में चीन, जापान आदि में बौद्ध का फैलना आदि सब का सम्बन्ध बौद्ध धर्म से रहा है। इतिहासकार-पुरातत्वविद भी दोनों धाराओं के हैं, दोनों के अपने-अपने तर्क हैं। हमारे ग्रंथों में विकृतिकरण के भी कारण हैं, तर्क हैं, और उनकी सच्चाई भी। लेकिन हमें आस्था और श्रद्धा से हटकर सत्य को देखना होगा वरना कौन किसे रोक सकता है। पुराणों को इतिहास मानने का कोई कारण नहीं है हमारे पास, हमारे कुछ खोजबीन ने भी पुराणों पर इतिहास का स्रोत बताने वालों तथ्यों आदि का खंडन ही किया। अतिशयोक्ति आदि भरे पड़े हैं। पुराणों-वेदों को जो समझा जाना चाहिए, वह समझा कम ही जाता है। इसपर कोशिश करूंगा कि लेख लिखूँ। …कोई भी इतिहासकार जानता है कि वस्तुपरक और सत्य का सम्बन्ध इतिहास में बहुत बाद में शुरू हुआ, जैसे साहित्य में तिलिस्म के चक्कर से मुक्ति प्रेमचन्द के जमाने से मिलती है और हम यथार्थ में पहुँचते हैं। …मतभेद हैं कई जगह। आगे फिर कुछ कहा-समझा-सुना जाएगा। धन्यवाद।

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