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मंगलवार, 15 नवंबर 2011
स्वतंत्र भारत में औद्योगिक क्रांति के समर्थक वीर नाथूराम गोडसे
वीर नाथूराम गोडसे एक विचारक , समाज सुधारक , हिन्दूराष्ट्र समाचार पत्र के यशस्वी संपादक एवं अखण्ड भारत के स्वप्नद्रष्टा होने के साथ - साथ स्वतंत्र भारत में औद्योगिक क्रांति के समर्थक भी थे । यह तथ्य उनके द्वारा अप्पा को लिखे गये पत्रों से सिद्ध होता है । प्रस्तुत है वीर नाथूराम गोडसे जी की भतीजी श्रद्धेया हिमानी सावरकर जी ( गोपाल गोडसे जी की पुत्री व वीर सावरकर जी की पुत्रवधु तथा हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्षा , जिन्होंने हम सम्मानपूर्वक ताई जी कहते है । ) से प्राप्त वह ऐतिहासिक पत्र -
प्रिय अप्पा ,
कल आपका पत्र मिला उसमें कारखाने की हालत के बारे में कुछ जानकारी हुई । और कारखाने की संभावित वृद्धि को देखकर संतोष हुआ ।
आज - कल सरकार की यह नीति दिखाई देती है कि वह यंत्र आधारित धंधों को उत्तेजन देना चाहती है । और अगर स्वतंत्र भारत को सचमुच ही सम्पन्न करना है तो उसके लिए एक ही मार्ग है । और वह यह कि यंत्र प्रधान व्यवसायों का पोषण और उनकी वृद्धि करना । लेकिन विशेष बात यह है कि चरखा युग के अनेक लेप जिन पर चढे हुये है ऐसे नेता ही यंत्र प्रधान व्यवसायों की प्रशंशा करने लगे है ।
स्वतंत्र भारत में इन व्यवसायों के क्षेत्र को निर्भयता का स्थान प्राप्त होना बड़ी मात्रा में संभव है यह जरूर देखा जायेगा कि विदेशी चीजों की स्पर्धा अपने व्यवसायों को मारक न हो । अब इन व्यवसायों को धोखा एक ही बात है और वह यह कि श्रमिक लोगों को दायित्व शून्य रहने का अवसर देना । श्रमिक लोगों को किसी भी तरह की हानि न पहुँचाना और इन व्यवसाय केन्द्रों की वृद्धि करना यही नीति हमारे राष्ट्र के लिए हित कारक सिद्ध होने वाली है । श्रमिक और उद्योगपति इन दोनों में सामंजस्य पैदा करने की नीति का अवलम्ब ज्यादा सुसंबधता से करना आवश्यक है । हां लेकिन यह बात इन व्यवसायों को चलाने वालों के सोचने की नहीं है । उसके लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं की राष्ट्र की सम्पत्ति के संवर्धन की दृष्टि से श्रमिक और उद्योगपति इन वर्गो के बीच सौहाद्र का निर्माण करने की ओर यत्न होना चाहिये ।
आपका
नथुराम
दि. 27 - 12 - 1948
अमर बलिदानी नाथूराम गोडसे जवाहर लाल नेहरू की इस्लामप्रस्त नीतियों के ध्रुव विरोधी थे , लेकिन जब दिनांक 25 जनवरी 1949 के अंग्रेजी समाचार पत्र States man में The Central Advisory Council of Industry के अधिवेशन में प्रथम दिन का वृत्तांत पढ़ा तो उन्होंने अपने ध्रुव विरोधी नेहरू की औद्योगिकरण की नीतियों का पूर्ण समर्थन किया । यह बात वीर गोडसे ने अप्पा को दूसरे पत्र में लिखी । प्रस्तुत है उस पत्र का संक्षित्त अंश -
... प्रथम दिन का वृत्तांत मैंने पढ़ा डॉक्टर श्यामाप्रसाद अध्यक्ष थे और उदघाटन नेहरूजी ने किया था । ... नेहरूजी का एक ही भाषण मुझे बहुत ही अच्छा लगा । इस पत्र में यह बात लिखने की यह वजह है कि इससे यह विदित हुआ कि सरकार को इसकी पूरी जानकारी हुई कि उद्योग - धंधे और उत्पादन इनकी ओर बहुत ही सावधान होना परमावश्यक है । अपने राष्ट्र के कोने - कोने को आधुनिक विज्ञान की सहायता से प्रकाशित करना यही एक चीज है जिसने भारत का बल और सौख्य बढेगा । यदि हिन्दुस्थान की खेती यंत्रों की सहायता से की गयी तो इस सुजलां सुफलां राष्ट्रभूमि को पर्याप्त धान्य की पैदाइश होगी बल्कि यहाँ से बाहर अनाज भेजा जा सकेगा । भारतीयों के रहन - सहन और आर्थिक स्थिति के सुधार के लिए यहाँ का सब उत्पादन यंत्र - तंत्र से किया जाना चाहिए । यंत्र प्रधान उत्पादन के साथ - साथ ही श्रमिक और उद्योगपतियों के सहकार्य का प्रश्न भी काफी महत्वपूर्ण है । तुम खुद एक कारखाने के उत्पादक और संचालक हो । तुम्हारा कारखाना सिर्फ आजीविका का एक साधन नहीं है इस बात को मैं पूरी तरह से जानता हूँ । आपने कारखाने के चलाने में और संवर्धन में तुम्हारी प्रेरक शक्ति राष्ट्रीय ध्येयवाद की है । यह बात मुझे और आपके जान पहचान वालों को विदित है । आपकी श्रम करने की तैयारी आपको हमेशा यश देती रहेगी इसमें मुझे शक नहीं है । अब विदेश का माल बाजार में अधिक मात्रा में आ रहा है । यहाँ का उत्पादित माल बेचने में कठिनाई होगी यह सवाल कारखानदारों के सामने खडा है । ... और हमारी सरकार स्वतंत्र भारत की होती हुई भी यही सवाल हमारे कारखानादारों के सामने बहुत दिन तक खडा रहने वाला है इसमें कोई शक नहीं ।
आपका
नथुराम
दि. 02 - 02 -1949
प्रिय अप्पा ,
कल आपका पत्र मिला उसमें कारखाने की हालत के बारे में कुछ जानकारी हुई । और कारखाने की संभावित वृद्धि को देखकर संतोष हुआ ।
आज - कल सरकार की यह नीति दिखाई देती है कि वह यंत्र आधारित धंधों को उत्तेजन देना चाहती है । और अगर स्वतंत्र भारत को सचमुच ही सम्पन्न करना है तो उसके लिए एक ही मार्ग है । और वह यह कि यंत्र प्रधान व्यवसायों का पोषण और उनकी वृद्धि करना । लेकिन विशेष बात यह है कि चरखा युग के अनेक लेप जिन पर चढे हुये है ऐसे नेता ही यंत्र प्रधान व्यवसायों की प्रशंशा करने लगे है ।
स्वतंत्र भारत में इन व्यवसायों के क्षेत्र को निर्भयता का स्थान प्राप्त होना बड़ी मात्रा में संभव है यह जरूर देखा जायेगा कि विदेशी चीजों की स्पर्धा अपने व्यवसायों को मारक न हो । अब इन व्यवसायों को धोखा एक ही बात है और वह यह कि श्रमिक लोगों को दायित्व शून्य रहने का अवसर देना । श्रमिक लोगों को किसी भी तरह की हानि न पहुँचाना और इन व्यवसाय केन्द्रों की वृद्धि करना यही नीति हमारे राष्ट्र के लिए हित कारक सिद्ध होने वाली है । श्रमिक और उद्योगपति इन दोनों में सामंजस्य पैदा करने की नीति का अवलम्ब ज्यादा सुसंबधता से करना आवश्यक है । हां लेकिन यह बात इन व्यवसायों को चलाने वालों के सोचने की नहीं है । उसके लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं की राष्ट्र की सम्पत्ति के संवर्धन की दृष्टि से श्रमिक और उद्योगपति इन वर्गो के बीच सौहाद्र का निर्माण करने की ओर यत्न होना चाहिये ।
आपका
नथुराम
दि. 27 - 12 - 1948
अमर बलिदानी नाथूराम गोडसे जवाहर लाल नेहरू की इस्लामप्रस्त नीतियों के ध्रुव विरोधी थे , लेकिन जब दिनांक 25 जनवरी 1949 के अंग्रेजी समाचार पत्र States man में The Central Advisory Council of Industry के अधिवेशन में प्रथम दिन का वृत्तांत पढ़ा तो उन्होंने अपने ध्रुव विरोधी नेहरू की औद्योगिकरण की नीतियों का पूर्ण समर्थन किया । यह बात वीर गोडसे ने अप्पा को दूसरे पत्र में लिखी । प्रस्तुत है उस पत्र का संक्षित्त अंश -
... प्रथम दिन का वृत्तांत मैंने पढ़ा डॉक्टर श्यामाप्रसाद अध्यक्ष थे और उदघाटन नेहरूजी ने किया था । ... नेहरूजी का एक ही भाषण मुझे बहुत ही अच्छा लगा । इस पत्र में यह बात लिखने की यह वजह है कि इससे यह विदित हुआ कि सरकार को इसकी पूरी जानकारी हुई कि उद्योग - धंधे और उत्पादन इनकी ओर बहुत ही सावधान होना परमावश्यक है । अपने राष्ट्र के कोने - कोने को आधुनिक विज्ञान की सहायता से प्रकाशित करना यही एक चीज है जिसने भारत का बल और सौख्य बढेगा । यदि हिन्दुस्थान की खेती यंत्रों की सहायता से की गयी तो इस सुजलां सुफलां राष्ट्रभूमि को पर्याप्त धान्य की पैदाइश होगी बल्कि यहाँ से बाहर अनाज भेजा जा सकेगा । भारतीयों के रहन - सहन और आर्थिक स्थिति के सुधार के लिए यहाँ का सब उत्पादन यंत्र - तंत्र से किया जाना चाहिए । यंत्र प्रधान उत्पादन के साथ - साथ ही श्रमिक और उद्योगपतियों के सहकार्य का प्रश्न भी काफी महत्वपूर्ण है । तुम खुद एक कारखाने के उत्पादक और संचालक हो । तुम्हारा कारखाना सिर्फ आजीविका का एक साधन नहीं है इस बात को मैं पूरी तरह से जानता हूँ । आपने कारखाने के चलाने में और संवर्धन में तुम्हारी प्रेरक शक्ति राष्ट्रीय ध्येयवाद की है । यह बात मुझे और आपके जान पहचान वालों को विदित है । आपकी श्रम करने की तैयारी आपको हमेशा यश देती रहेगी इसमें मुझे शक नहीं है । अब विदेश का माल बाजार में अधिक मात्रा में आ रहा है । यहाँ का उत्पादित माल बेचने में कठिनाई होगी यह सवाल कारखानदारों के सामने खडा है । ... और हमारी सरकार स्वतंत्र भारत की होती हुई भी यही सवाल हमारे कारखानादारों के सामने बहुत दिन तक खडा रहने वाला है इसमें कोई शक नहीं ।
आपका
नथुराम
दि. 02 - 02 -1949
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