रविवार, 4 दिसंबर 2011

राष्ट्रधर्म - आचार्य चाणक्य

सम्राट चंद्रगुप्त अपने मंत्रियों के साथ एक विशेष मंत्रणा में व्यस्त थे कि प्रहरी ने सूचित किया कि आचार्य चाणक्य राजभवन में पधार रहे हैं । सम्राट चकित रह गए । इस असमय में गुरू का आगमन ! वह घबरा भी गए । अभी वह कुछ सोचते ही कि लंबे - लंबे डग भरते चाणक्य ने सभा में प्रवेश किया ।
सम्राट चंद्रगुप्त सहित सभी सभासद सम्मान में उठ गए । सम्राट ने गुरूदेव को सिंहासन पर आसीन होने को कहा । आचार्य चाणक्य बोले - " भावुक न बनो सम्राट , अभी तुम्हारे समक्ष तुम्हारा गुरू नहीं , तुम्हारे राज्य का एक याचक खड़ा है , मुझे कुछ याचना करनी है । " चंद्रगुप्त की आँखें डबडबा आईं । बोले - " आप आज्ञा दें , समस्त राजपाट आपके चरणों में डाल दूं । " चाणक्य ने कहा - " मैंने आपसे कहा भावना में न बहें , मेरी याचना सुनें । " गुरूदेव की मुखमुद्रा देख सम्राट चंद्रगुप्त गंभीर हो गए । बोले - " आज्ञा दें । " चाणक्य ने कहा - " आज्ञा नहीं , याचना है कि मैं किसी निकटस्थ सघन वन में साधना करना चाहता हूं । दो माह के लिए राजकार्य से मुक्त कर दें और यह स्मरण रहे वन में अनावश्यक मुझसे कोई मिलने न आए । आप भी नहीं । मेरा उचित प्रबंध करा दें । "
चंद्रगुप्त ने कहा - " सब कुछ स्वीकार है । " दूसरे दिन प्रबंध कर दिया गया । चाणक्य वन चले गए । अभी उन्हें वन गए एक सप्ताह भी न बीता था कि यूनान से सेल्युकस ( सिकन्दर का सेनापति ) अपने जामाता चंद्रगुप्त से मिलने भारत पधारे । उनकी पुत्री का हेलेन का विवाह चंद्रगुप्त से हुआ था । दो - चार दिन के बाद उन्होंने चाणक्य से मिलने की इच्छा प्रकट कर दी । सेल्युकस ने कहा - " सम्राट , आप वन में अपने गुप्तचर भेज दें । उन्हें मेरे बारे में कहें । वह मेरा बड़ा आदर करते है । वह कभी इन्कार नहीं करेंगे । "
अपने श्वसुर की बात मान चंद्रगुप्त ने ऐसा ही किया । गुप्तचर भेज दिए गए । चाणक्य ने उत्तर दिया - " ससम्मान सेल्युकस वन लाए जाएं , मुझे उनसे मिल कर प्रसन्नता होगी । " सेना के संरक्षण में सेल्युकस वन पहुंचे । औपचारिक अभिवादन के बाद चाणक्य ने पूछा - " मार्ग में कोई कष्ट तो नहीं हुआ । " इस पर सेल्युकस ने कहा - " भला आपके रहते मुझे कष्ट होगा ? आपने मेरा बहुत ख्याल रखा । "
न जाने इस उत्तर का चाणक्य पर क्या प्रभाव पड़ा कि वह बोल उठे - " हां , सचमुच आपका मैंने बहुत ख्याल रखा । " इतना कहने के बाद चाणक्य ने सेल्युकस के भारत की भूमि पर कदम रखने के बाद से वन आने तक की सारी घटनाएं सुना दीं ।
उसे इतना तक बताया कि सेल्युकस ने सम्राट से क्या बात की , एकांत में अपनी पुत्री से क्या बातें हुईं । मार्ग में किस सैनिक से क्या पूछा । सेल्युकस व्यथित हो गए । बोले - " इतना अविश्वास ? मेरी गुप्तचरी की गई । मेरा इतना अपमान । "
चाणक्य ने कहा - " न तो अपमान , न अविश्वास और न ही गुप्तचरी । अपमान की तो बात मैं सोच भी नहीं सकता । सम्राट भी इन दो महीनों में शायद न मिल पाते । आप हमारे अतिथि हैं । रह गई बात सूचनाओं की तो वह मेरा " राष्ट्रधर्म " है । आप कुछ भी हों , पर विदेशी हैं । अपनी मातृभूमि से आपकी जितनी प्रतिबद्धता है , वह इस राष्ट्र से नहीं हो सकती । यह स्वाभाविक भी है । मैं तो सम्राज्ञी की भी प्रत्येक गतिविधि पर दृष्टि रखता हूं । मेरे इस ' धर्म ' को अन्यथा न लें । मेरी भावना समझें । "
सेल्युकस हैरान हो गया । वह चाणक्य के पैरों में गिर पड़ा । उसने कहा - " जिस राष्ट्र में आप जैसे राष्ट्रभक्त हों , उस देश की ओर कोई आँख उठाकर भी नहीं देख सकता । " सेल्युकस वापस लौट गया ।
मित्रों आज भारत में फिर से एक विदेशी बहु का अप्रत्यक्ष राज चल रहा है , तो क्या हम भारतीय राष्ट्रधर्म का पालन कर रहे है ???
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

17 टिप्‍पणियां:

  1. विश्वजीत जी बहुत सुन्दर प्रसंग है... आप जैसे राष्ट्रवादियों की देश को आवश्यकता है... जो चाणक्य जैसे राष्ट्रभक्तों की दुर्लभ कथा देश के सामने रख रहे हैं...
    वन्दे मातरम...
    जय हिंद.. जय भारत...

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  2. राष्ट्रधर्म का पालन कतई नहीं हो रहा.... जिनसे अपेक्षा है उनकी सभी ज्ञानेन्द्रियाँ कमज़ोर हैं... उनपर राष्ट्रद्रोह को पहचानने की आँखें नहीं और न ही राष्ट्रसम्पत्ति को बचाने का हौसला.

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  3. बातें तो सही हैं। प्रेरक भी लेकिन सिर्फ़ विदेशी होने का कारण कुछ विवादास्पद है।

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  4. विश्वजीत भाई,
    आचार्य विष्णु गुप्त जैसे गुरु जिस राष्ट्र में हों तो वहां सच में कोई आँख उठा कर भी नहीं देख सकता|
    आज फिर से संकट की स्थिति है| हमारे देश पर विदेशी बहु का राज है| अब आवश्यकता आचार्य चाणक्य की ही है| किन्तु पता नहीं क्यों जनता गांधी की आवश्यकता महसूस करती है?
    इतिहास को वर्तमान परिपेक्ष्य में रखकर आपने बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया है|

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    1. aacharya charakya jaise Guru hi aaj phir se desh ko aajad kara sakte hi, unke jasa udaharn, abi thk desh me nahi hua.
      aachary ji ko mera sat-sat pranam.

      Umesh kumar Maurya.

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  5. विश्वजीत भाई, नकारात्मकता तो कुछ लोगों की आदत में ही शुमार है|
    चमगादड़ को चाहे किसी आलिशान महल में ही क्यों न छोड़ दिया जाए, वह सोयेगा छत से उल्टा लटक कर ही|
    आप समझ सकते हैं|

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  6. Great instance ! Hope people will take lesson from it, but still there are some morons who will never understand. We need to be careful from such idiots.

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  7. प्रिय भाई विश्वजीत , आपके इस बेहद ज़रूरी आलेख को अपनी wall पर शेयर कर रही हूँ , आज्ञा दीजिये!

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  8. sahi kaha hai apni matrbhoomi se jo lagaav aur pratibadhhtta hoti hai vo doosre desh ki maatrbhoomi se nahi ho sakti jis tarah apni maata apni hi hoti hai....kash humare desh ki janta ye samjhe yahan to ghar ke bhediye hi har jagah mil jaayenge.bahut prernadayak aalekh.

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  9. आदरणीया दीदी जी इस लेख को ही नहीं बल्कि किसी भी लेख को अपने वॉल पर निसंकोच शेयर करें ।
    प्रणाम
    जय ... जय माँ भारती

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  10. IS VIDASE BAHU NE TO SARA HINDUSTAN KO LUTKAR ITALY ME BHAR DIYA. PAR YE GADDAR CONGRASI NATEO NE BARBAD KARKE RAKH DIYA HAI. INKA TO EK KARAM HAI MADAM KI SEWA KARNNA AUR DHAN SWIS BANKO JAMA KARANA.

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  11. sayad isiliye us videshi bahu ne ram setu tudvane ka pryas kiya tha

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