रविवार, 16 अक्तूबर 2011

तेरह साल की क्रांतिकारी मैना

सन् 1857 के स्वतंत्रता समर की आग भड़क उठी थी । मेरठ , कानपुर और दिल्ली इसके प्रमुख केन्द्र थे । कानपुर की क्रांति का नेतृत्व नाना साहब पेशवा कर रहे थे । इस क्रांति को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार देशभक्तों को पकड़ने और नष्ट करने लगी । ऐसी विषम स्थिति में नानाजी को अन्य स्थानों से बुलावा आया तो उनका बिठूर ( कानपुर ) छोड़कर जाना आवश्यक हो गया तो उन्होंने कानपुर की क्रांति की बागडोर अपनी तेरह वर्ष की वीर पुत्री " मैना " को सौप दी ।
क्रांतिकारियों और अंग्रजी सेनाओं में जगह - जगह युद्ध होने लगे , जिनमें मैना ने भी बढ़ - चढ़कर भाग लिया और अपनी वीरता का परिचय दिया । युद्ध भूमि में अंग्रेजी सेना के घेरे में फँसे तात्या टोपे को बचाने के लिए वह अंग्रेज सेना पर टूट पड़ी । अचानक हुए इस हमले से अंग्रेज घबरा गये और उधर तात्या को भागने का मौका मिल गया । साहसी मैना दूर तक शत्रुओं का पीछा करती रही । यह युद्ध कई घण्टे चला । वह अंग्रेजों को चकमा देकर युद्ध भूमि से निकल गई और गंगा नदी के तट पर तात्या टोपे के साथ आगे की योजना बनाने लगी कि तभी घोड़े पर सवार अंग्रेज सेना की टुकड़ी आ धमकी । तात्या टोपे तो नदी को पार कर निकल गये परन्तु मैना घिर गई । मैना तुरन्त तलवार निकाल कर अंग्रेज सेना के साथ वीरतापूर्ण युद्ध करने लगी । दुर्भाग्य से उनके हाथ से तलवार गिर गई और शत्रुओं ने उन्हें पकड़कर बंदी बना लिया और फिर उन्हें सेनापति के सामने पेश किया गया । सेनापति कुछ देर तक मैना को देखता रहा फिर उसने डांटकर उनसे उनका परिचय पूछा तो मैना ने कहां कि मैं वीर सैनानी नाना साहब पेशवा की बेटी हूँ , मेरा नाम मैना है । यह सुनकर सेनापति कुटिलतापूर्वक बोला , ' तुम नाना की बेटी हो जो हमारा कट्टर शत्रु है , तुम्हें अपने पिता का ठिकाना तो मालूम ही होगा ? तुम हमें अपने पिता का पता बता दो तो तुम्हें ईनाम मिलेगा अन्यथा तुम्हें जिंदा जला दिया जायेगा । '
अंग्रेज सेनापति की बात सुनकर मैना का स्वाभिमान जाग उठा , ' गोरे सरदार शायद तुमने वीरांगनाओं का इतिहास नहीं पढ़ा है । तुम मुझे जला देने की धमकी दे रहे हो , इस बात पर मुझे हँसी आती है । आग ही विपत्ति के समय भारतीय वीरांगनाओं की रक्षा करती है । मैं प्राण देना उचित समझती हूँ पर भेद नहीं बता सकती । '
मैना का ओजस्वी उत्तर सुनकर अंग्रेज सेनापति क्रौध से बौखला उठा और मैना को शैतान लड़की बताकर आग में झोंकने का आदेश दे दिया । अंग्रेज सेनापति द्वारा दी गई सजा को सुनकर आत्मा की अमरता को जानने वाली वीर मैना ने निर्भीकता पूर्वक कहा , ' आज तुम मुझे कोई भी दंड दो , उसकी मुझे कोई चिंता नहीं है लेकिन याद रखो , तुम इस देश को अधिक समय तक गुलाम बनाकर नहीं रख सकोगे । '
गिरफ्तारी के दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व ही अंग्रेजों ने मानवता को शर्मसार करते हुए मैना को खम्बे से बांधकर अंग्नि के हवाले कर दिया । तेरह वर्ष की उम्र में आत्म - उत्सर्ग करने वाली माँ भारती की वीर पुत्री मैना को कोटि - कोटि प्रणाम ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

5 टिप्‍पणियां:

  1. भारत का गौरवशाली इतिहास भरा पड़ा है ऐसी वीरांगनाओं से। धन्य है भारत माता की वीर बेटी मैना।

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  2. उफ़ अंग्रेजो की वीभत्सता का एक और नज़ारा…………नमन है उस वीरांगना को।

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  3. तेरह वर्ष की उम्र में आत्म - उत्सर्ग करने वाली माँ भारती की वीर पुत्री मैना को कोटि - कोटि प्रणाम ।
    विश्वजीत जी पहली बार आपके पोस्ट पे आया ! आपके सारे पोस्ट भी पढ़े
    बहुत ही अच्छा कार्य कर रहे हैं आप! और हम सब का यही कर्म भी होना चाहिए देश की सोयी जनता को जगाना
    तथा सत्य का पथ अंगीकार करने को प्रेरित करना !
    क्यों की सत्य ही एक ऐसी ताकत है जिसके द्वारा आप अच्छे अच्छों को आप परास्त कर सकते हैं
    आपको तथा आपके परिवार को दिवाली की शुभ कामनाएं!!

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  4. Bajirao Peshawa(first) ne bhi british aour mughalo ko haraya tha wah ek ajinkya yodhha he. lekin unaka itihhas bahut kam logo ko pata he.

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