सोमवार, 1 अगस्त 2011

इस्लाम विरोधी नहीं है वंदे मातरम्


सन 1905 में ब्रिटिस वायसराय लार्ड कर्जन द्वारा साम्प्रदायिक आधार पर बंगाल का विभाजन किया गया तो उसके विरोध में ' बंग भंग आन्दोलन ' हिन्दुओं और मुसलमानों ने मिल कर किया । इस आन्दोलन का मुख्य नारा ही ' वन्दे मातरम् ' था । अन्ततः अंग्रेजों को बंगाल का विभाजन समाप्त करना पडा । ये कैसी विडम्बना है कि उसी राष्ट्रगीत का विरोध कुछ अरबपंथी कट्टर जेहादी मुल्ला - मौलवी इस्लाम के नाम पर करते रहते है और उसे गैर इस्लामी करार देते है ।
वन्दे मातरम् गीत में पूजा एवं अर्चना जैसी भावना नहीं है और न ही इसके शब्द किसी की मजहबी - आस्था को आहत करते है तो इस पर विवाद क्यों ! कविन्द्र बंकिम चन्द्र चैटर्जी ने देश प्रेम के उदात्त भाव से अभिभूत होकर यह अमर गीत वन्दे मातरम् लिखा था । श्री मौलाना सैयद फजलुलरहमान जी के शब्दों में ' वन्दे मातरम् गीत में बुतपरस्ती ( मूर्ति - पूजा ) की गन्ध नहीं आती है , वरन् यह मादरे वतन ( मातृभूमि ) के प्रति अनुराग की अभिव्यक्ति है । '
' नमो नमो माता अप श्रीलंका , नमो नमो माता ' ( श्रीलंका का राष्ट्रगीत )
' इंडोनेशिया तान्हे आयरकू तान्हे पुम्पहा ताराई ' ( इंडोनेशिया का राष्ट्रगीत )
भारत के वंदे मातरम् में ही भारत माता की वंदना नहीं है , श्रीलंका और मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया के राष्ट्रगीत में भी वही सब कुछ है जो वन्दे मातरम् में है । इनके राष्ट्रगीत में भी राष्ट्र को माता की ही संज्ञा दी गई है । जब वंदे मातरम् गैर इस्लामी है तो इन देशों के राष्ट्रगीत क्यों गैर इस्लामी नहीं करार दिये जाते ?
जिस आजादी की लडाई में वन्दे मातरम् का हिन्दू - मुस्लिम ने मिलकर उद्घोष किया था तो फिर क्यों आजादी के बाद यह इस्लाम विरोधी हो गया । वंदे मातरम् को गाते - गाते तो अशफाक उल्ला खां फाँसी के फंदे पर झूल गए थे । इसी वंदे मातरम् को गाकर न जाने कितने लोगों ने बलिदान दिया । जब देश के स्वतंत्रता संग्राम में यह गीत गैर इस्लामी नहीं था , तो आज कैसे हो गया !
अपनी मूल जडों से जुडा हुआ समझदार और पढा - लिखा राष्ट्रवादी मुसलमान अरबपंथी कट्टर जेहादियों की इस संकिर्णता एवं अमानवीयता से बेहद परेशान है । उनका कहना है - ' भारत का मुसलमान इसी भूमि पर पैदा हुआ है और इसी धरती पर दफन होता है इसलिए माता के समान इस जमीन की बंदगी से उसे कोई नहीं रोक सकता । ' मुसलमान सुबह से शाम तक इस भूमि पर 14 बार माथा टेकता है तो फिर उसे वन्दे मातरम् गाने में क्यों आपत्ति है ?
श्री ए. आर. रहमान ने तो इसका अनुवाद स्वरूप ' माँ तुझे सलाम ' स्वरबद्ध कर बन्दगी की है । पूर्व केन्द्रिय मन्त्री श्री आरिफ मोहम्मद खान का मानना है कि वन्दे मातरम् को मूर्ति पूजा से जोडना उचित नहीं । श्री खान ने स्वयं वन्दे मातरम् का अनुवाद मुस्लिम विद्वानों से उर्दू में कराया है और इसके माध्यम से सभी मुसलमानों को यह एहसास करवाने का प्रयास किया है कि वन्दे मातरम् इस्लाम विरोधी नहीं है । माँ के कदमों में जन्नत होती है तथा सच्चा इस्लाम भी यही शिक्षा देता है कि जिस धरती का अन्न - जल खाया है , हवा का सेवन किया है , उसका नमन वास्तव में खुदा की इबादत है ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मित्रोँ आप यहाँ पर आये है तो कुछ न कुछ कह कर जाए । आवश्यक नहीं कि आप हमारा समर्थन ही करे , हमारी कमियों को बताये , अपनी शिकायत दर्ज कराएँ । टिप्पणी मेँ कुछ भी हो सकता हैँ , बस गाली को छोडकर । आप अपने स्वतंत्र निश्पक्ष विचार टिप्पणी में देने के लिए सादर आमन्त्रित है ।