' नहीं गुरूदेव पहले मैं पार होऊंगा, बाद में आप । '
बहुत देर तक गुरू - शिष्य अपनी - अपनी बात पर अटल रहे । अंत में समर्थ गुरू रामदास ने शिवाजी को पहले नदी पार करने की आज्ञा दे दी ।
जब दोनों नदी के उस पार निकल गये, तब गुरूदेव ने कहा, ' शिवा, आज तूने मेरी आज्ञा भंग की है । आज मुझे तेरे सामने झुकना पड़ा । '
' मैं आपको अनजानी नदी में पहले कैसे घुसने

' और यदि तू बह जाता तो ? '
' मेरे बह जाने से कोई हानि न होती । आप अनेक शिवा बना लेते, किन्तु आपके बह जाने पर मैं एक भी समर्थ गुरू न बना पाता । मेरे जीवन की अपेक्षा आपका जीवन राष्ट्र के लिए विशेष उपयोगी है । ' शिवाजी ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया ।
bahut badhiya
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