शनिवार, 28 मई 2011

मानव जीवन का उद्देश्य - स्वातंत्र्यवीर सावरकर


स्वातंत्र्यवीर सावरकर को ब्रिटिस शासन के विरूद्ध विद्रोह की प्रेरणा देने तथा बम आदि शस्त्रास्त्र बनाने के आरोप में दो - दो आजन्म कारावास की अर्थात 50 वर्ष की काले पानी की सजा दी गयी । जिस समय न्यायालय ने सावरकर को दो जन्मों के कारावास का दण्ड सुनाया तो उन्होंने हंसते हुए कहा - " मुझे बहुत प्रसन्नता है कि ईसाई ( ब्रिटिस ) सरकार ने मुझे दो जीवनों का कारावास का दण्ड देकर पुनर्जन्म के हिन्दू सिद्धान्त को मान लिया है । "
उस समय जिन्हें आजन्म कारावास की सजा होती थी , उन्हें अंदमान नामक द्वीप पर रखा जाता था , जहाँ साल में लगभग नौ महीने तक लगातार वर्षा हुआ करती है । चारों ओर घना जंगल , ठण्डी हवा और मच्छरों की भरमार , ऐसे नरक तुल्य स्थान पर कठोर यम - यातनाओं से भरे कारागार ( सेल्युलर जेल ) में वीर सावरकर को भेजा जा रहा था । अंदमान रवाना होने से पूर्व डोगरी जेल में एक बार उन्हें अपनी पत्नी से भेट करने की अनुमति मिली थी ।
उनकी पत्नी सजल नेत्रों उनसे मिलने गई , तब कैदियों के कपडे पहने हुए उन्हें देखा तो भावावेश में एक बारगी रो पडी । स्वातंत्र्यवीर सावरकर भावावेश में अश्रुपात बहाती पत्नी की तीव्र मनोव्यथा का अनुभव कर रहे थे , पर वे स्थिरप्रज्ञ हो गंभीर वाणी में अपनी पत्नी से बोले -
" धीरज रखों ! केवल सन्तान पैदा करना और खाना - पीना , मौज करना , यही मानव जीवन का उद्देश्य नहीं हैं । ऐसा जीवन तो पशु - पक्षी भी बिता रहे हैं । हमें तो समाज और देश की दुर्दशा को मिटाना है और भारत माता की गुलामी की बेडियों को चूर - चूर करना है । इसी उद्देश्य से हमने अपने व्यक्तिगत सुखोपभोगों को त्यागकर यह कांटों भरा मार्ग स्वेच्छा से अपनाया है । हमने स्वयं अपने हाथों से अपने व्यक्तिगत स्वार्थो को तिलाञ्चली दी है , ताकि भारत के करोडों लोगों के कष्ट दूर हों , इसलिए चिंता न करो और घैर्य के साथ आने वाली आपदाओं को सहर्ष सहन करो , यही सच्ची मानवता है , इसी में सच्चा पुरूषार्थ है । "
वन्दे मातरम्
विश्वजीत सिंह 'अनंत'

2 टिप्‍पणियां:

  1. विनायक दामोदर सावरकर, (28 May 1883-26 Feb 1966)
    जिन्हें सामान्यतः स्वातंत्र्यवीर सावरकर के रूपमें जाना जाता है एक निडर स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, लेखक,नाटककार, कवि, इतिहासकार, राजनीतिक नेता और दार्शनिक थे .उनके देश हित में किये गए कार्यों को हम भुला नहीं सकते. हम उनके भारत राष्ट्र के लिए किए गए बलिदान को याद करते हुए, उन्हें शत शत नमन करते हैं.

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  2. First poem written by Vir Savarkar was 'Swadeshicha phatka',and he written at the age of 11

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