सन् 1914 में हिन्दुओं के सुप्त स्वाभिमान को जाग्रत करने के उद्देश्य से कुछ दिनों के लिए वीर सावरकर मुम्बई में ठहरे हुए थे । एक दिन अरब साम्राज्यवादी कट्टर जेहादी मुसलमानों के हिन्दुस्थानी प्रतिनिधि नेता शौकत अली उनसे मिलने आये । उन्होंने वीर सावरकर की भूरि - भूरी प्रशंसा की । परन्तु साथ ही साथ बतलाया कि ' आपको हिन्दू संगठन का कार्य नहीं करना चाहिए । '
वीर सावरकर ने कहा - ' आप यदि खिलापत आन्दोलन बन्द करते है , तब तो आपके सुझाव पर मैं कुछ विचार कर सकता हूँ । '
शौकत अली ने कहा - ' खिलापत आन्दोलन तो मेरा प्राण है । वह मैं कैसे छोड़ सकता हूँ ? ' ( खिलापत आन्दोलन तुर्की के खलीपा के समर्थन में चलाया गया विशुद्ध साम्प्रदायिक आन्दोलन था , जिसका भारत या भारत के मुसलमानों से कोई सम्बन्ध नहीं था । )
वीर सावरकर ने उत्तर दिया - ' अच्छा तो यह बात है । मुसलमान अपनी अलग खिचड़ी पकाते रहेंगे । वे मुसलमानों की संस्थाएँ चलाते रहेंगे । वे धर्मान्तरण भी कराते रहेंगे और चाहेंगे कि हिन्दू हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें , तो यह कभी नहीं हो सकता । हिन्दू संगठन और शुद्धि का कार्यक्रम तीव्र गति से चलाने का हमारा निश्चय है । '
सौकत अली ने कहा - ' मैं इतना भर कह सकता हूँ कि सब मुसलमान हिन्दू संगठन के विरोध में है । आपके इन आन्दोलनों ने उन्हें प्रक्षुब्ध कर दिया है । यदि आप इन सब गतिविधियों को छोड़ते नहीं है , तब आपके भाग्य का ही हवाला देना पड़ेगा । फिर आप पर क्या बीतेगी , मैं नहीं कह सकता । '
वीर सावरकर ने कहा - ' तोप , तमंचा और आधुनिक शस्त्रास्त्रों से लैस अंग्रेज सरकार जब मुझे नहीं झुका सकी तब क्या समझते है कि मैं केवल मुसलमानों के हाथ के छुरों से डर जाऊँगा ? '
सौकत अली ने कहा - ' देखों , मुसलमानों के तो कई देश है । यहाँ रहना यदि असम्भव हुआ , तो मुसलमान कही अन्यत्र चले जायेंगे । तब आपकी क्या गति होगी । '
वीर सावरकर ने तपाक से कहा - ' शौक से जाइये । कल जाना हो तो आज जाइये । जिनकी यहाँ निष्ठा नहीं है , वे यहाँ न रहें तभी अच्छा है । '
विदा होते समय हाथ मिलाते हुए शौकत अली ने हँसते - हँसते हुए कहा - ' देखो सावरकर जी ! मैं कितना ऊँचा , पूरा और बलिष्ठ हूँ । आप मेरे सामने बहुत छोटे है । मैं आपको पल भर में मसल सकता हूँ । '
वीर सावरकर ने तपाक से उत्तर दिया - ' वैसा प्रयत्न कीजिये और आजमाइये कि क्या नतीजा निकलता है । मैं आपको जबाबी चुनौती देता हूँ । एक बात ध्यान में रखिये । अफजल खाँ का आकार राक्षस जैसा था । उसकी तुलना में शिवाजी नाटे और छोटे थे । परन्तु किसकी विजय हुई , यह सारी दुनिया जानती है । '
वीर सावरकर का यह तेजस्वी जबाब सुनकर समूचे हिन्दुस्थान को दारूल इस्लाम बनाने का स्वप्न देखने वाले शौकत अली ठण्डे पड़ गये ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '
achhi jankari
जवाब देंहटाएंduniya me ak hi sher tha jisne muglo ka jina hram kr diya tha
जवाब देंहटाएंbhart mata do aese hi shero ki tlas he.